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संत कंफ्रयूशियस एक बहुत बड़े दार्शनिक थे। लोकसेवा में ही उन्होंने अपना पूरा जीवन लगा दिया। चीन की धरती पर जन्मे इस संत को वहाँ के सम्राट बहुत ही सम्मान देते थे। एक बार जब सम्राट उनसे मिले तो बोले- ‘कृपया आप मुझे ऐसे आदमी के पास ले चलें जो देवताओं से भी महान हो। मैं आभारी रहूँगा।’ संत पहले तो मंद-मंद मुस्वफ़ुराए। फिर बोले- “राजन! आप स्वयं ही देवताओं से महान हैं। जो दूसरों को अपने से महान समझकर उनके पास जाता है, वह महान ही तो होता है।”

“संतजी! यदि मैं महान हूँ तो मुझे ऐसे व्यक्ति से मिलाएं जो मेरे से भी महान हो।” “ठीक है। तो मुझे ध्यानपूर्वक देख लो। मैं सत्य से बहुत प्रेम करता हूँ। इसलिए मैं तुम से भी महान हूँ।” इस उत्तर ने भी चीन के तत्कालीन सम्राट को संतुष्ट नहीं किया। उन्होंने अपनी जिज्ञासा स्पष्ट कर दी- “तब तो मुझे आप से भी महान व्यक्ति के दर्शन करने हैं। मेरी इच्छा पूर्ण करें।” “ठीक है। उठें। हम जंगल की राह लेते हैं” और वे चलते रहे। दूर जंगल के एक छोर पर एक वृद्ध व्यक्ति कुआं खोद रहा था।

वह बिल्कुल अकेला इस कार्य में जुटा हुआ था। उन्हें कोई देखने- पूछने वाला भी आस-पास नहीं था। संत कंफ्रयूशियस ने कहा- “कर लीजिए इस वृद्ध के दर्शन। यह जानता है कि कभी भी मौत आ सकती है, फिर भी दूसरों के लिए पानी का स्थायी प्रबंध करने के लिए यह कुआं खोद रहा है। इस वृद्ध व्यक्ति का अंतिम कदम परोपकार है। निःसंदेह यह व्यक्ति ही देवताओं से महान माना जाना चाहिए।”

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)