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bhootnath by devkinandan khatri

अब हम कुछ हाल जमना, सरस्वती और इंदुमति का बयान करना उचित समझते हैं। जब महाराज शिवदत्त से बदला लेने का का विचार करके प्रभाकर सिंह नौगढ़ की तरफ रवाना हो गये तो उनके चले जाने के बाद बहुत दिनों तक जमना और सरस्वती के कोई भी ऐसा मौका हाथ न आया कि भूतनाथ से कुछ छेड़छाड़ करें और न भूतनाथ ही ने उनके साथ कोई बदसलूकी की, हाँ यह जरूर होता रहा कि जमना और सरस्वती भूतनाथ की घाटी में ताक-झाँक करके इस बात की बराबर टोह लगाती रहीं कि भूतनाथ क्या करता है अथवा किस धुन में है।

भूतनाथ नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1

थोड़े ही दिनों में उन दोनों को मालूम हो गया कि भूतनाथ अब इस घाटी में नहीं रहता, न-मालूम वह कहीं चला गया उसने जगह बदल दी। बहुत दिनों तक उनकी लौंडियाँ और ऐयार इस विषय का पता लगाने के लिए इधर-उधर दौड़ती रहीं मगर सफल-मनोरथ न हो सकीं। कुछ दिन बीत जाने के बाद यह मालूम हुआ कि भूतनाथ अपने मालिक रणधीरसिंह के यहाँ चला गया तथा बराबर एक चित्त से उन्हीं का काम किया करता है और उन्हीं के यहाँ स्थिर भाव से रहता है। यह बात इन दोनों को अच्छी नहीं मालूम हुई और इन दोनों ने समझा कि अब भूतनाथ से बदला लेना कठिन हो गया तथा अब बिना प्रकट भये काम नहीं चलेगा। कई दफे उन दोनों ने सोचा कि रणधीरसिंह के यहाँ चली जाए और जो कुछ मामला हो चुका है उसे साफ कह के भूतनाथ को सजा दिलावें, परन्तु इन्द्रदेव ने ऐसा करने से मना किया और समझाया कि अगर तुम वहाँ चली जाओगी तो रणधीरसिंह मुझसे इस बात के लिए रंज हो जाएँगे कि मैंने इतने दिनों तक तुम दोनों को छिपा रखा और झूठ ही मशहूर कर दिया कि जमना और सरस्वती मर गयीं, साथ ही इसके हमसे और भूतनाथ से भी खुल्लम-खुल्ला लड़ायी हो जाएगी। केवल इतना ही नहीं, यह भी सोच रखना चाहिए कि रणधीरसिंह भूतनाथ का कुछ बिगाड़ न सकेंगे, सिवाय इसके कि उसे अपने यहाँ से निकाल दें बल्कि ताज्जुब नहीं कि भूतनाथ रणधीरसिंह से रंज होकर उन्हें भी किसी तरह की तकलीफ पहुँचावे।

इन्द्रदेव का यह विचार भी बहुत ठीक था, इसलिए दोनों बहुत दिनों तक चुपचाप बैठी रह गयी और रणधीरसिंह के यहाँ भी न गई।

इसी तरह सोचते-विचारते और समय का इंतजार करते वर्षों बीत गये और इस बीच में जमना, सरस्वती और इंदुमति प्राय: घूमने-फिरने के लिए इस घाटी से बाहर निकलती रहीं।

एक दिन माघ के महीने में दोपहर के समय अपनी कई लौंडियों को साथ लिए हुए वे तीनों भेष बदले हुए उस घाटी के बाहर निकलीं और जंगल में चारों तरफ घूम-फिरकर दिल बहलाने लगीं। यकायक उनकी निगाह एक मरे हुए घोड़े पर पड़ी जिस पर अभी तक चारजामा कसा हुआ था। वे सब ताज्जुब में आकर उसके पास गईं और गौर से देखने लगीं। यह घोड़ा कई जगह से जख्मी हो रहा था जिससे गुमान होता था कि किसी लड़ाई में इसके सवार ने बहादुरी दिखाई और अंत में किसी सबब से यह भाग निकला है, संभव है कि इसका सवार लड़ाई में गिर गया हो। मगर इस बात पर भी बिमला का विचार नहीं जमा, वह यही सोचती थी कि जरूर यह अपने सवार को लेकर भागा है, अस्तु बिमला आँख फैलाकर चारों तरफ इस खयाल से देखने लगी कि शायद इस घोड़े की तरह गिरा हुआ कोई आदमी भी कहीं दिखाई दे जाय।

