Summary: राधाष्टमी क्यों है ख़ास? आइए जानते हैं।
जन्माष्टमी के पंद्रह दिन बाद आने वाली राधाष्टमी देवी राधा के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव जैसे स्थानों पर इस दिन विशेष आयोजन होते हैं।
Radha Ashtami Significance in Braj: ब्रजभूमि को राधा और कृष्ण की लीलाओं की धरती कहा जाता है। इस जगह पर हर पर्व एक विशेष भावना से जुड़ा होता है लेकिन राधाष्टमी की बात कुछ अलग ही है। जन्माष्टमी के पंद्रह दिन बाद आने वाली राधाष्टमी देवी राधा के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। यही वजह है कि इस बार यह 31 अगस्त को है। मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव जैसे स्थानों पर इस दिन विशेष आयोजन होते हैं। राधाष्टमी का पर्व भक्ति, सौंदर्य और स्त्री-शक्ति की गूंज लिए हुए होता है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठानों का पर्व नहीं बल्कि ब्रज की संस्कृति और लोकभावना का उत्सव माना जाता है। जिसे लोग बहुत ही धूमधाम से मानते हैं।
राधाष्टमी की खासियत

ब्रज में राधाष्टमी केवल एक देवी का जन्मदिन नहीं बल्कि नारी तत्व की महिमा का प्रतीक है। इस दिन बरसाना में राधारानी का विशेष श्रृंगार किया जाता है और हजारों श्रद्धालु उनके दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। राधारानी मंदिर की सीढ़ियों पर फूल बिछाए जाते हैं, रासलीला का मंचन होता है और गोस्वामी समाज की महिलाएं पारंपरिक गीतों से पूरे गांव को गुंजायमान कर देती हैं। यह पर्व महिलाओं के लिए भी विशेष रूप से महत्व रखता है। इस दिन महिलाएँ उपवास करती हैं, सुहाग चिन्हों से सजी होती हैं और राधारानी से सुखमय जीवन की कामना करती हैं।
राधा के जन्म से जुड़ी कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, राधा का जन्म वृषभानु और कीर्ति की पुत्री के रूप में बरसाना में हुआ था। कुछ किंवदंतियों में यह भी कहा जाता है कि राधा कमल के फूल से प्रकट हुईं थीं। उनका जन्म अष्टमी तिथि को हुआ और विशेष बात यह थी कि उनकी आंखें जन्म के समय बंद थीं जो केवल श्रीकृष्ण के दर्शन पर खुलीं। यह कथा इस बात का प्रतीक मानी जाती है कि राधा का जीवन केवल कृष्ण के लिए समर्पित था। वह प्रेम का शुद्धतम रूप थीं। इस कथा को रासलीला और लोकगीतों के माध्यम से पीढ़ियों से सुनाया और जिया जाता रहा है।
राधाष्टमी के प्रमुख आयोजन

बरसाना के राधारानी मंदिर में सुबह से ही दर्शन के लिए लंबी कतारें लग जाती हैं। मंदिर को फूलों और रंगोली से सजाया जाता है। महिलाएं राधा के श्रृंगार में भाग लेती हैं, और बालिकाएं राधा के रूप में सजती हैं। शाम को रासलीला का आयोजन होता है जिसमें कृष्ण और राधा की लीलाओं का मंचन किया जाता है। वृंदावन के राधा बल्लभ मंदिर, प्रेम मंदिर, निधिवन और श्रीजी मंदिर में भजन-कीर्तन की अनवरत धारा बहती है। इन आयोजनों में देश-विदेश से श्रद्धालु शामिल होते हैं।
राधाष्टमी आध्यात्मिक महत्व
इस पर्व का अपना विशेष महत्व है। यह प्रेम का प्रतीक माना जाता है क्योंकि राधा का प्रेम स्वार्थरहित, समर्पणमय और आत्मिक है। उनके और कृष्ण के संबंध को ब्रज में सर्वोच्च आदर्श माना जाता है। इसे नारी शक्ति के सम्मान के तौर पर भी देखा जाता है। राधा को ‘स्वतंत्रा’ माना गया है। एक ऐसी देवी जो अपने निर्णयों में पूर्णतः स्वतंत्र थीं। इसे लोक परंपराओं का जीवंत रूप में देखा जाता है क्योंकि राधाष्टमी पर रचे जाने वाले लोकगीत, नृत्य और रासलीलाएं ब्रज की जीवंत संस्कृति को आज भी जीवित रखते हैं।
इस तरह से हम देखें तो राधाष्टमी न केवल एक धार्मिक पर्व है बल्कि यह ब्रज की आत्मा का उत्सव है। राधा के रूप में ब्रजभूमि ने एक ऐसी स्त्री को पूजा है जो प्रेम, सौंदर्य, और आत्मा की ऊंचाइयों का प्रतीक बन चुकी हैं। इस दिन का हर रंग, हर स्वर, हर भाव राधा को समर्पित होता है और यही इसे ब्रज के लिए इतना ख़ास बनाता है।
