daanaveerata
daanaveerata

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन राज्यसभा के सदस्य थे, तब की बात है। एक बार अपने भत्ते का चेक लेने के बाद वे राज्यसभा के कार्यालय में गये। समीप खड़े एक सज्जन से उन्होंने फाउन्टनपेन लेकर वह चेक ‘लोकसेवा मंडल’ के नाम लिख दिया। इन महोदय ने जो देखा, तो उनसे न रहा गया, बोले, “टंडनजी आपको भत्ते के मुश्किल से चार सौ रुपये मिले हैं, उन्हें भी आपने लोकसेवा मंडल को दे डाला?”

पेन वापस करते हुए टंडनजी कहने लगे, “देखो भाई, मेरे हैं सात लड़के और सातों अच्छी तरह कमाते हैं। मैंने प्रत्येक पर सौ रुपये का “कर” लगा रखा है। इस प्रकार प्रति मास मुझे सात सौ रुपये मिल जाते हैं। इनमें से मुश्किल से तीन-चार सौ रुपये व्यय होते हैं। शेष रकम भी मैं “लोकसेवा मंडल” को भेज देता हूँ। इन पैसों का मैं करूँगा भी क्या?”

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)