Birth Story Of Maa Durga : पितरों के तर्पण को समर्पित श्राद्ध के समापन के साथ ही भारत में त्योहारों का सीजन आरंभ हो जाता है। जहां चारों और त्योहारों की धूम होती है वहीं भारतवासियों में एक अजब गजब उल्लास भी होता है। त्योहारों की इस कड़ी में सबसे पहले आता है माता भगवती की आराधना और साधना का महापर्व नवरात्रि। नवरात्रि के आगाज के साथ जहां चारों ओर गरबा और डांडिया की धूम होती है, वहीं माता की भक्ति में डूबे भक्त धुनुचि नृत्य से माँ को प्रसन्न करते हैं । भक्ति, श्रद्धा, प्रेम और भाव के साथ भक्त इन नौ दिनों में शक्ति का पूजन करते हैं। माता भगवती को अनन्य भोग अर्पित कर जहां भक्त माता को प्रसन्न करते हैं वहीं माँ भी अपने भक्तों पर अपनी अतुल्य कृपा बरसाती हैं। देवी आदिशक्ति इस संसार की संचालक हैं लेकिन क्या है उनकी शक्ति का रहस्य? इस लेख में आप जानेंगे कि कैसे माता भगवती का प्रादुर्भाव हुआ और उन्होंने अपने भक्तों पर कृपा की।
कैसा है माँ का स्वरूप?

पुराणों के अनुसार माता भगवती इस जगत की संचालक हैं। शिव भी शक्ति के बिना शव ही हैं, ऐसी माता आदिशक्ति का स्वरूप अत्यंत मनमोहक है। माता दुर्गा का स्वरूप कपूर की भाँति गौर वर्ण का है। लाल रंग के वेश में माता ने अत्यंत मनमोहक आभूषण धारण किए हैं। शास्त्रों में वर्णन के अनुसार माता के कमल लोचन में काजल की रेखाओं से रात्रि होती है और उनके नेत्रों के तेज से सूर्या तेजस्वी होता है। रत्नजड़ित आभूषणों से सुसज्जित माता का स्वरूप अद्भुत है। अष्टभुजी दुर्गा के हाथों में विभिन्न शस्त्र हैं जिनसे वे दुष्टों का संहार कर भक्तों पर कृपा करती हैं। माता के वाहन के रूप में एक सिंह भी सेवा में विराजमान है।
यहाँ मिलती है माता के प्रादुर्भाव की कथा
अनेकों शास्त्रों और पुराणों में माता भगवती दुर्गा की उत्पत्ति की अलौकिक कथा मिलती है। देवी भागवत, दुर्गा सप्तशती जैसे कई शास्त्रों में माता दुर्गा के प्राकट्य की वह दिव्य कथा मिलती है जिसके श्रवण मात्र से श्रोता का कल्याण हो जाता है। जिसके पठन से पाठक को जन्मों जन्मों के पाप से मुक्ति मिल जाती है। आइये उस दिव्य कथा के बारे में जानते हैं।
ऐसे हुआ माता का प्रादुर्भाव
एक समय पर दैत्यों का आतंक अत्यधिक बढ़ गया। उनके आतंक से चारों और हाहाकार मच गया। दानवों ने देवताओं के राजा इंद्र को परास्त कर उनकी स्वर्गपुरी को भी अपने अधीन कर लिया और देवों के यज्ञ का हिस्सा भी स्वयं ही ग्रहण करने लगे। ऐसे में असुरराज महिषासुर के अत्याचार से बेहद परेशान और दुखी देवताओं ने इस समस्या के समाधान के विषय में सोचा और सृष्टि के सृष्टिकर्ता ब्रह्मदेव के पास गये। देवताओं की समस्त पीड़ा सुनकर ब्रह्मा जी ने अपनी दिव्य दृष्टि से दैत्यराज का अतीत देखा और देवताओं को बोले कि इस अत्यंत भयानक दैत्य का वध केवल के केवल एक कुँवारी कन्या ही कर सकती है। यह सब सुनकर समस्त देवता ब्रह्मदेव के साथ महादेव और विष्णु भगवान के पास पहुँचे।
जब समस्त देवताओं ने अपनी व्यथा का कारण भगवान विष्णु और भगवान को शिव को बताया तो सहसा ही क्रोध से उनकी भौं तन गई और दोनों में से एक दिव्य अलौकिक तेज प्रकट होकर एक दूसरे में समाहित हो गया।इसके बाद समस्त देवताओं के तेज भी एक एक कर उस अलौकिक दिव्य तेजपुंज में समाहित होने लगे।
देवाधिदेव महादेव के दिव्य तेज से माता का श्री मुख बना वहीं इस संसार के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु के तेज से माता की बलशाली भुजाओं का निर्माण हुआ। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी के तेज से माता के दोनों चरण प्रकट हुए। मृत्यु के देवता यमराज के तेज से माता के सुंदर केश उत्पन्न हुए जबकि रात्रि की आभा चन्द्रदेव के तेज से माता में स्तन प्रकट हुए। देवराज इंद्र के तेज se माता का कटि प्रदेश बना। वरुणदेव के तेज से माता की जंघा बनी, पृथ्वी के तेज से नितंब बने पीरी सूर्यव के तह से माता के दोनों पैरों की उँगलियों का निर्माण हुआ। प्रजापति के तेज से माता के समस्त दांत उत्पन्न हुए जबकि अग्निदेव के तेज से माता के दोनों नेत्र प्रकट हुए। संध्या के तेज से माता की भौंहें उत्पन्न हुई और वायु के तेज से माता के कर्ण उत्पन्न हुए। , वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने।
मां दुर्गा को उपहार में मिले शस्त्र
मां दुर्गा की जैसे ही उत्पत्ति हुई उसके पश्चात दैत्यों ओर विजय प्राप्त करने हेतु शक्ति स्वरूप में माता भगवती को समस्त देवताओं ने मिलकर कई सुंदर अस्त्र शस्त्र प्रदान किए। भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से निकालकर एक शूल माता को अर्पित किया वहीं भगवान विष्णु ने चक्र भेंट किया। देवराज इंद्र ने माता को वज्र, वरुण ने शंख, अग्नि ने शक्ति और वायु ने माता को तीरों से भरा तरकश प्रदान किया ।यमराज ने कालदण्ड माता को भेंट किया व प्रजापति ने माता को स्फटिक मणियों की माला भेंट की। ब्रह्मा जी ने माता को कमंडल भेंट किया और हिमवान राज ने माता को वाहन स्वरूप में सिंह भेंट किया। इसके साथ साथ मां दुर्गा को समुद्र ने कभी गंदे ना होने वाले और कभी ना फटने वाले दिव्य वस्त्र भेंट किए। इसके साथ ही समुद्र ने दिव्य चूड़ामणि, उज्जवल हार, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर, दो कुंडल और अंगुठियां भी भेंट की।विश्वकर्मा ने माता को एक दिव्य फरसा भेंट किया और साथ ही अनेक अभेद्य अस्त्र और कवच भी माता को अर्पित किए। नागराज ने माता को एक अतुल्य नाग हार भेंट किया और कुबेर ने मधु से भरा दिव्य पान पात्र माँ को अर्पित किया। समस्त अस्त्रों को माता ने अपनी अष्टभुजाओ में धारण किया।मां दुर्गा का यह विराट और भव्य स्वरूप देखकर असुरों में अत्यंत कोप और भय फैल गया।इसके पश्चात माता दुर्गा ने अष्टभुजी स्वरूप में महिषासुर का वध किया। माता का यह स्वरूप महिषासुरमर्दिनी के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
