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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 31

एक महीना और गुजर गया। सुधा अपने देवर के साथ तीसरे ही दिन चली गयी! अब निर्मला अकेली थी। पहले हंस-खेलकर ही बहला लिया करती थी। अब रोना ही एक काम रह गया। उसका स्वास्थ्य दिन-दिन बिगड़ता गया। पुराने मकान का किराया अधिक था। दूसरा मकान थोड़े किराये का लिया। यह तंग गली में था। […]

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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 30

निर्मला दिन-भर चारपाई पर पड़ी रही। मालूम होता है, उसकी देह में प्राण नहीं है। न स्नान किया, न भोजन करने उठी। सन्ध्या समय उसे ज्वर हो गया। रात-भर देह तवे की भांति तपती रही। दूसरे दिन भी ज्वर न उतरा। हां कुछ-कुछ कम हो गया था। वह चारपाई पर लेटी हुई निश्चल नेत्रों से […]

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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 29

दिन गुजरने लगे। एक महीना पूरा निकल गया, लेकिन मुंशीजी न लौटे कोई खत भी न भेजा। निर्मला को अब नित्य यही चिन्ता बनी रहती कि वह लौटकर न आये तो क्या होगा? उसे चिन्ता न होती थी कि उन पर क्या बीत रही होगी, कहां-कहां मारे-मारे फिरते होंगे, स्वास्थ्य कैसा होगा? उसे केवल अपनी […]

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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 28

निर्मला सारी रात रोती रही, इतना कलंक! उसने जियाराम को गहने ले जाते देखने पर भी मुंह खोलने का साहस नहीं किया। इसलिए तो कि लोग समझेंगे कि यह मिथ्या दोषारोपण करके लड़के से बैर साध रही है। आज उसके मौन रहने पर उसे अपराधिन ठहराया जा रहा है। यदि वह जियाराम को उसी क्षण […]

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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 27

मुंशीजी पांच बजे कचहरी से लौटे और अन्दर आकर चारपाई पर गिर पड़े। बुढ़ापे की देह उस पर आज सारे दिन भोजन न मिला। मुंह सूख गया था। निर्मला समझ गई, आज दिन खाली गया। निर्मला – आज कुछ नहीं मिला? निर्मला नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1 मुंशीजी […]

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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 26

निर्मला ने बिगड़कर पूछा – इतनी देर कहां लगायी थी? सियाराम ने ढिठाई से कहा – रास्ते में एक जगह सो गया था। निर्मला – यह तो मैं नहीं कहती, पर जानते हो, कितने बज गए हैं? दस कभी के बज गए। बाजार कुछ दूर भी तो नहीं है। निर्मला नॉवेल भाग एक से बढ़ने […]

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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 24

मुंशीजी ने हाथ छुड़ाकर कहा – तुम भी कैसी बच्चों की सी जिद कर रही हो! दस हजार का नुकसान ऐसा नहीं है जिसे मैं यों ही उठा लूं। मैं रो नहीं रहा हूं पर मेरे हृदय पर जो बीत रही है, वह मैं ही जानता हूं। वह तेजी से कमरे से निकल आये और […]

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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 23

चिन्ता में नींद कब आती है? निर्मला चारपाई पर पड़ी करवटें बदल रही थी। कितना चाहती थी कि नींद आ जाये, पर नींद ने न आने की कसम खा ली थी। चिराग बुझा दिया था, खिड़की के दरवाजे खोल दिये थे, टिक-टिक करने वाली घड़ी भी दूसरे कमरे में रख आयी थी, पर नींद का […]

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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 22

अबकी सुधा के साथ निर्मला को आना पड़ा। वह तो मैके में कुछ दिन और रहना चाहती थी, लेकिन शोकातुर सुधा अकेले कैसे रहती? उसकी खातिर आना ही पड़ा। रुक्मिणी ने भूंगी से कहा – देखती है बहू मैके से कैसा निखरकर आयी है। भूंगी ने कहा – दीदी, मां के हाथ की रोटियां लड़कियों […]

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निर्मला-मुंशी प्रेमचंद भाग – 21

जब हमारे ऊपर कोई विपत्ति आ पड़ती है, तो उससे हमें केवल दुःख ही नहीं होता – हमें दूसरों के ताने भी सहने पड़ते हैं। जनता को हमारे ऊपर टिप्पणियां कसने का वह सुअवसर मिल जाता है, जिसके लिए वह हमेशा बेचैन रहती है। मंसाराम क्या मरा, मानो समाज को उन पर आवाजें कसने का […]

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