Overview:
श्री विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के अनंत स्वरूप की प्रतीक काशी मोक्ष नगरी भी है तो शिव की कृपा पाने का माध्यम भी। यहां देवतागण स्वयं 'देव दीपावली' मनाते हैं। इस साल देव दीपावली का यह पर्व 5 नवंबर, 2025 को मनाया जाएगा।
Dev Diwali Varanasi 2025: काशी सिर्फ एक शब्द या शहर नहीं है, बल्कि एक भावना है जो हर भारतीय की आस्था से जुड़ी है। यह शहर अध्यात्म का वो केंद्र है, जहां स्वयं शिव विराजते हैं। यह शिव की नगरी है। उनका निवास स्थान है, जिसकी रचना शिव शंकर ने स्वयं की थी। श्री विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के अनंत स्वरूप की प्रतीक काशी मोक्ष नगरी भी है तो शिव की कृपा पाने का माध्यम भी। यहां देवतागण स्वयं ‘देव दीपावली’ मनाते हैं। इस साल देव दीपावली का यह पर्व 5 नवंबर, 2025 को मनाया जाएगा। अगर आप भी इस त्योहार और उत्सव का हिस्सा बनने के लिए काशी जाने का मन बना रहे हैं तो कुछ बातें जानना आपके लिए जरूरी है।
देव दीपावली से जुड़ी है पौराणिक कथा

देव दीपावली से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन काशी में देव दीपावली मनाई जाती है। इसी दिन भगवान शिव ने देवताओं पर अत्याचार करने वाले त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता है। त्रिपुरासुर संहार से प्रसन्न होकर देवता शिव की नगरी काशी में दीप जलाकर इस जीत की खुशी मनाना चाहते थे। लेकिन काशी के राजा दिवोदास को अपने तपोबल का अहंकार हो गया था। इसी के चलते उसने देवताओं का बहिष्कार करते हुए, उनके और स्वयं भगवान शिव के काशी प्रवेश पर रोक लगा दी। जब देवता काशी में उत्सव मनाने गए तो वे काशी में प्रवेश नहीं कर पाए। न ही शिव को प्रवेश मिला।
शिव ने किया गंगा स्नान
माना जाता है कि इसके बाद भगवान शिव ने रूप बदलकर पंचगंगा घाट पर गंगा स्नान किया। जब राजा दिवोदास को इस बात का पता चला तो उसका अहंकार चूर-चूर हो गया। उसने देवतागणों के काशी प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया। जिसके बाद देवताओं ने काशी के घाटों पर दीप जलाकर देव दीपावली मनाई। माना जाता है कि काशी में देव दीपावली मनाने की परंपरा तभी से चली आ रही है।
महारानी अहिल्याबाई ने दिया भव्य रूप
काशी में सदियों से देव दीपावली मनाई जाती है। प्राचीन काल में देव दीपावली पर पंचगंगा घाट पर बने हजारा स्तंभ पर दीप जलाए जाते थे। शिव भक्त महारानी अहिल्याबाई होलकर ने इस परंपरा को भव्य रूप देते हुए सभी गंगा घाटों पर दीप प्रज्वलित करने की परंपरा की शुरुआत की। आज भी इस महापर्व पर काशी के हर घाट को दीपों से सजाया जाता है।
अद्भुत दीपावली के बनें गवाह
काशी में जाकर आप आज भी देवताओं की इस भव्य दीपावली को देखने के साक्षी बन सकते हैं। अब यह देव उत्सव परंपरा और आधुनिक तकनीक का अनोखा मेल नजर आता है। काशी का हर घर, हर घाट, हर मंदिर लाखों दीपों से जगमग होता है। मिट्टी के दीपकों में जलती आनंद, उम्मीद और खुशियों की लौ जब गंगा नदी के पावन जल में अपना प्रतिबिंब छोड़ते हैं तो लगता है, मानों स्वयं शिव शंभू और देवता इस दृश्य को देखते हैं। उत्तर प्रदेश टूरिज्म की ओर से देव दीपावली पर भव्य आतिशबाजी के साथ ही शानदार लेजर शो का आयोजन भी किया जाता है। भव्य रंगोली और सांस्कृतिक कार्यक्रम इस नजारे को और भी आकर्षक बना देते हैं।
साक्षी बनते हैं लाखों पर्यटक
