Summary: आख़िर क्या है हिमाचल की देव मिलन परंपरा? जहां सर्दियों में उतरते हैं देवता
इन परंपराओं में से एक है "देव मिलन" एक अनूठी और आकर्षक परंपरा, जिसमें देवता सर्दियों के आगमन पर अपने ऊंचे धामों से नीचे की ओर प्रस्थान करते हैं और भक्तों से मिलते हैं।
Himachal Dev Milan Mahotsav: हिमाचल प्रदेश को यूं ही देवभूमि नहीं कहा जाता। यहां हर गांव, हर घाटी किसी न किसी लोकदेवता की आस्था का केंद्र है। यही वजह है कि यहां देवताओं की परंपराएं न सिर्फ धार्मिक आस्था बल्कि सांस्कृतिक जीवन का भी अहम हिस्सा हैं। इन परंपराओं में से एक है “देव मिलन” एक अनूठी और आकर्षक परंपरा, जिसमें देवता सर्दियों के आगमन पर अपने ऊंचे धामों से नीचे की ओर प्रस्थान करते हैं और भक्तों से मिलते हैं। इस परंपरा की विशेषताओं, कथाओं और महत्व के बारे में आम लोग जानकार ही आश्चर्य में डूब जाते हैं।
देव मिलन परंपरा की ख़ासियत

देव मिलन, हिमाचल प्रदेश की अनोखी परंपरा है जो खासकर शरद ऋतु की शुरुआत यानी अक्टूबर-नवंबर से लेकर मार्च तक देखने को मिलती है। इस दौरान ऊँचे पर्वतीय धामों में विराजमान देवता बर्फबारी के कारण निचले क्षेत्रों में अपनी ‘शीतकालीन बैठक’ के लिए प्रस्थान करते हैं। भक्तगण बाजे-गाजे, पूजा-अर्चना और पारंपरिक नाटी नृत्य के साथ उनका स्वागत करते हैं। देवता पालकी में विराजमान होकर गाँव-गाँव भ्रमण करते हैं और जनता के सुख-दुख सुनते हैं।
देव मिलन से जुड़ी लोककथा
कुल्लू घाटी में प्रसिद्ध लोकदेवता ‘जमलू देवता’ की कथा है कि जब उन्होंने पहली बार बर्फबारी के बीच निचले गाँवों की ओर प्रस्थान किया तो वे बिना पादुका के चल पड़े। भक्तों ने यह देखकर पत्तों से उनके लिए चप्पलें बनाई थीं। तब से आज भी देव मिलन यात्रा में जमलू देवता की पालकी बिना पादुका के चलती है और श्रद्धालु मार्ग में फूल, घी और चावल बिछाते हैं। यह कथा न केवल भक्ति का उदाहरण है बल्कि परंपरा और लोक विश्वास का गहरा प्रतीक भी है।
धार्मिक और सामाजिक महत्व

देव मिलन केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि यह गांवों में सामाजिक सामूहिकता का उत्सव होता है। यह लोगों को एकजुट करता है, आपसी मतभेदों को खत्म करता है और सामूहिक निर्णयों में देवता की राय ली जाती है। कई बार न्यायिक फैसले भी देवता की उपस्थिति में लिए जाते हैं। धार्मिक दृष्टि से यह पर्व बताता है कि देवता केवल मंदिरों में नहीं बल्कि समाज की हर धड़कन में मौजूद हैं।
लोक वाद्य और देव नृत्य
देव मिलन के दौरान पारंपरिक वाद्य जैसे नगाड़ा, रणसिंघा, कर्नाल बजाए जाते हैं। देवता की पालकी के आगे-पीछे गांव के युवक नाटी और देव नृत्य करते हैं, जो श्रद्धा और आनंद का अद्भुत संगम होता है। यह नृत्य और संगीत देवता की प्रसन्नता का माध्यम भी माने जाते हैं।
देवता का संवाद और भविष्यवाणी
देव मिलन के दौरान कई बार देवता अपने गुर के माध्यम से भक्तों से संवाद करते हैं। वे वर्ष भर की खेती, मौसम या समाज में आने वाली कठिनाइयों के बारे में संकेत देते हैं। यह संवाद पूरी तरह श्रद्धा और परंपरा पर आधारित होता है, जिसे गांववासी बहुत गंभीरता से लेते हैं।
इस तरह से हम समझ सकते हैं कि देव मिलन सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, यह हिमाचल की आत्मा का उत्सव है। जहां देवता और जनता एक ही धरातल पर आकर संवाद करते हैं, रिश्ते बनाते हैं और संस्कृति को जीवंत रखते हैं। यह परंपरा बताती है कि प्रकृति, पर्व, देवता और समाज सब एक ही सूत्र में बंधे हैं।
