yagya niyam
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Yagya Niyam: यज्ञ की सफलता के लिए आवश्यक है कि उसका अनुष्ठान पूर्णत: नियमपूर्वक किया जाए। नियमों के पालन के इसी महत्त्व को देखते हुए हम आपको यहां बता रहे हैं यज्ञ में पालन करने योग्य नियमों के बारे में।

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  1. यज्ञ में सभी यज्ञिकों को हाथ से कते सूत का यज्ञोपवीत धारण करना आवश्यक है।
  2. निचले शरीर में पहना जाने वाला वस्त्र या ऊपरी वस्त्र अर्थात् कोई एक वस्त्र शरीर पर पीले रंग का होना आवश्यक है। वस्त्र धुले व साफ हों।
  3. यज्ञिकों को चाहिए कि यज्ञ के प्रारम्भ से पूर्णाहुति तक मन-वचन और कर्म से पूर्ण ब्रह्मïचर्य का पालन करें।
  4. यज्ञिक का अपने कंधे पर पीला दुपट्टा या गमछा हर समय रखना उत्तम रहता है।
  5. यज्ञ में शुद्धता, पवित्रता, स्वच्छता को विशेष स्थान देना चाहिए। गंदगी, फूहड़पन, सड़ांध से दूर रहना चाहिए।
  6. यज्ञ काल में पेशाब करने या पखाना जाने पर पुन: स्नान करके यज्ञशाला में आना चाहिए।
  7. यज्ञ में आहुति देते समय मेखलाओं पर घृत टपकना नहीं चाहिए। इसके लिए श्रुवा घी से भरकर पात्र के किनारे से रगड़कर वेदी पर ले जायें।
  8. श्रुवे को दाहिने हाथ में कलम के समान पकड़ना चाहिए अर्थात् अंगुष्ठ, तर्जनी व मध्यमा उंगली की सहायता लें।
  9. यज्ञ के दिनों में न्यूनतम, सात्विक, शाकाहार, शुद्ध आहार लेना उत्तम रहता है।
  10. यज्ञ के दिनों मे नशीले पदार्थ यथा- शराब, भांग, जर्दा, तम्बाकू, पान, सुपारी, बीड़ी, सिगरेट, चिलम का सेवन न करें।
  11. स्वाहा शब्द के उच्चारण के साथ आहुति देनी चाहिए। आगे-पीछे आहुति न दें।
  12. वेदी या अन्न के बाहर बिखरी हवन सामग्री को अग्नि में न डालें।
  13. वेदी पर आहुति देने से जो शिखर-सा बन जाता है उसे लकड़ी या चिमटे से कुरेदना नहीं चाहिए।
  14. यज्ञ में पजामा, तहमद या मोजे आदि पहनकर नहीं बैठना चाहिए तथा धोती लांग देकर पहननी चाहिए।
  15. यज्ञ के दिनों में यज्ञिकों को अधिकांश समय देवार्चन, पठन-पाठन, स्वाध्याय, धार्मिक चर्चा, कीर्तन, अध्ययन, मनन, चिन्तन, सत्संग, ईश्वर चर्चा में व्यतीत करना चाहिए। सांसारिक बातें, प्रेमालाप, बुराई, चुगली, बैर-विरोध, तेरी-मेरी व असत्य सम्भाषण से बचना चाहिए।
  16. बालक को जैसे कौर देते हैं उस समय मध्यमा व अनामिका उंगलियों पर हवन सामग्री लेकर अंगुष्ठ की सहायता से आहुति दें।
  17. हवन सामग्री हवन कुंड में ही गिरे उसे उछालना या फेंकना सर्वथा वर्जित है।
  18. हवन में भाग लेने वाले यज्ञिकों को पद्मासन या पालथी मारकर आसन में बैठना चाहिए।
  19. मंत्रोच्चारण सभी लोग एक साथ, एक स्वर में, समवेत स्वर में करें।
  20. यदि दर्शकों में कोई नीच वृत्ति या अपवित्र विचारधारा प्रदर्शित करता हो, रंग-भंग करता हो, तो उसे सभा-मंडप से बाहर निकाल दें
  21. घी की आहुति देने के बाद प्रत्येक बार श्रुवा में बचे घी की एक बूंद प्रणीतापात्र में टपकाएं एवं ‘इदम् गायर्त्यै इदम् न मम का उच्चारण करें।
  22. यज्ञ पुरुष के दर्शन करने वालों को भी स्नानादि कर, पवित्र, स्वच्छ कपड़े पहनकर स्वच्छ व निर्मल मन से, पवित्र विचार से, श्रद्धावान होकर आना चाहिए।
  23. जल यात्रा के कलश पीले रंग से पुते हुए होने चाहिए। उन पर नारियल रखकर ढकना चाहिए। नारियल पर कलावा लपेटा रहना चाहिए।
  24. यज्ञशाला में छोटे-नासमझ बच्चों को नहीं आने देना चाहिए जो वहां पेशाब-पखाना कर दें या रोने-मचलने लगें।
  25. संभव हो तो पैरों में खड़ाऊं पहनें या कपड़े के जूते पहनें। चप्पलादि यज्ञशाला के बाहर रख सकते हैं।
  26. जल यात्रा में कलश 5 । 7। 11। 21। 31। 51 रहें तो उत्तम है।
  27. यज्ञशाला में रजस्वला स्त्री या मूत्र-रोग ग्रसित जातक को भूलकर भी नहीं आना चाहिए। इससे यज्ञशाला अपवित्र होती है।
  28. यज्ञोपरान्त हवन की अग्नि शांत हो जाने तक उसकी भली प्रकार देखरेख करनी चाहिए।