बिमला, कला और इंदुमति घूम-घूमकर इसका पता लगाने लगी और आखिर थोड़ी देर में एक आदमी पर उनकी निगाह पड़ी। ये सब तेजी के साथ घबराई हुई उसके पास गईं और देखा कि प्रभाकर सिंह बेहोश पड़े हुए हैं, उनका कपड़ा खून से तरबतर हो रहा है, और उनके बदन में कई जगह तलवार के जख्म लगे हुए हैं तथा सर में भी एक भारी जख्म लगा हुआ है जिससे निकले हुए खून के छींटे चेहरे पर अच्छी तरह पड़े हुए हैं। लड़ाई के समय जो तलवार उनके हाथ में थी इस समय भी उसका कब्जा उनके हाथ ही में है।

प्रभाकर सिंह को इस अवस्था में देखते ही इंदुमति एक दफे चिल्ला उठी और उसकी आँखों में आँसू भर आए, परन्तु तुरन्त ही उसने अपने दिल को संभाल लिया तथा जमना और सरस्वती की तरफ देखा जिनकी आँखों में आँसू की धारा बह रही थी और खैर जो बड़े गौर से प्रभाकर सिंह के चेहरे पर निगाह जमाए हुए थी।

इंदुमति : (जमना से) बहिन, तुम इनके चेहरे की तरफ क्या देख रही हो? जो बातें देखने लायक हैं पहिले उन्हें देखो इसके बाद रोने-धोने का खयाल करना।

जमना: (ताज्जुब से) सो क्या है?

इंदुमति : पहिले तो यह देखो कि इनके पीठ में भी कोई जख्म लगा है या नहीं जिससे यह मालूम हो सके कि इन्होंने लड़ाई में पीठ तो नहीं दिखाई है, इसके बाद इस बात की जाँच करो कि इनमें कुछ दम है या नहीं। अगर इन्होंने लड़ाई में वीरता दिखाई और बहादुरी के साथ प्राण-त्याग किया है तो कोई चिंता नहीं, मैं बड़ी प्रसन्नता से इनके साथ सती होकर कर्त्तव्य पूरा करूँगी, और इनके हाथ की तलवार मुझे पूरा विश्वास दिलाती है कि उन्होंने लड़ाई में पीठ नहीं दिखाई।

जमना: मेरा भी यही खयाल है, और वीर पत्नियों के लिए रोना कैसा? उन्हें तो हरदम अपने पति के साथ जाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

सरस्वती : (प्रभाकर सिंह की नाक पर हाथ रख कर) जीते हैं! जख्मी होने के सबब से बेहोश हो गये हैं!!

सरस्वती की बात सुनकर जमना और इंदुमति ने भी उन्हें अच्छी तरह देखा और निश्चय कर लिया कि प्रभाकर सिंह मरे नहीं हैं और इलाज करने से बहुत जल्द अच्छे हो जाएँगे। अब पुन: इंदुमति की आँखों से आँसू की धारा बहने लगी तथा जमना और सरस्वती ने उसे समझाया और दिलासा दिया। इसके बाद सब कोई मिल-जुलकर प्रभाकर सिंह को उठाकर घाटी के अन्दर ले गईं और बँगले के बाहर दालान में एक सुन्दर चारपाई पर लेटा कर उन्हें होश में लाने का उद्योग करने लगीं।

मुँह पर केवड़ा और बेदमुश्क छिड़कने तथा लखलखा सुंघाने से थोड़ी ही देर में प्रभाकर सिंह चैतन्य हो गए और जमना की तरफ देखकर बोले, “मैं कह हूँ?”

जमना: आप घाटी में हैं जहाँ हम दोनों बहिनों तथा इंदुमति से मुलाकात हुई थी।

प्रभाकर सिंह : (चारों तरफ देखकर) ठीक है, मगर मैं यहाँ कैसे आया?

जमना: पहिले ये बताइए कि आपकी तबीयत कैसी है?

प्रभाकर सिंह : अब मैं अच्छा हूँ, होश में हूँ और सब कुछ समझ सकता हूँ। मगर आश्चर्य में हूँ कि यहाँ कैसे आया!

