हिरनापुर के लोग इंतजार करते रहे, इंतजार करते रहे, पर मोहना नहीं लौटा। अंग्रेजों ने उससे किस तरह का बदला लिया होगा, सोचकर सब उदास थे।
तभी जेलखाने के किसी कैदी ने संदेश भेजा, “मोहना अब कभी नहीं लौटेगा। आज की रात उसके जीवन की आखिरी रात…!”
सुबह हिरनापुर के लोगों ने देखा, मोहना का शव गाँव के तालाब किनारे वाले बरगद के पेड़ से झूल रहा है।
लोगों ने देखा तो गुस्से से उबल पड़े। पर गाँव में चप्पे-चप्पे पर अंग्रेजी सरकार के सिपाही मौजूद थे। डंडे और लाठियाँ लिए, लेफ्ट-राइट…लेफ्ट-राइट करते हुए। कहा गया, “मोहना जेल की दीवार फाँदकर भाग आया था। फिर न पकड़ा जाऊँ, इस खौफ से उसने खुद ही फाँसी लगा ली।”
पर यह ऐसा सफेद झूठ था, जिस पर यकीन करना तो दूर, हँसना भी मुश्किल था।
उस दिन हिरनापुर गाँव में किसी घर में खाना नहीं बना। मोहना किसी का नहीं था, पर अब वह गाँव में हर किसी का अपना हो गया था।
अगले दिन से गाँव की स्त्रियों ने उस बरगद की पूजा करनी शुरू कर दी, जिस पर मोहना को फाँसी दी गई थी।
यही वह पेड़ था, जिसके नीचे मोहना अपना प्यारा इकतारा बजाया करता था और बच्चों को एक से एक सुंदर कहानियाँ सुनाता था।…उन्हीं में चंदा मामा की दुनिया से धरती पर आए एक रूपदुलारे बच्चे की कहानी भी थी, जो हमेशा किलकता रहता था। दूर तक उसकी नन्ही दँतुलियों की हँसी और किलकारियाँ गूजतीं।…फिर एक दिन वह रूठकर आसमान में चला गया…
वह मोहना का अपना बेटा था…
उसके जाने पर मोहना बैरागी बन गया और उसके हाथों में इकतारा आ गया…
जैसे नन्ही-नन्ही दँतुलियों से हँसता उसका वह रूपदुलारा बेटा ही अब इकतारा बनकर, सारी धरती को प्यार के संगीत से भर देना चाहता हो।…
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
