घटना उस वक्त की है, जब भारत परतंत्र था तथा उस पर अंग्रेजों का शासन था। लन्दन के एक छात्रवास में एक भारतीय विद्यार्थी को दिनदर्शिका में कुछ लिखते देख उसके एक आंग्ल सहपाठी ने पूछा, ‘यह क्या लिख रहे हो?’
‘दिनदर्शिका,’ उस विद्यार्थी ने उत्तर दिया।
‘दिनदर्शिका? और वह भी अंग्रेजी में?’
‘इसमें कौन-सी ताज्जुब की बात हुई? अंग्रेजी जो पढ़ रहा हूँ।’
‘मेरे मित्र, दिनदर्शिका में हम अपना हृदय उँडेल देते हैं। हमारा दिल खोलने के लिये दिनदर्शिका के अलावा अन्य कोई साधन नहीं और हम अपना दिल अपनी मातृभाषा में ही खोल सकते हैं, न कि किसी विदेशी भाषा में। फिर हिन्दी तो तुम्हारी राष्ट्रभाषा है! हम तुम पर राज कर रहे हैं, इसका यह अर्थ नहीं कि तुम अपनी भाषा छोड़कर हर चीज हमारी भाषा में ही लिखा करो।’
बात उस विद्यार्थी को जँच गयी और उसने निश्चय किया कि अब वह न केवल दिनदर्शिका ही हिन्दी में लिखा करेगा, वरन् यथासम्भव हिन्दी का ही प्रयोग करता रहेगा। वह विद्यार्थी थे महाराष्ट्र के भूतपूर्व राज्यपाल स्व. श्रीप्रकाश।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
