Hindu Ritual: भारत एक ऐसा अनूठा लोकतांत्रिक देश है, जहां विभिन्न धर्मों और संप्रदायों का संगम देखने को मिलता है। यहां की समृद्ध संस्कृति और विविधता दुनियाभर में अपनी अलग पहचान रखती है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, और अन्य धर्मों के अनुयायी यहां मिल-जुलकर रहते हैं और अपने-अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करते हैं। यही धार्मिक सहिष्णुता भारत को विशेष बनाती है और यह सांस्कृतिक धरोहर देश की पहचान है।
रस्मों की समृद्ध परंपरा

भारत में शादियों को लेकर विभिन्न धर्मों और क्षेत्रों में अलग-अलग रस्मों का महत्व है, जो हमारी सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है। खासकर हिंदू शादियों में भावनात्मक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अहम हिस्सा है। शादियों में रस्मों के दौरान हर समुदाय की अपनी परंपराएं होती हैं, लेकिन इनमें एक रस्म ऐसी है जो हर धर्म और क्षेत्र में समान रूप से निभाई जाती है – दुल्हन की विदाई के समय चावल फेंकने की परंपरा।
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विदाई की रस्म और भावनात्मक जुड़ाव
दुल्हन की विदाई के समय चावल फेंकने की परंपरा का एक गहरा सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व है। जब दुल्हन अपने मायके से विदा होती है, तो वह चावल पीछे की ओर फेंकती है। यह प्रतीक है कि वह अपने मायके को समृद्धि और आशीर्वाद छोड़ रही है, और अपने नए जीवन की शुरुआत कर रही है। चावल फेंकना इस बात का संकेत है कि वह अपने परिवार को आशीर्वाद और खुशियों की कामना कर रही है।
धार्मिक समानताएं और सांस्कृतिक विविधता
भारत में हिंदू, सिख और पंजाबी धर्मों की शादियों में कई रस्में एक-दूसरे से मेल खाती हैं। इनमें विदाई की रस्म सबसे आम है। इस रस्म में दुल्हन द्वारा चावल या अनाज फेंकने का भाव यह दर्शाता है कि दुल्हन अपने मायके से विदा होते हुए अपनी दुआएं और शुभकामनाएं छोड़ रही है। इस रस्म के दौरान दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन का स्वागत और उसका सम्मान भी इसी सांस्कृतिक विविधता का एक हिस्सा है।
चावल फेंकने की परंपरा

विदाई की यह परंपरा शादियों का सबसे भावुक पल होता है। जब दुल्हन डोली में बैठने से पहले चावल या अनाज फेंकती है, तो यह कृतज्ञता और आशीर्वाद का प्रतीक होता है। परिवार के सदस्य, खासकर माता-पिता, इस रस्म के दौरान भावुक हो जाते हैं और चावल को अपने पल्लू या हाथों में इकट्ठा करते हैं। यह पल परिवार के प्रति दुल्हन की गहरी भावनाओं और रिश्तों की मजबूती का प्रतीक है।
दाएं पैर से क्यों गिराया जाता है चावल का कलश
भारत में विवाह के बाद जब नई दुल्हन अपने ससुराल के घर में प्रवेश करती है, तो कई महत्वपूर्ण रस्में निभाई जाती हैं। इनमें से एक प्रमुख रस्म है दुल्हन द्वारा दाएं पैर से चावल का कलश गिराना, जिसे विशेष शुभ माना जाता है। इस रस्म के पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टिकोण से गहरे अर्थ छिपे हैं। दाएं पैर को हमेशा शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, दाएं पैर से किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करना विशेष फलदायी और सकारात्मक माना जाता है। इसलिए, दुल्हन जब अपने ससुराल में प्रवेश करती है, तो वह दाएं पैर से ही चावल का कलश गिराती है, ताकि उसके साथ शुभता, सुख और समृद्धि घर में प्रवेश करें।
धार्मिक मान्यता और सांस्कृतिक महत्व
हिंदू धर्म में बेटियों को मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है, जो समृद्धि और खुशहाली की प्रतीक हैं। दुल्हन जब चावल या लक्ष्मी सिक्के फेंकती है, तो वह अपने परिवार के लिए आशीर्वाद और समृद्धि की कामना करती है। यह परंपरा दर्शाती है कि बेटी अपने परिवार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अपने ससुराल की ओर अग्रसर होती है। इस धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के साथ ही भारत की शादियों में यह रस्म सदियों से निभाई जा रही है और इसका महत्व आज भी बरकरार है।
