सच में बहुत सोच समझ कर ही यह नाम रखा था दादी ने वो ऐसी ही थी जो उसे देखता बस मुग्ध हो जाता। दादी की देख रेख और मां के प्यार ने मुग्धा को सिर्फ रूप का ही नही गुणों का भी धनी बना दिया था। और एक कहावत ही शायद उसी के लिए बनी थी। सोने का चम्मच मुंह में लेकर पैदा होने वाली, क्योंकि जहां उसके जन्म से पहले उसके बापू का व्यापार डगमग डगमग चल रहा था, वही व्यापार मुग्धा के जन्म के बाद दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की करने लगा था।

दिन बीतते गए और फिर वो दिन भी आया जब इस सोनचिरईया को बाबुल के आंगन से उड़ जाना था। बहुत सी दुआओं के साथ मुग्धा बाबुल के आंगन को सूना कर पी के देश चल पडी। नयी जिन्दगी के पहले ही कदम पर लडखडा गई मुग्धा। जिससे शादी तय हुई जिसके साथ फेरे हुए वो तो सामने सासू मां के साथ स्वागत के लिए खडा था तो कौन था वो जो पहलू में खडा था।

घबराई हुई मुग्धा को देखकर वहां उपस्थित लोगों की हंसी ही नहीं रूक रही थी। किसी तरह अपनी हंसी को रोककर सासु मां बोली,”ना ना परेशान मत हो बेटी यह सब तेरे देवर अमित की शरारत है। कितना बोला इसको कि तुम्हें बता देते हैं अमित और सुमित दोनों जुडवां हैं। कोई भी नहीं पहचान सकता कि कौन सुमित है और कौन अमित। पर नहीं, इसको तो सरप्राइज देना था ना अपनी भाभी को। अब तुम ही सम्भालो अपने लाड़ले देवर को।”

तभी पीछे से इकलौती नन्द चहक उठी,  “भाभी बी केयरफुल सुमित भैया को पहचानने में कभी धोखा मत खा जाना।”

और मुग्धा सच में हैरान परेशान सी सोच में पड गई, “अगर सच में वो पहचान ही नहीं पाई सुमित को, या दोनों भाइयों ने मिलकर कोई शरारत की तो, उफ, क्या करू मैं भगवान जी कैसा गोरखधन्धा है यह। इसी सोच विचार के चलते पहली ही रात अपना सारा डर कह बैठी मुग्धा सुमित से “

उसकी बात सुन धीमें लफ्जों से मुग्धा से बोला सुमित। कितनी भोली हो तुम मुग्धा जरा सी देर में क्या क्या सोच लिया अच्छा सुनो अमित सगा भाई है मेरा थोडा शरारती है पर दिल का बुरा नहीं, परेशान मत होना कभी जिन्दगी में भी वो तुम्हे परेशान नहीं करेगा रही बात मुझे पहचानने की तो उसका भी हल है मेरे पास। हमारा एक कोडवर्ड होगा।जिससे तुम्हे कोई परेशानी नही होगी मुझे पहचानने में अब तो खुश ना “

“और फिर सच में दिल से मुस्कुरा दी मुग्धा यह सोच कर कि भगवान ने कितना अच्छा जीवनसाथी दिया है उसे जिस बात को लेकर सुबह से परेशान थी वो कैसै चुटकी में हल कर दी वो समस्या सुमित ने “

अगले दिन से मुग्धा के नये जीवन की शुरूआत हूई। यूं ही हंसते गाते कब तीन महीने गुजर गये, किसी को पता भी ना लगा। अब तो मुग्धा के आंगन मे भी नया फूल खिलने वाला था। पर एक दिन जैसे ही सुमित खाना खाने बैठा एक फोन आ गया। और जब सुमित वापस लौटा तो सब यह देखकर हैरान रह गए कि खाने के पास एक बिल्ली मरी पडी थी। किसी ने सुमित को मारने की कोशिश की पर क्यों घर में कोई भी यह समझ नहीं पा रहा था।

