शिमला की असली खूबसूरती देखनी है, तो टॉय ट्रेन रूट से करें सफर: Toy Train Route
Toy Train Route

टॉय ट्रेन से यात्रा के बारे में जानकारी

कालका-शिमला रेल (केएसआर) से सफ़र करना कई लोगों का सपना होता है, इसलिए इस बार टॉय ट्रेन से यात्रा के बारे में जानकारी आपकी यात्रा को सुविधाजनक बनाएगी।

Toy Train Route: हिमाचल प्रदेश की राजधानी और हिल स्टेशन होने के नाते शिमला पूरी दुनिया में लोकप्रिय है और यहाँ के पर्यटन स्थल तो इस जगह को और भी ख़ास बना देते हैं। लेकिन अगर आपको शिमला की असली ख़ूबसूरती देखनी हो तो टॉय ट्रेन रूट से सफर करना चाहिए। कालका-शिमला रेल से सफ़र करना कई लोगों का सपना होता है, इसलिए इस बार टॉय ट्रेन से यात्रा के बारे में जानकारी आपकी यात्रा को सुविधाजनक बनाएगी। शिमला ट्रिप के लिए जाने का विचार बना रहे हैं तो कालका शिमला टॉय ट्रेन से यात्रा करना एक अद्भुत अनुभव होगा। इस लेख के माध्यम से कालका शिमला टॉय ट्रेन की पूरी जानकारी के मिलेगी ताकि आपका सफ़र ख़ूबसूरत और आरामदेह बन सके।

कालका शिमला टॉय ट्रेन  

सबसे पहले लोगों के मन में सवाल आता है है कि कालका शिमला टॉय ट्रेन आख़िर है क्या? नैरो गेज रेलवे ट्रेन कालका से शिमला और शिमला से कालका तक चलती है। प्रकृति के ख़ूबसूरत नज़ारों को दिखाने के साथ-साथ बीते युग के रोमांस, रोमांच और पुरानी यादों को तरोताज़ा करती है। यह रूट कुल 96 किलोमीटर का है जिसे 5-6 घंटे में पूरा किया जा सकता है, लेकिन अब इस रूट पर कई धीमी और तेज़ गति की भी ट्रेनें चलने लगी हैं।

यूनेस्को की विश्व विरासत 

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इस तरह के प्रोजेक्ट का सफलता पूर्वक निर्माण करना सम्भव नहीं था लेकिन यह हुआ तो इसका एक इतिहास बन गया। यह ट्रेन अपने 96 किलोमीटर के सफ़र के दौरान कई ऐसी सुरंगों से होकर गुजरती है जिसे देखकर किसी की भी साँस थम जाये। इसीलिए केएसआर को 10 जुलाई 2008 को महत्वपूर्ण मानते हुए यूनेस्को ने अपनी विश्व विरासत की सूची में शामिल किया है। विश्व विरासत के रूप में शामिल होने से इस जगह पर वैश्विक पर्यटन को बढ़ाने में काफ़ी योगदान मिलता है। इस पहल से इस विरासत के साथ इस लाइन पर आने वाले समुदाय, पर्यावरण, पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

टॉय ट्रेन की शुरुआत और उद्देश्य 

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Toy Train Route-toy train

कालका शिमला टॉय ट्रेन को लेकर काम 1898 यानि कि ब्रिटिश काल के दौरान शुरू किया गया था और काफ़ी लम्बा वक़्त और चुनौतियों के बाद 1903 तक पूरा किया गया। इस तरह इस लाइन पर सबसे पहली ट्रेन वर्ष 1903 में चली और शिमला का सफ़र आसान हो गया। इसके निर्माण का उद्देश्य भी यही था कि घोड़े और बैल की खींची हुई गाड़ियों का इस्तेमाल ख़त्म हो, सफ़र को आसान और आरामदेह बनाया जा सके, जिसके पीछे एक महत्वपूर्ण तथ्य यह था कि शिमला भारत की ग्रीष्मकालीन और कलकत्ता शीतकालीन राजधानी हुआ करती थी और पूरे सरकारी काम को गर्मी के मौसम में कलकत्ता से शिमला में स्थानांतरित कर दिया गया था। 

