सावन फिर से याद आया—गृहलक्ष्मी की कविता
Sawan Fir se Yaad Aaya

Sawan Poem: फिर से आज सावन में,वो गुजरा जमाना याद आया

आज की बरखा की बूंदों ने
फिर वही अमृत बरसाया।
वो पहला प्यार का इजहार
वो सावन में मधुर मिलन फिर से याद आया।
जब हम थे तुमसे मिले,
सुमन खुशियों के हमारे बीच खिले।
वो किशोरावस्था का अल्हड़पन,
वो पहला स्पर्श तुम्हारा आज फिर याद आया।
फिर से आज सावन में…
थी आज की तरह ही धीमी-धीमी सी बारिश,
वो बूंदो का अमृत हमने पिया,
फिर बूंदो का हमको पीना
बारिश का वो नशा हमको आज फिर याद आया।
वो लुक्का छुप्पी करती चांद की रोशनी में,
थी जगमगाती बारिश की बूंदे।
वो बारिश की बूंदो में चांद का समर्पण,
वो पहले प्रेम का इजहार फिर याद आया।
याद आया चेहरा तेरा लजाता,
बूंदो के मोती से स्वर्णिम से सजा था।
गुलाबी से चेहरे पर,
सलोनी सादगी संग तेरा भोलापन फिर याद आया।
पहली बार मेरा तेरे हाथों को पकड़ना,
वो उंगलियों का तेरी शर्म से झिझकना।
वो तेरा चेहरा झुकाना,शरमाना,
फिर मन ही मन हमारा मुस्कुराना याद आया।

फिर से आज सावन में,वो गुजरा जमाना याद आया

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