भारत विभिन्न संस्कृतियों से जुड़ा एक ऐसा देश है जहाॅं हर दिन कोई ना कोई पर्व मनाया जाता है। सप्ताह के सभी दिनों में रखे जाने वाले व्रत हों या अन्य कोई भी व्रत हो लेकिन इन सब में करवाचैथ व्रत विश्वास और प्यार की डोर से जुड़ा एक ऐसा व्रत विश्वास और प्यार की डोर से जुड़ा एक ऐसा व्रत है जिसे हर सुहागिन महिला अपने पति की लम्बी आयु और मंगल -कामना के लिए पूरी श्रद्धा से निर्जला रहकर रखती है। वैसे तो करवाचैथ उत्तरी भारत के कुछ क्षेत्रों में ही मनाने की पंरपरा थी लेकिन आज पूरे देश के साथ विदेशों में भी इसे मनाने के आकर्षण से महिलाएं बच नहीं पाई हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक समय में जब देवताओं और दानवों में भंयकर युद्ध छिड़ा हुआ था तो युद्ध में दानवों का पक्ष भारी होते देख सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और जीत के लिए उपाय पूछा। तब ब्रह्मा जी ने उन्हें बताया कि अगर सभी देवताओं की पत्नियां सच्चे मन से अपने पतियों के लिए व्रत रखें तो ही देवता उन राक्षसों को पराजित कर सकेंगे। तब सभी देव -पत्नियों ने कार्तिक माह की चतुर्थी को पूरा दिन भूखी -प्यासी रहकर और रात को चाॅंद को अध्र्य देकर अपना व्रत पूरा किया जिसके फलस्वरूप देवता विजयी हुए। इसी के साथ ही तब से करवाचैथ व्रत की शुरूआत हुई।

व्रत का आरम्भ- व्रत वाले दिन सुहागिने तड़के उठकर नहा-धो कर साफ वस्त्र पहनती हैं। इसके पश्चात् वे नीचे लिखे मंत्र मम सुखसौभाग्य पुत्र पौत्रादि सुस्थिर
श्री प्राप्त करक चतुर्थीव्रतमंह करिष्ए। का संकल्प लेकर प्रथमपूज्य भगवान गणेश, शिव व माॅं पार्वती, कार्तिकेय व चंद्रमा की पूजा करती है। इसके बाद वे सरगी के रूप में फल व मिठाई ग्रहण करती है। तत्पश्चात सारा दिन निर्जला रहकर व रात को चांद को अध्र्य देकर और पति का चेहरा देख व उनके चरण-स्पर्श के पश्चात् वे अपना व्रत खोलती हैं। और अन्न -जल ग्रहण करती है।

करवा खेलना व कथा सुनना-शाम को सोलह श्रंगार करके सजी-धजी महिलाएं जब एकत्रित होती हैं तो वातावरण उल्लासमय हो जाता है। सब इकट्ठी होकर एक घेरे में बैठ जाती है। और पण्डित जी से कथा सुनती है। कथा सुनने से पहले पूजा की तैयारी की जाती है। हर सुहागिन अपने सामने पानी से भरा एक लोटा रखती हैं। एक मिट्टी के करवे में चाव या गेंहू भर कर उसके ढक्कन पर चीनी व कुछ पैसे रखकर करने पर सिदूंर से स्वास्तिक चिन्ह बनाती है। फिर अपने दांए हाथ में चावल या गेंहू के 13 दाने लेकर गणेश, शिव व गौरी मां का ध्यान करते हुए कथा सुनती है। उसके बाद वे करवा उठाकर अपनीे सासू मां को देकर उनके चरण -स्पर्श करती हैं व सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लेती है। चावल या गेहूं के 13 दानों को पानी के लोहे में डाल कर वे उसी जल से रात को चंद्रमा को अर्ध्य देती है।

