शादी – एक ऐसा पवित्र रिश्ता है, जिसमें दो अनजान लोग पति और पत्नी के रूप में एक ऐसे रिश्ते में बंध जाते हैं। अब चाहे इस रिश्ते को हम घर की गाड़ी को चलाने वाले दो पहिये बोलें या फिर एक सिक्के के दो पहलू, बात एक ही है। सात फेरों के दौरान दिये गये सात वचनों के बाद दोनों ज़िन्दगी भर के लिए एक दूसरे के सुख दुःख के साथी बन जाते हैं। यानी हर चीज़ में दोनों की बराबर की ज़िम्मेदारी और हक़ भी बराबर के हो जाते हैं। जब हर चीज़ में दोनों का स्थान एक जैसा है तो फिर कानूनी अधिकार के मामलों में क्यों नहीं?
बेशक आज ज़माना बदल गया है, लड़कियां पढ़ लिख कर अपने पांव पर खड़ी हो रही हैं, परन्तु कहीं न कहीं आज भी इतना शिक्षित होने पर भी अपने कानूनी अधिकारों से अनजान हैं। स्त्री हो या पुरुष आज दोनों ही अपने भविष्य को लेकर गंभीर है और किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहते। ऐसे में पति और पत्नी दोनों को ही भारतीय कानून द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए।
1. समान वेतन का अधिकार
लिंग के आधार पर किसी के साथ भी भेदभाव नहीं है।
2. काम पर हुए उत्पीड़न के खिलाफ अधिकार
काम की जगह पर हो रहे यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का पूरा अधिकार है।
3. नाम न छापने का अधिकार
यौन उत्पीड़न के मामले में अपनी गोपनीयता की रक्षा के लिए नाम न छापने का अधिकार है।
4. घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार
ये अधिनियम मुख्य रूप से पति, पुरुष लिव इन पार्टनर या रिश्तेदारों द्वारा एक पत्नी, एक महिला लिव इन पार्टनर या फिर घर में रह रही किसी भी महिला जैसे मां या बहन पर की गई घरेलू हिंसा से सुरक्षा करने के लिए बनाया गया है।
5. मातृत्व संबंधी लाभ के लिए अधिकार
कामकाजी महिलाओं को खासतौर पर ये सुविधा देनी चाहिए कि प्रसव के बाद (तीन महीने) तक महिला के वेतन में कोई कटौती न हो और वो फिर से काम शुरू कर सके।
6. कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार
गर्भाधान और प्रसव से पूर्व लिंग चयन और कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज़ उठाने का अधिकार है।
7. मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार
बलात्कार की शिकार हुई किसी भी महिला को मुफ्त कानूनी मदद पाने का पूरा अधिकार है।
8. रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार
किसी भी महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, किसी खास मामले में एक प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही ये संभव है।
9. गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार
किसी मामले में अगर आरोपी एक महिला है तो, उस पर की जाने वाली कोई भी चिकित्सा जांच प्रक्रिया किसी महिला द्वारा या किसी दूसरी महिला की उपस्थिति में ही होनी चाहिए।
10. संपत्ति पर अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत नए नियमों के आधार पर पुश्तैनी संपत्ति पर महिला और पुरुष दोनों का बराबर हक है।
11. स्त्रीधन पर पत्नी का जायज हक
एक दूसरे से अलग रह रहे दम्पति कानून की नजर में तब तक पति पत्नी ही माने जाएंगे, जब तक कि उनका तलाक नहीं हो जाता। ऐसे में पति से अलग रहने के बावजूद पत्नी का स्त्रीधन पर पूरा हक है और वह उसे अपनी मर्जी से उपयोग में लाने का भी अधिकार रखती है।
12. चल-अलचल संपत्ति में पुरुष और महिला, दोनों का बराबर मालिकाना हक़
इसके तहत तलाक होने पर पति और पत्नी के बीच सारी संपत्ति बराबर-बराबर बांटी जाएगी। इस बात से फर्क नहीं पड़ेगा कि कोई संपत्ति पति ने खरीदी है या पत्नी ने।
13. पति को भी मिले गुजारा भत्ता
पति के बराबर ही कमाने वाली महिला को पति से गुजारा भत्ता पाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
14. पत्नी से पीड़ित पति को तलाक का अधिकार
पति के साथ यदि पत्नी और उसके परिवार के लोग क्रूरता करते हैं तो उसे तलाक पाने का पूरा अधिकार है।
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