पीरियड होने पर करवा चौथ का व्रत कैसे करें?
Karwa chauth Fast During Periods : पीरियड्स के दौरान करवा चौथ का व्रत रखने को लेकर कई महिलाओं के मन में सवाल होते हैं, क्योंकि धर्म और परंपराओं में इसे लेकर विभिन्न मान्यताएं होती हैं। आइए जानते हैं इस बारे में-
Karwa Chauth Fast During Periods : पीरियड के दौरान करवा चौथ का व्रत रखने को लेकर अक्सर लोगों के मन में कई तरह से सवाल उठते हैं? क्योंकि यह एक धार्मिक और शारीरिक प्रक्रिया दोनों से जुड़ा विषय है। धर्म और परंपरा के अनुसार, कई परिवारों में मासिक धर्म के दौरान पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों में भाग लेना वर्जित माना जाता है, लेकिन यह पूरी तरह से व्यक्तिगत और परिवारिक परंपराओं पर निर्भर करता है। अगर आप पीरियड्स के दौरान करवा चौथ का व्रत रखना चाहती हैं, तो कुछ विकल्पों और सुझावों को अपना सकती हैं। आइए जानते हैं इस बारे में-
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व्रत रखें लेकिन पूजा न करें

अगर आपके परिवार की परंपरा पूजा करने की अनुमति नहीं देती, तो आप व्रत रख सकती हैं लेकिन पूजा में भाग न लें। आप कथा सुनने या सुनाने के लिए किसी अन्य महिला या घर के सदस्य को कह सकती हैं। आप अपना उपवास जारी रख सकती हैं और चंद्रमा के उदय के बाद व्रत खोल सकती हैं।
मानसिक पूजा और ध्यान
अगर शारीरिक रूप से पूजा करना संभव नहीं है, तो आप मानसिक रूप से पूजा और ध्यान कर सकती हैं। मन से भगवान की प्रार्थना, ध्यान और संकल्प भी समान महत्व रखते हैं। इसे अपने मन से समर्पण की भावना के साथ कर सकती हैं।
किसी अन्य दिन उद्यापन करें
यदि पीरियड्स के कारण पूजा और व्रत में भाग लेना मुश्किल हो, तो आप उद्यापन या पूजा को अगले दिन या किसी और शुभ दिन कर सकती हैं। यह व्यक्तिगत और पारिवारिक परंपराओं पर निर्भर करता है कि कब आप इसे करना उचित मानती हैं।
परिवार की परंपरा और मान्यता
कई परिवारों में पीरियड्स के दौरान पूजा और व्रत करने की अनुमति होती है, जबकि कुछ परिवारों में इसे वर्जित माना जाता है। इसलिए अपने परिवार की परंपराओं और नियमों का सम्मान करते हुए निर्णय लें।

सहजता और स्वास्थ्य का ध्यान रखें
मासिक धर्म के दौरान शरीर में कमजोरी या थकावट महसूस हो सकती है। इसलिए इस समय उपवास रखते हुए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। ज्यादा कमजोरी महसूस होने पर, डॉक्टर से सलाह लेकर निर्णय लें।
करवा चौथ के व्रत का उद्देश्य पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के साथ प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। अगर आप शारीरिक रूप से पूजा में शामिल नहीं हो पातीं, तो भी आपकी भावना और श्रद्धा ही सबसे महत्वपूर्ण है।
