Yagya Niyam: यज्ञ की सफलता के लिए आवश्यक है कि उसका अनुष्ठान पूर्णत: नियमपूर्वक किया जाए। नियमों के पालन के इसी महत्त्व को देखते हुए हम आपको यहां बता रहे हैं यज्ञ में पालन करने योग्य नियमों के बारे में।
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- यज्ञ में सभी यज्ञिकों को हाथ से कते सूत का यज्ञोपवीत धारण करना आवश्यक है।
- निचले शरीर में पहना जाने वाला वस्त्र या ऊपरी वस्त्र अर्थात् कोई एक वस्त्र शरीर पर पीले रंग का होना आवश्यक है। वस्त्र धुले व साफ हों।
- यज्ञिकों को चाहिए कि यज्ञ के प्रारम्भ से पूर्णाहुति तक मन-वचन और कर्म से पूर्ण ब्रह्मïचर्य का पालन करें।
- यज्ञिक का अपने कंधे पर पीला दुपट्टा या गमछा हर समय रखना उत्तम रहता है।
- यज्ञ में शुद्धता, पवित्रता, स्वच्छता को विशेष स्थान देना चाहिए। गंदगी, फूहड़पन, सड़ांध से दूर रहना चाहिए।
- यज्ञ काल में पेशाब करने या पखाना जाने पर पुन: स्नान करके यज्ञशाला में आना चाहिए।
- यज्ञ में आहुति देते समय मेखलाओं पर घृत टपकना नहीं चाहिए। इसके लिए श्रुवा घी से भरकर पात्र के किनारे से रगड़कर वेदी पर ले जायें।
- श्रुवे को दाहिने हाथ में कलम के समान पकड़ना चाहिए अर्थात् अंगुष्ठ, तर्जनी व मध्यमा उंगली की सहायता लें।
- यज्ञ के दिनों में न्यूनतम, सात्विक, शाकाहार, शुद्ध आहार लेना उत्तम रहता है।
- यज्ञ के दिनों मे नशीले पदार्थ यथा- शराब, भांग, जर्दा, तम्बाकू, पान, सुपारी, बीड़ी, सिगरेट, चिलम का सेवन न करें।
- स्वाहा शब्द के उच्चारण के साथ आहुति देनी चाहिए। आगे-पीछे आहुति न दें।
- वेदी या अन्न के बाहर बिखरी हवन सामग्री को अग्नि में न डालें।
- वेदी पर आहुति देने से जो शिखर-सा बन जाता है उसे लकड़ी या चिमटे से कुरेदना नहीं चाहिए।
- यज्ञ में पजामा, तहमद या मोजे आदि पहनकर नहीं बैठना चाहिए तथा धोती लांग देकर पहननी चाहिए।
- यज्ञ के दिनों में यज्ञिकों को अधिकांश समय देवार्चन, पठन-पाठन, स्वाध्याय, धार्मिक चर्चा, कीर्तन, अध्ययन, मनन, चिन्तन, सत्संग, ईश्वर चर्चा में व्यतीत करना चाहिए। सांसारिक बातें, प्रेमालाप, बुराई, चुगली, बैर-विरोध, तेरी-मेरी व असत्य सम्भाषण से बचना चाहिए।
- बालक को जैसे कौर देते हैं उस समय मध्यमा व अनामिका उंगलियों पर हवन सामग्री लेकर अंगुष्ठ की सहायता से आहुति दें।
- हवन सामग्री हवन कुंड में ही गिरे उसे उछालना या फेंकना सर्वथा वर्जित है।
- हवन में भाग लेने वाले यज्ञिकों को पद्मासन या पालथी मारकर आसन में बैठना चाहिए।
- मंत्रोच्चारण सभी लोग एक साथ, एक स्वर में, समवेत स्वर में करें।
- यदि दर्शकों में कोई नीच वृत्ति या अपवित्र विचारधारा प्रदर्शित करता हो, रंग-भंग करता हो, तो उसे सभा-मंडप से बाहर निकाल दें
- घी की आहुति देने के बाद प्रत्येक बार श्रुवा में बचे घी की एक बूंद प्रणीतापात्र में टपकाएं एवं ‘इदम् गायर्त्यै इदम् न मम का उच्चारण करें।
- यज्ञ पुरुष के दर्शन करने वालों को भी स्नानादि कर, पवित्र, स्वच्छ कपड़े पहनकर स्वच्छ व निर्मल मन से, पवित्र विचार से, श्रद्धावान होकर आना चाहिए।
- जल यात्रा के कलश पीले रंग से पुते हुए होने चाहिए। उन पर नारियल रखकर ढकना चाहिए। नारियल पर कलावा लपेटा रहना चाहिए।
- यज्ञशाला में छोटे-नासमझ बच्चों को नहीं आने देना चाहिए जो वहां पेशाब-पखाना कर दें या रोने-मचलने लगें।
- संभव हो तो पैरों में खड़ाऊं पहनें या कपड़े के जूते पहनें। चप्पलादि यज्ञशाला के बाहर रख सकते हैं।
- जल यात्रा में कलश 5 । 7। 11। 21। 31। 51 रहें तो उत्तम है।
- यज्ञशाला में रजस्वला स्त्री या मूत्र-रोग ग्रसित जातक को भूलकर भी नहीं आना चाहिए। इससे यज्ञशाला अपवित्र होती है।
- यज्ञोपरान्त हवन की अग्नि शांत हो जाने तक उसकी भली प्रकार देखरेख करनी चाहिए।
