Teej Mata Ki Sawari: दुनिया भर में अपने आतिथ्य के लिए जाने वाली गुलाबी नगरी में आप जब प्रवेश करते हैं तो आपको यहां एक मॉडर्न सिटी के साथ परंपराएं भी हिलोरी मारती नजर आती हैं। बेशक हर शहर की तरह गुलाबी नगरी भी समय के साथ आगे बढ़ रही है लेकिन यहां के उत्सव और मेलों में पारंपरिक चाश्वनी की मिठास है। इस बार तीज 19 अगस्त को है। इस दिन यहां तीज माता की सवारी निकलती है। राजघराने के जमाने से यह चला आ रहा है जो कि आज भी जारी है। इस सवारी का आनंद शहरवासी तो लेते ही हैं लेकिन विदेशी पर्यटक भी इसे देखने का मौका अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते।सावन मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथी को राजस्थान के प्रमुख रजवाड़ों में तीज मनाई जाती है। जयपुर के सिटी पैलेस में इस दिन निकलने वाली तीज की सवारी अपनी शाही आन-बान के साथ निकलती है। रियासतकाल में इस दिन बड़े कार्यक्रम हुआ करते थे। इस दिन की वैसी ही अहमियत थी जैसे आज हम स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की करते हैं। यह एक ऐसा उत्सव होता था जिसमें राजा चाहते थे कि हर कोई तीज के रंग में डूब जाए। सावन और बारिश का आनंद ले। ऐसे में तीन दिन का अवकाश मिलता था। शिव और पार्वती के असीम प्रेम के पर्व का यह पर्व अब राजस्थान के रंग में शामिल है।
सिटी पैलेस में विराजती हैं तीज माता
जयपुर का सिटी पैलेस दुनिया भर में मशहूर है। यह पैलेस के संग्राहलय में आपको बहुत कुछ अनूठा मिलेगा। इस पैलेस को आम लोग देख सकते हैं लेकिन आज भी कुद हिस्से में पूर्व राजघराना रहता है। तीज माता भी इसी पैलेस में विराजती हैं। माना जाता है कि जयपुर महाराज मानसिंह द्वितीय की पहली पत्ननी मरूधा कंवर को तीज मता से बहुत अलग लगाव था। उनके महल में तीज की एक अलग ही रौनक होती थी। आज भी सवारी निकलने से पहले माता को बहुत अच्छे से सजाया जाता है। राजाओं के जमाने में रामनिवास बाग, रामबाग, व घाट की गुनी के राज निवास बाग से तीज माता के लिए सुगंधित केवड़े और गेंदे के फूल आते थे।
मन से करते हैं सेलिब्रेट
कोई भी संस्कृति तभी तब जीवत रहती है जब तक वो जीवन का हिस्सा बनी रहे। ऐसा नहीं है कि कोई आदेश आता है। लेकिन तीज वाले दिन महिलाएं अपने हाथों में मेहंदी लगाती हैं और लहरिया पहनती हैं। चटक रंग की साड़ी, सावन के झूले, गीत, घेवर यह सभी कुछ लोगों की जिंदगी का एक हिस्सा है। लहरिया की रौनक आपको तीज पर नजर आएगी। यहां एक रिवाज है सास अपनी बहू को पहली तीज पर लहरिया सौगात के तौर पर देती है। ऐसे में इस त्योहार पर आपको यहां रिश्तों का एक अलग ही बॉन्ड नजर आता है। इस दिन यहां लोग मन भर के घेवर खाते हैं। बारिश का होना भी इस दिन लगभग तय ही होता है।
बरामदे की छत पर
राजस्थान सरकार के टूरिज्म डिपार्टमेंट की ओर से चार दीवारी की बरामदों की छतों पर माता की सवारी को देखने का खास इंतजाम होता है। इसे आधुनिक जयपुर के दीवान सर मिर्जा इस्माईल ने मानसिंह द्वितीय के नेतृत्व में बरामदे बनवाए थे। यह बरामदे इसलिए बनाए गए थे ताकि ताकि धूप या बारिश में पैदल चलने वालों को कोई भी परेशानी न हो। आप इन बरामदों की छतों पर बैठकर सवारी का आनंद ले सकते हैं। तीज माता की सवारी सिटी पैलेस से निकलकर निकलर छोटी चौपड़, चौगाम स्टेडियम,चीनी की बुर्ज होती हुई तालकटोरा पहुंचती है। तालकटोरा में यह रुकती है। यहां एक पॉनड्रिक छतरी है जहां माता को घेवर का भोग लगाया जाता है। माता की सवारी के साथ आपको यहां के सांस्कृतिक रंग भी देखने को मिलेंगे। इसके साथ ही लोककलाएं और लोकनृत्य भी नजर आएंगे।
तीन दिन का होता है उत्सव
अगर आप तीज के मौके पर जयपुर आने का प्लान कर रहे हैं तो जरुर पधारें। जयपुर की महिलाओं ने तो भले ही लहरिया की चुनरी ओढ़ रखी है लेकिन जयपुर ने अपने ऊपर हरियाली चादर ओढ़ी है। आप तीन दिन आने का प्लान करें। पहले दिन सिंजारा होता है इस दिन महिलाएं हरे कपड़े पहनकर हाथों में मेहंदी लगाती हैं। दूसरे दिन तीज और तीसरे दिन बूढ़ी तीज होती है। दूसरी दिन की तीज नवयौवनाओं की होती है तो बूढ़ी तीज बढ़ी उम्र की महिलाओं के लिए है। इस सवारी को देखने के बाद जयपुर में गंगा-जमुनी तहजीब किस तरह सांस ले रही है। यहां लहरिए का कोई धर्म नहीं है। यह किसी जात या समुदाय तक सीमित नहीं है। यह जयपुर का त्योहार है आप भी इस बार इस जश्न में शामिल हो जाएं।