श्रेया का बार-बार शादी करने को लेकर इंकार करना, उसके मम्मी-पापा को परेशान कर रहा था, वो श्रेया की नहीं का कारण जानना चाहते थे लेकिन जान नहीं पा रहे थे।
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मेरी बीवी की शादी का सच
अपने अधिकारी के प्रति वह इतनी दीवानी हो चुकी थी कि हर बात में मिस्टर यादव ही आते थे। वही उसके सब बने जा रहे थे। उन्हीं के ख्यालों में खोई रहती थी मेरी पत्नी। ख्वाब भी उन्हीं के देखती होगी।
ग्रहलक्ष्मी की कहानियां -एक और पहलू
ग्रहलक्ष्मी की कहानियां- सर्दी कुछ ज्यादा ही थी लेकिन ट्रेन छूटने में अभी भी थोड़ा समय बाकी था। प्लेटफार्म पर तिल धरने की जगह नहीं थी। धक्का मुक्की के इस आलम में ऐसा लग रहा था जैसे पूरा शहर इस ‘होलीडे स्पेशल’ ट्रेन में सवार होने को उतारू था। गनीमत थी कि मेरे रिजर्वेशन वाले […]
घर की लक्ष्मी – गृहलक्ष्मी कहानियां
माया को उसके सास-ससुर बात-बात पर ताने मारते। उसका पति तो उसे अधिक दहेज न लाने के कारण रोज तानों के साथ-साथ थप्पड़-मुक्के भी मारने लगा। माया की सुबह गलियों से शुरू होती और शाम लात-घूसे लेकर आती। ये सब सहना तो माया की अब नियति बन गया था। रोज-रोज की दरिंदगी को सहते-सहते माया के आंसू सूख चुके थे…
खेत की माटी
अंतर्मन में द्वंद्व चल रहा था। रह-रहकर पिछले 38 वर्षों का संघर्ष मन को उद्वेलित कर रहा था। विचार आता जीवन भर खटती रही, कभी पति के लिए कभी बच्चों के लिए अब रिटायर होने के बाद आराम से रहूंगी। जिंदगी में सकून भी तो कोई चीज है, नहीं तो घड़ी की सुइयों पर नाचते रहो।स्कूल की नौकरी करती थी तो कभी ख्याल नहीं आया कि जरूरत से ज्यादा व्यस्त हूं। मुझे आराम की आवश्यकता है, लेकिन अब विचारों में नकारात्मकता का भाव मन को सकून दे रहा था। इसी उहापोह में मैंने ससुराल के गांव जाने की सोची। घर परिवार में बात ही अलग थी। ढेर सारा प्यार, मिलकर खाना-पीना बतियाना।सुबह शाम आसपास के खेत में बतियाते सुबह-शाम आसपास के खेत में बतियाते निकल जाते, ठंडी ताजी हवा मन के घर कोने को तरोताजा बना जाती। खेत पर जाना मेरा नियम बन गया था।कई दिनों से देख रही थी, एक बूढ़ा रोज सवेरे से खेती में लग जाता, उसे देखकर पैर ठिठक गए। ‘बाबा आपके बच्चे नहीं हैं क्या? मैंने बूढ़े से पूछा। हैं क्यों नहीं, शहर में पढ़ाई कर रहे हैं, शनिवार, एतवार टैम मिले, ट्रेक्टर से जुताई कर दें।पढ़कर कुछ बन जाएंगे तो जीवन… ‘पर बाबा आपकी उम्र नहीं है खेत पर काम करने की मैंने कहा। बेटी मैं तो हमेशा से जमीन से जुड़ा रहा, बच्चों पर दबाव नहीं बनाया।फिर कुछ सोचकर बोले, ‘बेटी, मैं समय से पहले मरना नहीं चाहता। काम नहीं करूंगा, तो हाथ पैर बेकार हो जाएंगे।खेत की माटी भी जब तक दम है फसल उगाती रहे, फिर हम तो ठहरे मानस। मेरी आंख खुली रह गई। अंतर्मन ग्लानि से भर गया। मुझे लगा पढ़-लिख कर भी मेरा ज्ञान तो अधूरा ही रहा। मन ही मन कुछ अच्छा करने का प्रण कर अपने शहर लौट गई। यह भी पढ़ें-काश! अगले जन्म में पति बनूं – गृहलक्ष्मी कहानियां -आपको यह कहानी कैसी लगी? अपनी […]
असहाय – गृहलक्ष्मी कहानियां
घर में पानी भरपूर आता था। हमेशा पानी से हौज भरा रहता था। घर में रहने वाले चार लोग, उसमें भी दो बच्चे और सास बहू। सुबह-सुबह मां जी की आंख खुली तो नित्य कर्म से निवृत्त हो सोचा नहा लूं, तब तक पानी भी आ जाएगा और जितना पानी नहाने में खर्च होगा, फिर […]
“” मुग्धा “”
सच में बहुत सोच समझ कर ही यह नाम रखा था दादी ने वो ऐसी ही थी जो उसे देखता बस मुग्ध हो जाता। दादी की देख रेख और मां के प्यार ने मुग्धा को सिर्फ रूप का ही नही गुणों का भी धनी बना दिया था। और एक कहावत ही शायद उसी के लिए […]
प्रायश्चित का रास्ता
समाज में आए दिन होने वाली दरिंदगी की खबरें क्यों पंखुड़ी को मीता की याद के साथ-साथ अपराधबोध से भर जाती थीं। क्यों पंखुड़ी अपनी बचपन की सखी मीता से मिलने से पहले असहज महसूस कर रही थी।
पतझड़ – एक मां ऐसी भी – गृहलक्ष्मी कहानियां
पेड़ का आखिरी पत्ता भी गिर गया था कल। ठूंठ रह गया था आज ,जिसका सूखना तय है। सूखने के बाद लड़की का इस्तेमाल लोग चाहे जिस रूप मे कर सकते हैं। जब तक हरा – भरा था अनगिनत पक्षियों का बसेरा बना, उनके तथा मोहल्ले के बच्चों का क्रीड़ास्थल बना। सावन मे स्त्रियों का झूला लगता था, शाम मे पुरुषों का चर्चा स्थल बनता था।
गृहलक्ष्मी की कहानियां : नियति
शादी के बाद से ही परित्यक्ता का जीवन व्यतीत कर रही माधवी के पति ने जब वापसी की इच्छा व्यक्त की तो माधवी और उसके बेटे ने जो निर्णय किया, उस पर उसे गर्व था…
