एक था सब्जीपुर। खूब हरा-भरा, खिला-खिला और रंग-रंगीला सब्जीपुर। और सब्जीपुर में खूब रौनक थी। इसलिए कि वहाँ भिंडी चाची थीं, धनिया चाची, करेला रानी, पालक रानी और लौकीदेवी भी। और फिर कद्दूमल थे, टिंडामल, कटहलराम, परवलचंद, टमाटरलाल, मूली रानी, गाजरदेवी, आलूराम-कचालूराम…और भी न जाने कौन-कौन, जिनसे सब्जीपुर आबाद था। हर वक्त वहाँ रस की फुहार छूटती और कोई न कोई नया-निराला नाटक भी होता रहता था।
इसी सब्जीपुर में रहती थी प्याजो यानी प्याजकुमारी। एक छोटी सी प्यारी सी बच्ची, जो हर तरफ हँसी छलकाती घूमती फिरती थी। हर कोई उसे प्यार करता था।
पर नन्ही प्याजो को सब्जीपुर गाँव में सबसे ज्यादा पसंद थीं भिंडी चाची।
भिंडी चाची…?
जी हाँ!
अब भिंडी चाची का नाम भिंडी चाची कैसे पड़ा? इस बारे में तो किसी को कुछ नहीं पता। लेकिन कुछ न कुछ अनुमान तो लगाया जा सकता है। एक तो उनका कद छोटा और सुगठित था। देखने में बड़ी सुंदर, सजीली थीं। कुछ शक्ल भी रोबदार। इसलिए वो हो गईं भिंडी चाची। सबकी भिंडी चाची।
प्याजो ने कई बार सोचा कि मैं पूछूँगी भिंडी चाची से कि भिंडी चाची, आपका यह नाम किसने रखा? पर पूछ नहीं पाई। इसलिए कि भिंडी चाची प्यार बहुत करती थीं, तो गुस्सा भी उनकी नाक पर धरा रहता था। जब गुस्सा हो जाएँ, तब देखो कैसे तमककर डाँटती थीं!
भिंडी चाची सारे गाँव के बच्चों को कहानियाँ सुनाया करती थीं। बच्चों को तो ये कहानियाँ पसंद थीं ही, उनके माँ-बाप भी खुश होते। सब अपने-अपने बच्चों को उनके पास भेजते, “जा, भिंडी चाची से कोई नई कहानी सुनकर आ!” और बच्चे भी भिंडी चाची को छोड़ते न थे।
भिंडी चाची को कुछ तो बचपन से ही कहानियाँ बहुत याद थीं और कुछ वे मन से बना लिया करतीं थीं। कहानियाँ भी वे ऐसी बनातीं कि एक कहानी में से दूसरी कहानी निकलती जाती और बच्चे-बड़े सभी साँस रोककर सुनते। तब तक उनकी साँस रुकी की रुकी रहती, जब तक भिंडी चाची की कहानी पूरी न होती।
मगर भिंडी चाची में एक बड़ी कमी थी कि वे किसी दूसरे की बिल्कुल तारीफ नहीं करती थीं। प्याजो इससे बहुत चिढ़ती थी।
नन्ही प्याजो को याद है, वह अपनी क्लास में फर्स्ट आई थी और घर आते ही उसने दौड़कर भिंडी चाची को यह बताया। तब बजाय खुश होने के वे मुँह बनाकर बोली थीं, “अच्छा-अच्छा, ठीक है! पर देख प्याजो, खेल-कूद का भी ध्यान रखना चाहिए। आजकल खाली पढ़ाई से कुछ नहीं होता।”
फिर एक दिन प्याजो के स्कूल में कबड्डी मैच हुआ और उसकी टीम जीत गई। घर आकर उसने खुशी-खुशी भिंडी चाची को यह खबर दी। इस पर भिंडी चाची सीरियस होकर बोली, “प्याजो, सो तो ठीक है, पर देख! अब तू पढ़ाई कर, सिर्फ खेल-कूद से कुछ नहीं होता।”
प्याजो का चेहरा बुझ गया। अब वह भिंडी चाची से भला क्या कहे! लेकिन भिंडी चाची से अब वह जरा-जरा दूर रहने लगी थी।
फिर एक दिन प्याजो भिंडी चाची के घर गई, तो उसने बाहर से जो सुना, उससे एकदम अचकचा गई। बाहर दरवाजे के पास भिंडी चाची की बड़ी करारी आवाज आ रही थी। वह गुस्से में अपने बड़े बेटे भिंडीकुमार से कह रही थीं, “ओ रे ओ लल्लू, तू पूरा निठल्लू ही रहा। अरे, तू डिबेट में हिस्सा क्यों नहीं लेता? देखता नहीं, प्याजो कितनी होशियार है, जो डिबेट में फर्स्ट आई है। कितनी जहीन लड़की है! और एक तू है तू…पूरा सिड़ी!”
