तन से दूर थे ही मन से
मन की भी दूरी हैै
बेटों को कमाना जरूरी है
परिवार चलाना जरूरी है
वे भी जानते हैं उनके बेटे
पढ़-लिखकर कुछ बनेंगे
तो उन्हें जाना
होगा वृद्धाश्रम में।
आजकल यही रीत है
माता-पिता की महत्वाकांक्षायें
भी अजीब है
बच्चों को पैकेज बना दिया
अब पैकेज क्या कर सकता है
देखभाल तो बिल्कुल नहीं
हां संसार की रीत निभाने
आना पड़ता है
अंतिम संस्कार के लिए
शेष संस्कर बेकार के ढ़ोंग हैं
सभ्य कहां हैं
कैसा कुसमय है
यही चल रहा है
बुढ़ापा वृद्धाश्रम में जवानी
पैकेज में चल रही है
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