मैं लड़की हूं-गृहलक्ष्मी की कविता
Mein Ladaki Hoon

Hindi Poem: मैं लड़की हूं,पर अब लड़की नहीं रहना चाहती
सोचती थी, मैं भी अपने माता पिता के
जीने का सहारा बनूँ, एक डॉक्टर बनी
लड़की थी तो क्या ,मैं भी सर ऊंचा कर जी रही थी
आज सोच बदल गई मेरी
काश मैं भी लड़का होती

मुझे भी मनमानी करने का लाइंसेंस मिल जाता
रात को घर आती ,ना आती कौन पुछता
लड़कियों की इज़्ज़त की धज्जियां उड़ाती
बलात्कार करती ,
जुर्म की हर इंतहा को पार कर जाती
माता पिता कौन सा मुझे सजा देते
ये समाज भी मौन अधर ले,
सिर्फ तमाशबीन बन कर रह जाता
फिर यही ज़हन में आता है
काश मैं भी एक लड़का होती

आज लड़की हूं तो किसी के छेड़ने का लाइंसेंस हूं
राह चलते मनचलों का ,उपहार हूं मैं
पढ़ी लिखी लड़की थी ,फिर भी
हर बार लड़कों से हारी
मिट दिया गया वजूद मेरा
ओर आज यही सोचती हूं
काश मैं भी लड़का होती

वीर नारियों की गाथा सुनी
गर्व हुआ अपने पर मैं भी नारी हूँ
आज का दौर कुछ यूं बदला
ये समाज रक्षक नहीं बस केंडिल मार्च करता है
ये सब कर यही अल्फाज़ जुबा पर आते है
काश मैं भी लड़का होती .
काश मैं लड़का होती तो शायद आज ज़िंदा होती
काश मैं भी लड़का होती

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