Overview: पुण्य, शांति और भक्ति का संगम है गंगा आरती
गंगा आरती गंगा तट पर होने वाला दिव्य अनुष्ठान है, जहां दीप, मंत्रोच्चारण और शंखनाद से वातावरण पवित्र हो जाता है और भक्तों को अद्भुत अनुभव मिलता है।
Dev Deepawali 2025 Ganga Aarti: देव दीपावली हिंदू संस्कृति का एक भव्य उत्सव है, जिसे दिवाली के 15 दिन बाद वाराणसी में गंगा घाट पर मनाया जाता है। यह विशेष दिन देवी-देवताओं को दीपों और प्रार्थनाओं के माध्यम से पूजा जाता है। इस लेख में हम आपको देव दीपावली की तिथि, महत्व, परंपरा, अनुष्ठान आदि के साथ ही पर्व के इतिहास के बारे में भी बताएंगे। साथ ही इस लेख में देव दीपावली के दौरान वाराणसी में होने वाली गंगा आरती के महत्व पर भी प्रकाश डालेंगे।
देव दीपावली 2025: तिथि
देव दीपावली को मुख्य रूप से देवताओं की दीवाली कहा जाता है जोकि, देवताओं को समर्पित होता है। इसे दिवाली के 15 दिन बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस साल देव दीपावली बुधवार, 5 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी। देव दीपावली में वाराणसी के घाटों को लाखों दीपों से सजाया जाता है और इस दौरान पूरा गंगा तट स्वर्णिम रोशनी से जगमगाता है और प्रकाश का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। संध्या होते ही गंगा आरती, जुलूस और सांस्कृति कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
देव दीपावली की तैयारी

देव दीपावली वाराणसी में होने वाला भव्य आयोजन है और इसकी तैयारियां भी कई दिन पहले से ही चलती है। सबसे पहले गंगा घाटों की साफ-सफाई की जाती है। घाटों और मंदिरों को झालर, फूल और रंगोली से सजाया जाता है। दीपोत्सव के लिए पहले से ही दीप, तेल और बाती की व्यवस्था की जाती है। गंगा आरती के लिए पुरोहितों द्वारा इसकी तैयारी का जाती है। देव दीपावली पर लाखों श्रद्धालु उपस्थित होते हैं, इसके लिए प्रशासन की ओर से सुरक्षा व्यवस्था, प्रकाश और जल-परिवहन की तैयारी की जाती है।
देव दीपावली का इतिहास
देव दीपावली सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पर्व की शुरुआत कब और कैसे हुई। आइए जानते हैं देव दीपावली से जुड़ा इतिहास।
वाराणसी, जिसे इतिहास का सबसे पुराना शहर माना जाता है। गंगा किनारे बसे वाराणसी शहर में देव दीपावाली के उत्सव में इसे दुल्हन की तरह सजाया जाता है। इस दिन गंगा किनारे बसे सभी घाट दीपों की रौशनी से जगमगाते हैं, जिसे देख ऐसा लगता है मानो देवतागण धरती पर उतर आए हों। लेकिन ऐसा लगता ही नहीं, बल्कि धार्मिक मान्यता के अनुसार देव दीपावली पर देवी-देवता धरती पर आकर दीपावली मनाते हैं। इस पर्व से जुड़े धार्मिक और पौराणिक मान्यता के अनुसार- भगवान शिव ने कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि पर त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, जिसके बाद देवताओं में खुशी का उत्सव था और सभी देवी-देवताओं ने धरती पर आकर दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं। इसलिए हिंदू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व होता है।
कब और कैसे हुई देव दीपावली की शुरुआत

काशी के पंचगंगा घाट से देव दीपावली की शुरुआत मानी जाती है। हालांकि इससे पहले क्षेत्रीय लोगों के सहयोग से यहां दीपोत्सव होता था। साल 1985 में मंगला गौरी मंदिर के महंत नारायण गुरु जी ने इस पर्व को भव्य और दिव्य मनाने का बीड़ा उठाया। तब उन्होंने पंचगंगा के साथ अन्य पांच घाटों पर दीप जलाने के परंपरा की शुरुआत की। इस प्रकार 6 घाट से शुरू हुआ यह आयोजन धीरे-धीरे काशी के अन्य घाटों में भी विस्तारित हो गया। इसके बाद इस आयोजन के लिए समिति बनाई गई और महज एक दशक में ही इस उत्सव ने भव्य रूप ले लिया और इस तरह से देव दीपावली का उत्सव सात समंदर पार कर महापर्व बन गया।
देव दीपावली: गंगा आरती का महत्व

गंगा आरती वैसे तो गंगा नदी के घाटों पर होने वाली दैनिक रस्म है, जिसमें पुजारी दीप और अगरबत्ती जलाकर गंगा नदी की पूजा करते हैं। हिंदू धर्म में गंगा को मां का स्वरूप माना जाता है, इसलिए यह आरती मां गंगा को समर्पित होती है। सबसे प्रसिद्ध गंगा आरती वाराणसी के दशाश्वमेध घाट, हरिद्वार के हर की पौड़ी और ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट पर होती है। शाम के समय जब चारों ओर हल्की सांझ फैलती है, तब गंगा आरती का शुभारंभ होता है। इस समय वातावरण में एक अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है। आरती की शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चारण, शंखनाद और घंटियों की गूंज से होती है। सफेद या गेरुए वस्त्र पहने पुरोहित बड़े-बड़े पीतल और तांबे के दीप जलाकर गंगा माता की पूजा करते हैं। दीप, धूप, अगरबत्ती, पुष्प और अग्निकुंड के साथ सामूहिक रूप से यह आरती की जाती है। धीरे-धीरे पूरा वातावरण भक्ति से भर जाता है और ऐसा प्रतीत होता है जैसे धरती पर देवलोक उतर आया हो।
लेकिन देव दीपावली के दौरान गंगा आरती का विशेष आयोजन होता है। गंगा आरती इस उत्सव की आध्यात्मिक ऊर्जा में चार चांद लगा देती है। आरती के साथ ही भजन और स्तुतिगान का आयोजन भी होता है, जिससे एक आध्यात्मिक वातावरण बनता है जो देवी-देवताओं की दिव्य ऊर्जा से गूंजता है। गंगा आरती का दृश्य भी अद्भुत, मनमोहक और रोमांचक होता है। गंगा घाट की सीढ़ियां हजारों-लाखों दीपों से जगमगा उठती हैं। भक्तजन गंगा किनारे बैठकर और नावों पर सवार होकर आरती का दर्शन करते हैं। गंगा नदी में भी भक्त दीप प्रवाहित करते हैं, जिससे कि सिर्फ सीढ़ियां और घाटों पर नहीं बल्कि नदी भी दीपों से आलोकित हो उठती है। चारों ओर “हर हर गंगे” और “गंगा माता की जय” के स्वर गूंजते हैं।
ऐसी मान्यता है कि, गंगा आरती में शामिल होने से जीवन के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। इसलिए गंगा आरती सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि ऐसा आध्यात्मिक अनुभव है, जिसे देखने और महसूस करने वाला हर व्यक्ति जीवनभर नहीं भूल पाता। गंगा आरती व्यक्ति के मन को शांति, भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है और यही कारण है कि देव दीपावली पर देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु गंगा आरती के लिए गंगा तट पर पहुंचते हैं। ऐसा भी माना जाता है कि देव दीपावली के अवसर पर गंगा स्नान और दीप दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है, देवताओं का आशीर्वाद मिलता है और पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है।