टॉय ट्रेन सफ़र की खासियत 

shimla
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यह परियोजना अद्भुत इंजीनियरिंग का एक नयाब नमूना है जो हिमालय की ख़ूबसूरती को ख़ुदमें समेटती हुई चलती है। यह मनमोहक दृश्य और यात्रा के अद्भुत अनुभव को देखने के बाद कोई भी पर्यटक इसके आकर्षण को नहीं भुला पाता है जिसकी वजह से यह पर्यटकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है। इस लाइन पर कुल 20 स्टेशन हैं, 103 सुरंगें रास्ते में आती हैं। इसमें 912 वक्र और 969 पुल बनें हुए हैं जो किसी को भी रोमांचित कर सकते हैं। इन लाइन पर आने वाली सबसे लंबी सुरंग का नाम बरोग है, जिसकी लंबाई 1.1 किमी के आसपास है, जिससे जुड़ी कई तरह की रहस्यमयी कहानियाँ जुड़ी हुईं हैं।

सबसे अच्छी ट्रेन कौन सी है?

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सभी ट्रेन इस रूट की ख़ास हैं लेकिन अगर इनमें चुनाव करना हो तो शिवालिक डीलक्स एक्सप्रेस, रेल मोटर कार और  विस्टाडोम से यात्रा करना ज़्यादा मज़ेदार रहेगा। यदि किसी को जल्दी यात्रा करनी है तो रेल मोटर कार सबसे तेज गति से चलती है, जिससे महज़ 4 घंटे में शिमला पहुंचा जा सकता है। यात्रा के साथ खानपान की तो बेहतर होगा कि अपना खाना पैक करके ले जाएं।

कालका रेलवे स्टेशन कैसे पहुंचे?

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इस जगह पर पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको कालका पहुँचना होगा जोकि हरियाणा राज्य के पंचकुला जिले में स्थित है। यह जगह रेल और सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। जिसकी वजह से आप इस जगह पर अपनी निजी कार अथवा बस से पहुंच सकते हैं। कई लोग पहले चंडीगढ़ पहुंचते हैं, क्योंकि कालका अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से महज़ 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजधानी दिल्ली से कालका की दूरी लगभग 250 किमी है। राष्ट्रीय राजमार्गों द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। कालका में चंडीगढ़ और दिल्ली से सीधे ट्रेनें आती हैं। इस जगह पर स्थित कालका रेलवे स्टेशन देखकर आपको लगेगा कि आप विदेश में हैं। 

प्रकृति का अद्भुत सम्मोहन 

इस यात्रा के दौरान सबसे ख़ास बात रास्ते में आने वाले प्राकृतिक नज़ारे हैं। पूरा रूट हरे भरे पेड़ पौधों से भरा हुआ और काफ़ी रोमांचक है। बीच-बीच में आने वाले स्टेशन किसी ऐसी जगह की याद दिलाते हैं, जिसे देखकर हम वर्षों पहले भूल गए हों। कालका से चलने के तक़रीबन एक घंटे के बाद सबसे पहले बरोग स्टेशन पर रुकती है। इस स्टेशन पर खाने-पीने की चीज़ें मिल जाती हैं। दस मिनट के इस ठहराव के दौरान मन आसपास के नज़ारों में खो जाता है। फिर कुछ देर बाद ट्रेन चल देती है, पूरे रास्ते में ट्रेन की रफ़्तार इतनी धीमी होती है कि कभी भी नीचे उतरकर चढ़ा जा सकता है।

रास्ते का रोमांच 

इस दौरान आने सुरंगे मन में एक अनोखा रोमांच पैदा करती हैं। एक के बाद एक करके सौ से ज़्यादा सुरंगे आती हैं। इस दौरान आने वाली प्रत्येक सुरंग को कुछ नंबर और अन्य तकनीकी विवरणों के साथ बहुत ही अच्छी तरह से चिह्नित किया गया था। यह सबकुछ इतना अच्छा लगता है कि मन कहीं पर खोया रह जाता है और शिमला स्टेशन आ जाता है। इस जगह से आराम से आपको होटल से टैक्सी आदि मिल जाती है। 

संजय शेफर्ड एक लेखक और घुमक्कड़ हैं, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ। पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और मुंबई में हुई। 2016 से परस्पर घूम और लिख रहे हैं। वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन एवं टोयटा, महेन्द्रा एडवेंचर और पर्यटन मंत्रालय...