बचपन में अनिता के घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वो ज्यादा खर्च कर सके फिर भी दिल उस समय भी बड़ा था और लोगों की मदद करने की इच्छा उस वक्त भी प्रबल थी। अपने बचपन के बारे में बात करते हुए अनिता बताती हैं कि बचपन में एक बार उन्होंने अपना स्वेटर एक सब्जीवाले को दे दिया था कयोंकि वो ठंड से कांप रहा था। हालांकि इसके बाद उन्हें खूब डांट पड़ी थी। बड़े होने पर अनिता ने नर्स का कोर्स किया और जॉब करने लग गई। लेकिन शादी और परिवार की जिम्मेदारियों के सामने उन्हें जॉब छोड़ना सही लगा और उन्होंने कुछ दिन घर पर ही रहना तय किया। अब जब बच्चे बड़े हो गए हैं तो अनिता भी समाज सेवा में जुट गई हैं और पिछले 5 सालों से एक एनजीओ पुअर फीडिंग ग्रुप से जुड़ी हैं। वो लड़कियों को सिलाई सिखाने के लिए क्लासेस भी चलाती हैं।
उपलब्धियां
अपने सोशल वर्क के लिए जीत चुकी हैं कई इनाम।
अनिता की पसंद
अनिता कहती हैं कि उन्हें गाना सुनना, गाना, खाना बनाना, रंगोली बनाने का शोक है।
मेरी सलाह
अपने अनुभव को शेयर करते हुए अनिता कहती हैं कि उन्हें लगता है कि महिलाएं अपनी निरंतरता की वजह से किसी भी क्षेत्र में अच्छ काम कर सकती हैं और यही गुण उन्हें घर और काम दोनों को मैनेज करने में मदद करता हैं।
सफलता और खुशी मेरी नज़र में
अनिता का मानना है कि सफलता और असफलता का कोई मापदंड नहीं हो सकता और न ये किसी की लाइफ में खुशी या गम तय कर सकते हैं। वो कहती हैं कि अगर इंसान संतुष्ट महसूस करता है तो वो उसे खुश और सफल दोनों मानती हैं।
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