गंगा के घाटों पर जाकर आप इन भव्य और दिव्य दीपावली का अनुभव कर सकते हैं। लेजर शो आमतौर पर चेत सिंह घाट पर होता है। हालांकि यह आस पास के सभी घाटों से नजर आता है। वहीं सांस्कृतिक संध्या का आयोजन नमो घाट सहित कई अन्य घाटों पर होता है। घाटों पर रोशन दीपक और आकाश में रंग भरती आतिशबाजी और लेजर देखना लाइफ टाइम एक्सपीरियंस जैसा महसूस होता है। दुनियाभर से हर साल लाखों देसी और विदेशी पर्यटक इस अलौकिक नजारे को देखने के लिए आते हैं।
बोट करवा सकते हैं बुक
आध्यात्मिकता और संस्कृति के इस संगम पर्व को देखने के लिए अगर आप भी काशी जाने की योजना बना रहे हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है। देव दीपावली के अलौकिक दृश्यों को देखने का सबसे अच्छा तरीका है क्रूज और बोट की सवारी। गंगा के घाटों पर जगमग होते दीपों के साथ ही गंगा आरती देखने का सबसे बेहतरीन तरीका है। आप अपने बजट और पसंद के अनुसार बोट बुक करवा सकते हैं। लाइटों से सजी बोट के साथ ही शास्त्रीय संगीत और अन्य सुविधाओं वाली बोट्स आपको मिल जाएंगी। बोट्स का शुल्क प्रति व्यक्ति 3000 रुपए से शुरू होता है। बोट्स की बुकिंग आप एडवांस में करवा सकते हैं।
क्रूज का अनुभव रहेगा शानदार
देव दीपावली का लग्जरी अनुभव लेने के लिए आप क्रूज भी बुक करवा सकते हैं। यह क्रूज शाम 5 बजे से 8 बजे तक चलता है। तीन घंटे के इस सफर में पर्यटक देव दीपावली के साथ ही गंगा आरती, आतिशबाजी और लेजर शो को करीब से देख सकते हैं। यह एक ट्रिपल डेकर लग्जरी क्रूज है। जिसमें सफर के दौरान पर्यटकों को काशी के सभी 84 घाटों का टूर करवाया जाता है। साथ ही बनारसी चाट और शाकाहारी भोजन का आनंद भी यात्री लेते हैं। लाइव म्यूजिक इस सफर को और भी खास बनाता है। इस क्रूज के लिए एडवांस बुकिंग करवाई जा सकती है। इसका किराया 15,000 रुपए प्रति व्यक्ति है। पांच साल तक के बच्चों का प्रवेश निशुल्क है। यह क्रूज संत रविदास घाट से रवाना होता है।
इन घाटों पर जाएं जरूर
काशी में कुल 84 गंगा घाट हैं। यह घाट का अपना महत्व, इतिहास और खासियत हैं। लेकिन फिर भी कुछ घाटों पर आपको जरूर जाना चाहिए। अगर आप भव्य गंगा आरती देखना चाहते हैं तो दशाश्वमेध घाट सबसे अच्छा विकल्प है। इसी के साथ अस्सी घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट पर भी देव दीपावली पर गंगा आरती के साथ ही कई सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। इसी के साथ नमो घाट, मणिकर्णिका घाट, तुलसी घाट, हरिश्चंद्र घाट और नेपाली घाट देखना अपने आप में अलग अनुभव होगा।
मंदिरों की नगरी काशी
काशी में आपको कदम कदम पर ऐतिहासिक मंदिरों के दर्शन होते हैं। हर मंदिर का अपना इतिहास है।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर : यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से आत्मा को शुद्धि मिलती है। 1194 से 1777 के बीच इस मंदिर को कई बार ध्वस्त किया गया और फिर पुनर्निर्माण हुआ। 1777 में इंदौर की रानी अहिल्या बाई होल्कर ने मंदिर के वर्तमान ढांचे का निर्माण कराया। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर परियोजना ने मंदिर की यात्रा को और भी सुगम बनाया है। यह परियोजना काशी विश्वनाथ मंदिर सहित 40 मंदिरों और घाटों को जोड़ती है। इस कॉरिडोर से आप सीधे दशाश्वमेध घाट जा सकते हैं।
श्री काल भैरव मंदिर : माना जाता है कि श्री काल भैरव के दर्शन के बिना काशी विश्वनाथ के दर्शन अधूरे हैं। इसे बटुक भैरव मंदिर भी कहा जाता है।
यहां जरूर जाएं : काशी में स्थित श्री दुर्गा मंदिर, दो सौ साल पुराना गुरुधाम मंदिर, श्री कर्दमेश्वर मंदिर, 51 शक्तिपीठों में शामिल विशालाक्षी देवी मंदिर, तुलसी मानस मंदिर आदि मंदिर अपने आप में अनोखे हैं। इनके दर्शन आपको अलग ही आनंद देंगे।