प्याजो को बड़ी हैरानी हुई। बड़ी अजब-गजब हैं भिंडी चाची तो। सामने तो जरा भी तारीफ नहीं करेंगी, पर कहीं न कहीं बात दिल में गड़ी रह जाएगी। तभी तो अपने बेटे से कह रही थीं कि तू प्याजो जैसा क्यों नहीं है?
फिर एक दिन की बात है, भिंडी चाची कहानियाँ सुना रही थीं और सारे बच्चे आसपास बैठे, गौर से भिंडी चाची की कहानियाँ सुन रहे थे। अचानक कहानी सुनाते-सुनाते भिंडी चाची रुकीं और प्याजो की ओर देखकर बोलीं, “अरे प्याजो, तुझे पता है कि नहीं, मेरा छोटा बेटा भिंडीकुमार उर्फ भिन्नू कविता प्रतियोगिता में फर्स्ट आया है, फर्स्ट! बड़ा होशियार है।”
प्याजो ने सोचा, यह तो बड़ा अजब चक्कर है। मैं फर्स्ट आई तो कोई बात नहीं, भिन्नू फर्स्ट आए तो बड़ी बात है! बस, उसी दिन प्याजो के मन में एक तरकीब आई। उसने सोचा, अब इसे जल्दी से जल्दी आजमाना चाहिए, ताकि भिंडी चाची को सही पाठ सीखने को मिले।
कुछ दिन बाद प्याजो दौड़ती-दौड़ती भिंडी चाची के पास आई। बोली, “अरे चाची, ओ चाची! बड़ी खुशी की खबर है। भिन्नू ने डिबेट में हिस्सा लिया और वह पूरे स्कूल में फर्स्ट आया है, फर्स्ट!”
इस पर भिंडी चाची ने प्याजो को पास खींच लिया। उसके सिर पर हाथ फेरते हुए मगन होकर बोलीं, “अरे, क्या सचमुच! तूने तो बड़ी अच्छी खबर दी प्याजो। कहाँ है मेरा लाड़ला? इतना सीधा है कि मुझे तो उसने बताया ही नहीं।”
“बस, अभी आता ही होगा भिंडी चाची। लोग उसे बहुत बधाइयाँ दे रहे थे। हो सकता है, इसलिए देर हो गई हो।”
थोड़ी देर बाद भिंडी चाची का बेटा भिन्नू आया, तो चाची ने उसका माथा चूमकर कहा, “वाह बेटा वाह, आज तो तूने कमाल कर दिया! पूरे स्कूल में डिबेट में फर्स्ट आया है न? चेहरा देख, कैसे चम-चम कर रहा है। आज तो तुझे चमचम ही खिलाऊँगी। सचमुच मेरे बेटे जैसा कोई नहीं, कोई नहीं!”
इस पर भिन्नू को बड़ी हैरानी हुई। बोला, “मम्मी-मम्मी, क्या कहती हो? मैंने तो डिबेट में हिस्सा ही नहीं लिया। मुझे तो स्टेज पर बोलना आता ही नहीं है। यह कला तो प्याजो को आती है।”
“क्या कहा, हिस्सा ही नहीं लिया? तो फिर…यह प्याजो क्या कह रही थी? क्यों री प्याजो, तू तो कह रही थी कि…!”
भिंडी चाची की बात पूरी हो पाती, इससे पहले ही प्याजो बोली, “चाची जी, डिबेट में हिस्सा तो मैंने लिया था और फर्स्ट भी मैं ही आई हूँ, पर आप तो कभी मेरी तारीफ ही नहीं करतीं। इसलिए सोचा कि भिन्नू का नाम ले दूँ, ताकि आपको थोड़ी खुशी तो हो!”
कहते-कहते नन्ही प्याजो के होंठों पर एक मीठी सी मुसकान आ गई। और गालों पर ऐसी चमक, जैसे गाल हँस रहे हों।
भिंडी चाची एकदम हक्की-बक्की सी प्याजो की ओर देखती रह गईं कि कहूँ तो क्या कहूँ! गुस्से से उनका पूरा शरीर काँप रहा था, पर गुस्सा दिखातीं, तो और मजाक उड़ता।
उस दिन के बाद भिंडी चाची के नखरे कम हो गए। मगर उनकी कहानियों का रस और भी बढ़ गया। अब बच्चे और भी ज्यादा दौड़-दौड़कर भिंडी चाची के पास कहानियाँ सुनने के लिए आते, हँसते और ठहाके लगाते।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