जमना: हम लोग घाटी के बाहर घूमने के लिए गई हुई थी जहाँ आपको बेहोश पड़े हुए देखकर उठा लाई। उस जगह एक घोड़ा भी मरा हुआ दिखाई दिया, कदाचित् वह आप ही का घोड़ा हो।

प्रभाकर सिंह : बेशक् वह मेरा ही घोड़ा होगा, जानवर होकर भी उसने मेरी बड़ी सहायता की और आश्चर्य है कि इतनी दूर तक उड़ाए हुए ले आया।

इंदुमति : क्या वह घोड़ा लड़ाई में से आपको भगा लाया था?

प्रभाकर सिंह : हाँ, लड़ाई ऐसी गहरी हो गई थी कि संध्या हो जाने पर भी दोनों तरफ की फौजें बराबर दिल तोड़कर उड़ती ही रह गईं यहाँ तक कि आधी रात हो जाने पर मैं और महाराज सुरेन्द्रसिंह का सेनापति तथा कुँअर बीरेन्द्रसिंह लड़ते हुए दुश्मन की फौज में घुस गए और मारते हुए उस जगह पहुँचे जहाँ कमबख्त शिवदत्त खड़ा हुआ अपने सिपाहियों को लड़ने के लिए ललकार रहा था। चाँद की रोशनी खूब फैली हुई थी और बहुत से माहताब भी जल रहे थे इसलिए एक-दूसरे के पहिचानने में किसी तरह तकलीफ नहीं मालूम हो सकती थी। महाराज शिवदत्त मुझे अपने सामने देखकर झिझका और घोड़ा घुमाकर भागने लगा, मगर मैंने उसे भागने की मोह लत नहीं दी और एक हाथ तलवार का उसके सर पर ऐसा मारा कि वह घोड़े की पीठ पर से लुढ़क कर जमीन पर आ रहा। मुझे उस समय बहुत जख्म लग चुके थे और मैं सुबह से उस समय तक बराबर लड़ते रहने के कारण बहुत ही सुस्त हो रहा था, जिस पर महाराज शिवदत्त के गिरते ही बहुत-से दुश्मनों ने एक साथ मुझ पर हमला किया और चारों तरफ से घेरकर मारने लगे गर मैं हताश न हुआ, दुश्मनों के वार को रोकता और तलवार चलाता हुआ उस मंडली को चीरकर बाहर निकला। उस समय मेरा सर घूमने लगा और मैं दोनों हाथों से घोड़े का गला थाम उससे चिपट गया। फिर मुझे कुछ भी खबर न रही, मैं नहीं कह सकता कि इसके आगे क्या हुआ!

इंदुमति : (प्रसन्न होकर) बेशक् आपने बड़ी बहादुरी की। घोड़ा भी उस समय समझ गया कि अब आप बेहोश हो गए हैं और इसलिए आपको यहाँ से ले भागा।

प्रभाकर सिंह : बेशक् ऐसा ही हुआ होगा।

जमना : अब आप आज्ञा दीजिए तो कपड़े उतार कर आपके जख्म धोए जाएँ।

प्रभाकर सिंह : जरा और ठहर जाओ क्योंकि मैं उठकर मैदान जाने का इरादा कर रहा हूँ। जख्म मुझे बहुत गहरे नहीं लगे हैं, इन पर कुछ दवा लगाने की जरूरत न पड़ेगी, केवल धोकर साफ कर देना ही काफी होगा! मेरे लिए एक धोती और गमछे का बंदोबस्त करो और दो आदमी सहारा देकर उठाओ तथा मैदान की तरफ ले चलो।

जमना : बहुत अच्छा, ऐसा ही होगा।

इतना कहकर जमना ने एक लौंडी की तरफ देखा। वह सामान दुरुस्त करने के लिए वहाँ से चली गई और दूसरी लौंडी ने बाहर जाने के लिए जल का लोटा भरकर अलग रख दिया। प्रभाकर सिंह ने उठने का इरादा किया, जमना, सरस्वती और इंदु ने सहारा देकर उन्हें उठाया बल्कि खड़ा कर दिया। जमना और इंदु का हाथ थामे हुए प्रभाकर सिंह धीरे-धीरे वहाँ से मैदान की तरफ रवाना हुए तथा पीछे कई लौंडियाँ भी जाने लगीं। उस समय वहाँ हरदेई लौंडी भी मौजूद थी जिसका हाल ऊपर के बयान में लिख आए हैं। हरदेई ने जल से भरा हुआ लोटा उठा लिया और प्रभाकर सिंह के साथ जाने लगी।

