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वह जल रही थी – गृहलक्ष्मी कहानियां

कमरे के बीचों बीच उसकी आग में झुलसी हुई लाश, जो आधी जल चुकी थी, एक सफेद चादर में ढकी हुई थी। वह जल चुकी थी, सांसें खत्म हो चुकी थीं, लेकिन उसकी आग से अनछुई रूह वहीं कमरे में एक कोने में बैठी मुस्कुरा रही थी। घरवालों की, लोगों की, रिश्तेदारों की बातें सुन रही थी। कई बहुत अफसोस कर रहे थे कि देखो, बेचारी जलकर मर गई।

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दूसरी पारी – गृहलक्ष्मी कहानियां

मई महीने की ढेर गर्म दोपहरी में इंसानों के साथ- साथ इमारतें भी भट्टी बन गई थीं। मौसम की तल्खी यथावत जारी थी। दो-चार लोगों से पता पूछने के लिए गाड़ी का शीशा नीचे किया ही था उसी में विवेक के माथे का पसीना किसी बंद नल से रिसते पानी की बूंदो की तरह टप-टप […]

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खालीपन – गृहलक्ष्मी कविता

एक अजीब सी बात हो गई, कुछ अलग सी बात हो गई। यूं तन्हा से जब कर गए, तो जिंदगी वीरान सी हो गई। मेरे ख्यालों को कर गए खाली, और खालीपन सी बात हो गई। अब सिर्फ ख्याल बाकी हैं, और सांस खयालों में खो गई। यह खालीपन रहा होगा कहीं न कहीं तुममें […]

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आगे तुम्हारी मर्जी

रमिता आज बहुत खुश थी, खुशी की बात तो थी ही… बरसों से जिस अवसर का बेकरारी से इंतजार था आज वो दिन आ ही गया ।
ऑफिस पहुंचते ही चपरासी ने चेयरमैन सर का मेसेज दिया- “आपको अन्दर बुलाया है ।”

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मास्क लगाना है

उस दिन दवाई लेने मेडिकल स्टोर मास्क लगा कर गया तो देखा कि सामने बेंच पर कुछ बुजुर्ग मास्क पहने बिना हंसी-ठिठोली कर रहे हैं। संक्रमित होने पर यह ठिठोली रुला भी सकती है।

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इम्पॉर्टन्ट प्रश्न – गृहलक्ष्मी कहानियां

बचपन इंसान के जीवन का सबसे खूबसूरत समय होता है। चाहे उस समय इस बात को हम समझ पाएं या न समझ पाएं, लेकिन जब इंसान प्रौढ़ हो जाता है तब अवश्य ही उसको बचपन के उन दिनों की याद आती है और तब उसे एहसास होता है कि बचपन कितना सुंदर, बेफिक्र, मासूम होता है।

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