तर्पण—गृहलक्ष्मी की कविता
Tarpan

Hindi Poem: अब कुछ दिन तक खूब पूजे जायेंगे,
क्या वो सचमुच धरती पर आयेंगे ?
दाल रोटी जिन्हें ना मिली समय से,
वो सुबह – सुबह ही खीर पूरी खायेंगे।
 क्या वो ————-

दो घड़ी उसके साथ बिताया नहीं कभी,
पुत्र होने का कर्तव्य निभाया नहीं कभी ।
उनको जीते – जी तृप्त नहीं कर पाए जो,
वहीं आज कल तर्पण का ढोंग रचायेंगे।
क्या वो —————

उसके मन की व्यथा कब किसी ने सुनी,
चेहरे पर बस बेबसी और लाचारी दिखी।
साथ रखना गवारा ना हुआ कभी भी,
अब वो घर की मुंडेर पर कौवे जिमायेगें।
क्या वो —————

माता -पिता की ही सेवा किया कीजिए,
इन से थोड़ा मुस्कुरा कर मिला कीजिए।
देव दर्शन जाने की जरूरत नही पड़ेगी,
धाम चारों यहीं पर ही हो जायेगें ।

अब कुछ दिन तक खूब पूजे जायेंगे,
क्या वो सचमुच धरती पर आयेंगे ?

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