शादी के बाद मेल फ्रेंड्स के साथ कैसे अपनी दोस्ती करें मेंटेन: Friendship after Marriage
Maintain Friendship after Marriage

Friendship After Marriage: दोस्ती ऐसा अनूठा बंधन है जो जाति-धर्म, ऊंच-नीच यहां तक कि उम्र और लिंगभेद के फासले को भी मिटा देता है। दोस्ती का अनोखा रिश्ता अलग-अलग देशों, संस्कृतियों, रीति-रिवाजों, भाषाओं की सीमाएं भी लांघ जाता है। अलग-अलग कार्यक्षेत्र, विचारों, रुचियों के लोगों को आपस में जोड़ता है और जिंदगी भर एक-दूसरे का साथ निभाने के लिए प्रेरित करता है। अपने आसपास नजर दौड़ाएं तो आपको सालोंसाल चलने वाली दोस्ती के कई उदाहरण देखने को जरूर मिल जाते हैं।

महिला और पुरुष दोनों का दोस्ती का नजरिया अलग

Friendship after Marriage
Friendship After Marriage

जहां तक स्त्री-पुरूष की दोस्ती की बात है-हालांकि हमारे वर्तमान समाज में भी इसे स्वीकारा जा रहा है। सिर्फ शारीरिक आकर्षण या प्यार तक ही सीमित न रहकर इनकी दोस्ती मर्यादित बेस्ट फ्रैंडशिप का भी रूप ले रही है। बिना किसी रिलेशन के इनमें दोस्ती सालोंसाल चलती है और आपसी समझ के बल पर शादी के बाद भी बनी रहती है। हालांकि इस दोस्ती में महिला हो या पुरूष-दोनों का रिश्ता को बनाए रखने का नजरिया और तरीका अलग होता है।

महिला-पुरूष अपनी निर्धारित बाउंडरीज में रहते हुए भी एक-दूसरे के लिए जी-जान से मदद करते हैं। दोस्ती के रिलेशनशिप को निभाने के उनके रवैये में भी काफी अंतर देखने को मिलता है। महिलाएं जहां रिलेशनशिप में भावनात्मक रूप से अपेक्षाकृत ज्यादा गहराई से जुड़ी होती हैं। दोस्ती को मजबूत रिश्ता मानकर पुरूष दोस्तों के साथ पर्सनल बातों भी शेयर कर लेती हैं। वहीं अधिकतर पुरूष दोस्ती को सुपरफीशियल लेवल या सतही तौर पर रिलेशनशिप मेंटेन करते हैं। वो ज्यादातर एक्टिविटी-बेस्ड या काम से काम रखने वाली रिलेशनशिप में यकीन करते हैं, अपनी पर्सनल बातों को कम ही शेयर करते हैं। हालांकि हमारे समाज में महिला-पुरूष की दोस्ती पर कई सवाल उठते हैं और उनकी दोस्ती को शक की निगाहों सेे देखा जाता है। फिर भी इनमें दोस्ती अच्छी होती है और शादी के बाद भी लांग टर्म तक टिकी रह सकती है।

शादी के बाद दोस्ती में आता है फर्क

बेशक शादी के बाद महिला हो या पुरूष दोनों की जिंदगी बदल जाती है और उनकी दोस्ती में फर्क आ जाता है। शादी के जन्म-जन्मांतर के वचनबद्ध रिश्ते में बंधने के बाद उनकी प्राथमिकताएं-जिम्मेदारियां बदल जाती हैं, उनकी धूरी अपने जीवनसाथी के इर्द-गिर्द घूमती रहती है और अपनी घर-गृहस्थी को संवारने में रम जाते हैं। हमारे समाज में यह अपेक्षाएं अपने मां-बाप का घर छोड़कर आई महिला से ज्यादा की जाती हैं। हालांकि आज के आधुनिक दौर के बावजूद हमारे समाज में शादीशुदा महिला की पुरूषों के साथ दोस्ती को आसानी से स्वीकृति नहीं मिल पाती। फिर भी अपने पति और घर-परिवार की आपसी समझ, भरोसे और रज़ामंदी के चलते महिलाएं शादी के बाद भी अपनी दोस्ती बाखूब मेंटेन कर पाती हैं।

असल में देखा जाए तो शादीशुदा जिंदगी का आधार प्यार और विश्वास है। साइकिल के दो पहिये के समान है। अगर वो दोनों समानांतर गति में और पूरे सामंजस्य के साथ चले, तभी जिंदगी की गाड़़ी बिना किसी बाधा के आगे बढ़ती रहती है। पुरूष दोस्ती के कारण शादीशुदा जिंदगी में आने वाली खटास के अंदेशे से अक्सर महिलाएं दोस्ती से पीछे हट जाती हैं। या फिर उन्हें दोस्तों से दोस्ती बरकरार रखती हैं जिनके साथ जीवनसाथी कंफर्टेबल हो। अगर आप अपनी दोस्ती को मेंटेन करना चाहते हैं तो कुछ बातोे का ध्यान रखना जरूरी है-

शादी के बाद अपनी दोस्ती जारी रखें या नहीं?