इसके बाद एक थाली में सुहाग का सामान, मिठाई, फल रखकर व जोत जलाकर करवा खेलने की परंपरा है। करवा खेलना या करवा बाॅंटना ऐसी रसम है जिसमें सभी सुहागिनें एक गोल घेरे में बैठ जाती हैं और अपनी थालियां एक-दूसरे के पास से होकर घुमाते हुए करवे का गीत गाती हैं। सात बार करवा गीत गाने के बाद जब उनकी थाली सबके पास घूमते हुए उनके हाथों में आती है तो इसके बाद वे थाली में रखा सामान किसी कुंवारी लड़की को या फिर पंडिताईन को दे देती है। व जलता हुआ दीपक अपने घर या मंदिर में भगवान के आगे रख देती हैं

करवा गीत-

करवा बाॅंटते हुए सुहागिने यह गीत गाती हैं।

ले वीरां कुड़िये करवड़ा, लै सर्व सुहागन करवड़ा,

कट्टी ना अटेरी ना, घुम्स चरखड़ा फेरी ना,

ग्वाडं मनाई ना, सुतड़ा जगाई ना,
सुन बहन प्यारी वीरां, चन्न चढ़े ते पानी पीना…
लै वीरां कुड़िये करवड़ा लै सर्व सुहागन करवड़ा।

इसी प्रकार चंद्रमा को अर्ध्य देते वे कहती हैं
अर्ध्य देदी सर्व सुहागन चैबारे खड़ी

बया निकालना-शाम की कथा के बाद सासू का को बया देने की प्रथा भी है। एक थाल में नारियल, मेंहदी, फल, सासू मां की साड़ी या सूट, मेंहदी, बिंदी, सिंदूर व फेनिया और मट्ठियां ) (खासतौर से करवाचैथ पर बनने वाली मिठाई) आदि रखकर अपनी सामर्थ्य के अनुसार शगुन के साथ सासू मां को दिया जाता है। व उनके चरण स्पर्श करती हैं सासू मां भी अपनी बहू को ‘सरगी’ के रूप् में शगुन देती है।

करवाचैथ की व्रत कथा-वेदशर्मा नामक एक विद्वान के सात पुत्र व एक पुत्रवती थी। पुत्री कानाम वीरावती था जिसका विवाह सुदर्शन नाम ब्राह्मण के साथ हुआ। करवाचैथ पर वीरावती ने भी व्रत रखा लेकिन चंद्रोदय से पहले ही उसे भूख लगने लगी। भूख से व्याकुल अपनी लाड़ली बहन कोउसके सातों भाई देख नहीं पा रहे थे। उन्होनें अपनी बहन से व्रत खोलने को कहा पर वीरावती तैयार नहीं हुई । तब उन्होंने एक योजना बनाई। उन्होंने एक पहाड़ी के पीछे आग जलाकर उसके प्रकाश को ओट में से दिखाते हुए कहा-बहन देखो चाॅंद निकल आयाहै। अब तो भोजन कर लो। अपने भाइयों कीबात पर विश्वाास कर के उसने अर्ध्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग होने पर उसके पति की मृत्यु हो गई। जिस कारण वीरावती जोर-जोर से रोने लगी। संयोगवश उसी समय इंद्राणी देवी वहां से गुजर रही थी। जब उसने पूरी बात सुनी तो इंद्राणी देवी ने वीरा को बताया कि ऐसा व्रत भंग के कारण हुआ है।

उपाय पूछने पर देवी इंद्राणी ने बताया कि तुम पूरे बारह महीने अपने मृत पति के शरीर की सेवा करते हुए प्रत्येक चतुर्थी को विधिपूर्वक व्रत करो और अगले करवाचैथ पर विधिवत शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय व चंद्रमा की पूजा करके, चंद्रमा को अध्र्य देने के बाद अन्न-जल ग्रहण करोगी तो तुम्हारा पति अवश्य जीवित हो जाएगा। वीरावती के भाईयों ने अपने इस अपराध के लिए वीरावती से क्षमा मांगते हुए उसे इंद्राणी की बातों पर अमल करने को कहा। वीरावती ने सब वैसे ही किया जिसके फलस्वरूप उसका पति जीवित हो गया।

इस प्रकार जो सुहागिन पूरी श्रद्धा से करवाचैथ के व्रत को पूरे विधि-विधान से पूरा करती है, भगवान उसके पति को दीर्घायु रखने के साथ उसके पारिवारिक जीवन को भी सुखमय होने का आर्शीवाद भी देते हैं।

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