ATITHI SATKAR

Atithi Satkar: हमारी संस्कृति में अतिथि को देवता का रूप माना गया है। धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति अतिथि बनकर आपके घर आ रहा है तो उसका प्रेम सहित सत्कार करना चाहिए, उसे भोजन कराना चाहिए और उसका मान-सम्मान करना चाहिए, यही ‘अतिथि यज्ञ’ है। उसका पेट भरने के बाद ही हमें भोजन करना चाहिए। कहते हैं कि जिस घर से अतिथि भूखा-प्यासा और निराश होकर वापस लौट जाता है, उनको आर्थिक एवं सामाजिक रूप से कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

ATITHI SATKAR

यज्ञ का अर्थ क्या है?

अधिकतर लोगों को लगता है कि केवल अग्नि में सामग्री और घी डाल देना ही यज्ञ है। बहुत से यह समझते हैं कि किसी देवी-देवता की पूजा करना यज्ञ है। यज्ञ का वास्तविक अर्थ उसी शुभ कार्य से है, जो किसी न किसी रूप में त्याग अथवा बलिदान द्वारा संसार के किसी अन्य प्राणी या दैवी अथवा भौतिक शक्ति के हित के निमित्त किया जाए। अपने स्वार्थ-साधन अथवा ईर्ष्या-द्वेष की भावना से किए जाने वाले काम को यज्ञ नहीं कहा जा सकता।

तो यज्ञमय हो जाता है जीवन

अतिथि यज्ञ से मानव-समाज में सहानुभूति और सहयोग के भावों का उदय होता है, क्योंकि यज्ञ का अर्थ है ऐसा कार्य, जिसमें त्याग और बलिदान की भावना होनी चाहिए। जो व्यक्ति अपने जीवन में इन कार्यों को करता है, उसका जीवन ही यज्ञमय हो जाता है अर्थात उसकी स्वार्थ-भावना नष्ट हो जाती है।

भोजन और दान-दक्षिणा

जो लोग अतिथि सेवा में विश्वास रखते हैं और घर आए अतिथियों का स्वागत-सत्कार करते हैं, उन्हें जीवन में सफलता हाथ लगती है। इसी प्रकार अतिथि की आवश्यकता और इच्छा को जानकर जो उनके योग्य वस्तु, भोजन और दान-दक्षिणा अर्पण करता है, उसे अतिथि यज्ञ का सौ गुना फल प्राप्त होता है। इन परिवारों में हमेशा समृद्धि बनी रहती है और भगवान की कृपा का भी आनंद बरसता रहता है, पर आजकल अतिथि यज्ञ की परंपरा का जबर्दस्त ह्रास होता जा रहा है। लोग अतिथियों से जी चुराने लगे हैं। खूब सारे लोग तो ऐसे हैं, जो अपने यहां किसी अतिथि का आना पसंद नहीं करते हैं, स्वागत और सत्कार आदि की बातें तो इनके लिए बेमानी हो गई हैं।

मिलेगा शुभ फल

जो लोग घर आए अतिथियों का आदर-सत्कार नहीं करते हैं, उनका पैसा खुद के लिए काम नहीं आता। जो लोग अतिथि सत्कार के प्रति संवेदनशील और उदार होते हैं, उनका धन अपार सुख-संपदा देता है और आत्मशांति भी, इसलिए जहां कहीं मौका मिले, जीवन में अतिथि यज्ञ को अपनी जिंदगी का अहम अंग बनाएं और अतिथियों पर उदारतापूर्वक खर्च करें। जहां कहीं रहें, अतिथि सत्कार में कोई कमी न रखें। यह ईश्वरीय सेवा कार्य है, जिसका प्रतिफल हमें अनचाहे भी कई गुना प्राप्त होना ही होना है। फिर क्यों न हम अतिथि सत्कार के संस्कारों को अपनाकर जीवन का आनंद भी पाएं और जिंदगी को धन्य बनाएं।

अतिथि सत्कार के नियम

घर आए मेहमान का आगे बढ़कर अतिथि का स्वागत करना चाहिए, हाथ, पैर और मुंह धोने के लिए उसे जल दें, अतिथि को आराम करने के लिए आसन देना चाहिए, उसे भोजन कराना चाहिए और ठहरने के स्थान देना चाहिए, व्यक्तिगत प्रत्येक अतिथि पर ध्यान दें और उनके जाते समय थोड़ी दूर तक उसके साथ में जाना चाहिए। यह भी कहा गया है कि, यदि अतिथि घर से निराश होकर लौट जाता है तो, वह अपने सारे पाप गृहस्थ को दे जाता है और गृहस्थ के सभी पुण्य अतिथि के साथ ही चले जाते हैं।