Handle Friendship After Marriage
Handle Friendship After Marriage

यह निर्णय महिला को अच्छी तरह सोच-समझकर लेना चाहिए। उसके पक्ष-विपक्ष पर बिना किसी दवाब के सोचना चाहिए। जिंदगी के इस मोड़ पर पुरानी दोस्ती की कितनी अहमियत है। अगर वो जारी रखती है तो भविष्य में उसके क्या परिणाम हो सकते हैं। उसके मन में यह आशंका तो रहती है कि उसका जीवनसाथी या ससुराल के लोग उसकी दोस्ती को समझें। लेकिन दोस्ती की खातिर जीवनसाथी के रिश्ते में कहीं दरार न आ जाए।

पार्टनर से करें दोस्ती के बारे में खुलकर बात

वैसे तो शादी के बाद पुरूष दोस्त होना गलत नहीं है। लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं रहती। क्योंकि समाज इस रिश्ते को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता। इसके लिए सबसे जरूरी है अपने जीवनसाथी के प्रति ईमानदारी और पूरी निष्ठा निभाना। महिला को अपने दोस्त और उनकी दोस्ती के बारे में अपने जीवनसाथी के साथ खुलकर बात करनी चाहिए। उन्हें अपनी दोस्ती को जारी रखने की इच्छा से अवगत कराना चाहिए।

समझदारी से लें काम

लेकिन महिला को अपनी दोस्ती को लेकर जीवनसाथी के मन में किसी भी तरह की दुविधा की आशंका हो, तो उसे समझदारी से काम लेना चाहिए। महिला को यह बिल्कुल नहीं समझना चाहिए कि जीवनसाथी उस पर विश्वास नहीं कर रहा है। इसके लिए किसी तरह की लड़ाई करना या अपशब्द नहीं बोलने चाहिए। बल्कि उनके अस्वीकरण के पीछे मूल वजह को जानना जरूरी है। संभव है कि महिला का पार्टनर उनके दोस्त और उनकी दोस्ती को नहीं जानते। महिला का फर्ज़ बनता है कि वह अपने दोस्त के साथ रिश्ते के बारे में खुले तौर पर समझाना चाहिए।

अगर पार्टनर कंफर्टेबल नहीं है, तो महिला को गहराई से सोचना चाहिए। महिला को खुद को एक बार ऐसी स्थिति में रखकर देखने और समझने की कोशिश करनी चाहिए। उसके जीवनसाथी का रिलेशनशिप भी अगर किसी महिला के साथ हो, तो वह कैसा महसूस करेंगी। इससे महिला अपने पार्टनर की मनःस्थिति को समझेंगी और किसी तरह के गलत मनोभावों से ग्रसित होने से बच पाएंगी।

आमतौर पर माना जाता है कि अगर महिला का जीवनसाथी दोस्ती मेंटेन करने के लिए मना कर रहा है तो वह आप पर शक कर रहा है। लेकिन यह जरूरी नहीं है। आपका पार्टनर शक्की-मिजाज़ वाले न होकर आपके प्रति ओवर प्रोटेक्टिव, पजेसिव हो सकते हैं।ऐसा करना आपके लिए उनका प्यार और केयर को दर्शाता है। क्योंकि पुरूष होने के नाते वो भी जानते हैं कि पुरूषवादी सोच क्या हो सकती है। आपको उनके प्रति पॉजीटिव सोचना चाहिए और जीवनसाथी के साथ रिश्ते में किसी तरह की दरार आने से बचना चाहिए।

शादी के बाद तय करें बाउंडरीज

Maintain Distance
Friendship After Marriage-Maintain Distance

जहां तक पुरूष दोस्त और अपनी दोस्ती के रिश्ते का सवाल है- महिलाओं को शादी के बाद बाउंडरीज तय करनी जरूरी हैं। अगर महिला की प्राथमिकता अपनी शादीशुदा जिंदगी और उसका जीवनसाथी है। तो व्यावहारिक तौर पर पुरूष दोस्त के साथ रिश्ता मर्यादित दायरे में ही मेंटेन करना चाहिए।

मनोवैज्ञानिक तौर पर देखे तो विपरीत लिंग के कारण महिला-पुरूष दोनों के दिल के किसी कोने में एक-दूसरे के प्रति आकर्षण, आसक्ति या भावनात्मक जुड़ाव होना संभव हैै। इसी आकर्षण के चलते कई बार महिला अपने जीवनसाथी के साथ तुलनात्मक रवैया अपनाने लगती हैं जो शादीशुदा जिंदगी में तकरार का अहम् कारण बनता है। और अगर महिला अपनी शादीशुदा जिंदगी से नाखुश है या आपसी तकरार की वजह से आत्म सम्मान आहत होता है। ऐसी स्थिति में उनका झुकाव अपने दोस्त के साथ बढ़ सकता है और उनके बीच मौजूद बाउंडरीज खत्म होने की संभावना रहती है। ऐसी स्थिति सामाजिक तौर पर यह गलत है और महिला-पुरूष की दोस्ती के रिलेशनशिप पर उंगलियां उठाती है।

(डॉ कोमल वर्मा, प्रोग्राम लीडर, मनोविज्ञान विभाग, ब्रिटिश यूनिवर्सिटी, बहरीन)