कुछ दूर आगे जाने पर प्रभाकर सिंह ने कहा, “इस तरह चलने और घूमने से तबीयत साफ हो जाती है, तुम लोग अब ठहर जाओ मैं अब सिर्फ एक लौंडी के हाथ का सहारा लेकर और आगे जाऊँगा।’ इतना कहकर प्रभाकर सिंह ने हरदेई की तरफ देखा और जमना तथा इंदु का साथ छोड़ दिया। हरदेई जल का लोटा लिए आगे बढ़ आई और अपने दूसरे हाथ से प्रभाकर सिंह का हाथ थाम कर धीरे-धीरे आगे की तरफ बढ़ी।

जमना, सरस्वती और इंदुमति वहाँ से पीछे हटकर एक सुन्दर चट्टान पर बैठ गईं और इंतजार करने लगी कि प्रभाकर सिंह मैदान में होकर लौटें और चश्मे पर जाएँ तो हम लोग भी उनके पास चलें मगर ऐसा न हो सका क्योंकि घंटे-भर से भी कम देर में सब कामों से छुट्टी पाकर हरदेई के हाथ का सहारा लिए हुए प्रभाकर सिंह धीरे-धीरे चलते हुए उस जगह आ पहुँचे जहाँ जमना, सरस्वती और इंदुमति बैठी हुई उनका इंतजार कर रही थीं। जख्मों के विषय में सवाल करने पर प्रभाकर सिंह ने उत्तर दिया कि नहर के जल से मैं सब जख्मों को साफ कर चुका हूँ अब उनके विषय में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।

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प्रभाकर सिंह भी उन तीनों के पास बैठ गये और लड़ाई के विषय में तरह-तरह की बातें करने लगे। जब संध्या होने में थोड़ी देर रह गई और हवा में सर्दी बढ़ने लगी तब सब कोई वहाँ से उठ कर बँगले के अन्दर चले गये। एक कमरे के अन्दर जाकर प्रभाकर सिंह चारपाई पर लेट रहे। थोड़ी देर तक वहाँ सन्नाटा रहा क्योंकि जरूरी कामों से छुट्टी पाने तथा भोजन की तैयारी करने के लिए जमना और सरस्वती वहाँ से चली गईं और केवल चारपाई की पाटी पकड़े हुए इंदुमति तथा पैर दबाती हुई हरदेई वहाँ रह गई।

कुछ देर तक प्रभाकर सिंह और इंदुमति में मामूली ढंग पर धीरे-धीरे बातचीत होती रही इसके बाद प्रभाकर सिंह ने यह कहकर इंदुमति को विदा किया कि ‘मैं भूख से बहुत दुखी हो रहा हूँ। जो कुछ तैयार हो थोड़ा-बहुत खाने के लिए जल्द लाओ’।

आज्ञानुसार इंदुमति वहाँ से उठकर कमरे के बाहर चली गई और तब प्रभाकर सिंह और हरदेई में धीरे-धीरे इस तरह की बातचीत होने लगी-

प्रभाकर सिंह : हाँ तुम्हें दरवाजा खोलने का ढंग अच्छी तरह मालूम हो चुका है?

हरदेई : जी हाँ, उसके लिए कोई चिंता न करें।

प्रभाकर सिंह : मैं तो इसी फिक्र में लगा हुआ था कि पहले किसी तरह दरवाजा खोलने की तरकीब मालूम कर लूँ तब दूसरा काम करूँ।

हरदेई : नहीं, अब आप अपनी कार्रवाई कीजिए, सुरंग का दरवाजा खोलना और बन्द करना अब मेरे लिए कोई कठिन काम नहीं है।

प्रभाकर सिंह : (अपने जेब में से एक पुड़िया निकाल कर और हरदेई के हाथ में दे कर) अच्छा तो अब तुम इस दवा को भोजन के किसी पदार्थ में मिला देने का उद्योग करो, फिर मैं समझ लूँगा।

हरदेई : अब इंदुमति आ जाएँ तो मैं जाऊँ।

प्रभाकर सिंह : हाँ मेरी भी यही राय है।

थोड़ी देर बाद चाँदी की रकाबी में कुछ मेवा लिए हुए इंदुमति वहाँ आ पहुँची। उसके साथ एक लौंडी चाँदी के लोटे में जल और एक गिलास लिए हुए थी।

प्रभाकर सिंह ने मेवा खाकर जल पीया और इसी बीच में हरदेई किसी काम के बहाने से उठकर कमरे के बाहर चली गई।

भूतनाथ-खण्ड-2/ भाग-15 दिनांक 09 Mar. 2022 समय 06:00 बजे साम प्रकाशित होगा

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