फिर कुछ दिन और सरके। और फिर वो रोज जैसी ही शाम थी पर जाने क्यों आज सुबह से ही मुग्धा का दिल घबरा रहा था। जिसे वो अपना वहम मान कर बार बार अपने दिल को बहला लेती थी। पर आज शायद अनहोनी का ही दिन था। शाम धीरे धीरे रात मेंं बदल रही थी, पर सुमित का कुछ अता पता नहीं था ।और उपर से सितम यह कि उसका फोन भी बन्द आ रहा था। तभी एकाएक मुग्धा का फोन घनघना उठा। किसी का अस्पताल से फोन था। सुमित आईसीयू में था। किसी बड़े वाहन से टक्कर हुई थी सुमित की बाइक की।

पर भगवान की बहुत मेहर रही मुग्धा पर कि सुमित खतरे से बाहर था। आज तीन महीने के बाद सुमित घर आया था। मुग्धा ने पूरा घर को बिल्कुल दुल्हन सा सजा रखा था। कुछ दिन के बाद सुमित काफी हद तक अच्छा हो चुका था। अब तो वो अकेले चहलकदमी भी करने लगा था। करवाचौथ की रात थी। सुमित मुग्धा के संग तीसरी मजिल पर चांद का इन्तजार कर रहा था। तभी मुग्धा सुमित से बोली, “ओह सुनिये जी मैं गलती से अपनी ओढनी तो कमरे में ही भूल गयी। आप दो मिनट रुको मैं जल्दी से उसे लेकर आती हूँ।”

पर मुग्धा अपने कमरे तक भी नहीं पहुंच पाई थी तभी सुमित की दिल दहलाने वाली चीख सुन वो नंगे पाव छत पर भागी। ऊपर जाकर देखा तो सुमित कहीं नही था।

आज किस्मत मुग्धा पर मेहरबान नहीं थी। तभी मुग्धा को अपनी सास की आवाज सुनाई दी। वो उसे जल्दी से नीचे बुला रही थी। बदहवास सी मुग्धा जब नीचे पहुंची तो सास उसकी बलाएं लेती नहीं थक रही थी। वो मुग्धा को गले लगा कर बोली। तू सच मैं बहुत भाग्यवान है तेरी ही किस्मत से तेरा सुहाग हर बार मौत के मुंह से वापस आ जाता है आज ही देखो अचानक से एक ट्रक आ गया जो कि गद्दो से भरा था एक खरोंच भी नहीं आयी सुमित को।”

व्रत तो पूरा हो गया पर इस रोज रोज के हादसो ने तोड कर रख दिया था मुग्धा को। उस रात नींद उसकी आखों से कोसो दूर थी। दिल घबराने पर पर जब वो रसोई से पानी लेने गई। उस रात नींद उसकी आखों से कोसों दूर थी। दिल घबराने पर पर जब वो रसोई से पानी लेने गई तो अमित के कमरे से आती आवाज में अपना नाम सुनकर मुग्धा के कदम उसके कमरे के आगे ही थम गये। अमित अपने दोस्त से बात कर रहा था।

“बस बहुत हो गया यार हर बार वो सुमित बच जाता है। क्या क्या नहीं किया मैंने पर सब बेकार, नहीं रह सकता मैं मुग्धा के बिना, जबसे उसे देखा है ना पागल हो गया हूं मैं, और वो सुमित सिर्फ तीन मिनट बडा है मुझसे पर मां हर चीज पहले उसे देती है। आखिर बडा है ना वो पर अब और नहीं कल का दिन उसकी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा।”।

तभी आंधी की तरह मुग्धा अमित के कमरे मे पहुची और चिल्ला कर बोली। “बस अब औऱ नही बहुत कर ली तुमने अपनी मनमानी”

मुग्धा की आवाज सुनकर पूरा घर वहां आ गया। यह देखकर अमित ने सुमित पर गन तान दी। तभी मुग्धा उन दोनों के बीच आ गयी और इन तीनों की छीना छपटी में गन चल गई जो कि अमित को लग गयी। अमित को अपनी करनी का फल मिल गया औऱ मुग्धा कलयुग की सावित्री बन कर अपने सत्यवान को यमराज से वापस ले आयी।

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