Shiva Shringaar Significance: सृष्टि पर जीवन संभव बनाने वाले भोलेनाथ के हर रूप और हर श्रृंगार का धार्मिक महत्व है। शिव जी की वेशभूषा सबसे अधिक अनोखी है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, शिव के शरीर पर दिखाई देने वाले सभी अस्त्र शस्त्र सृष्टि के कल्याण के लिए महत्वपूर्ण है। जहां एक ओर ये शस्त्र अस्त्र शिव जी का श्रृंगार पूरा करते हैं वहीं दूसरी ओर धरती के संचालन में योगदान भी देते हैं। डमरू, त्रिशूल, चंद्रमा, नाग, गंगा, ॐ और रुद्राक्ष शिव जी से जुड़े मंगल प्रतीक है, जिनका आधुनिक युग में विशेष स्थान है। ज्योतिषशास्त्र में शिव जी के इन खास संकेतों को बहुत अधिक पवित्र और शुभ माना गया है। आज इस लेख में हम शिव जी के अस्त्र शस्त्र के चिन्हों और श्रृंगार के रहस्य के बारे में जानेंगे।
त्रिशूल, धनुष और डमरू का रहस्य

पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि शास्त्रों में भगवान शिव ही अकेले ऐसे देवता बताएं गए हैं जिन्हें सभी अस्त्र शस्त्र की सिद्धि प्राप्त है। शिव जी का त्रिशूल सृष्टि के तीन गुणों रज, तम और सत से मिलकर बना है जो सभी तरह के दैवीय और भौतिक कष्टों का विनाश कर सकारात्मकता को बढ़ाता है। शिव जी के त्रिशूल को सृष्टि का सबसे अधिक शक्तिशाली अस्त्र माना जाता है।
वास्तु के अनुसार घर पर त्रिशूल रखने से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। शिव जी के धनुष का नाम पिनाक है। धर्मग्रंथों के अनुसार, शिव जी के धनुष पिनाक की एक टंकार से ही सृष्टि में भूकंप आ जाता है। शिव जी को डमरू की धुन बहुत पसंद है। शास्त्रों के अनुसार, शिव जी के डमरू में सातों सुरों की ध्वनि है। माना जाता है कि शिव जी के 14 बार डमरू बजाने के बाद ही संगीत की देवी सरस्वती की वाणी में सुरों की ध्वनियां उत्पन्न हुई थीं।
रुद्राक्ष, नाग और चंद्रमा का रहस्य

पौराणिक कथाओं के अनुसार, रुद्राक्ष का जन्म शिव जी के आंसुओं से हुआ था। रुद्राक्ष नई निर्माण शक्ति का प्रतीक है। शिव जी के भक्त 12 मुखी रुद्राक्ष को अपने गले या हाथों में पहनते हैं। साथ ही घर में ग्रह शांति के लिए रुद्राक्ष रखना श्रेष्ठ होता है। नागवंश के राजा वासुकि, शिव जी के बहुत बड़े भक्त थे। वासुकि की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव जी ने उन्हें अपने पास रहने का वरदान दिया था। जिसके बाद शिव जी ने वासुकि नाग को आभूषण की तरह अपने गले में धारण किया।
शिव जी के गले का वासुकि नाग यह संदेश देता है कि सृष्टि के प्रत्येक जीव में शिव जी का अंश है। शिव जी अपनी जटाओं में गंगा के साथ साथ चंद्रमा को भी धारण करते हैं। चंद्रमा को मन का प्रतीक माना गया है। इसलिए शिव की जटाओं में चंद्रमा का रहना इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति अपनी इच्छाशक्ति से अपने चंचल मन पर नियंत्रण कर सकता है।
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