Vidhi Vidhan: आपके मन में ईश्वर के बारे में एक कल्पना है। उसके अनुसार आप यही सोच रहे होंगे कि भगवान उन्हीं जरीदार वस्त्रों और रत्नभूषणों में सज-धज कर भक्तों को अनुग्रह प्रदान कर रहे हैं
अक्सर मुझसे पूछे जाने वाले प्रश्नों में से एक है-
‘ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं? आदि मानव पर भय हमेशा हावी रहता था। आकाश में काली-काली घटाएं… रह-रहकर कौंधती टेढ़ी-मेढ़ी प्रकाश रेखाएं… धड़-धड़ करते मेघों का घनघोर गर्जन… नभ की छत फोड़ते हुए मूसलों की तरह गिरती वर्षा… अंतरिक्ष का अपरिमेय विस्तार… अनगिनत नक्षत्रों का पुंज… असीम सागर में लगरों का तुमुल नर्तन… यह सब अबूझ पहेलियां थीं आदि मानव के लिए… इनका मूल कारण जाने बिना वह भय त्रस्त रहता…
ब्रह्मड के अनंत विस्तार की तुलना में उसने अपने आपको तिनका-जैसा पाया। उस अबूझ शक्ति के सामने सिर नवाकर गुहार किया- ‘प्रभो, मेरी रक्षा करो। उसने वर्षा को नमन किया, सूर्य के सामने दंडवत् प्रणाम किया।
उसी दिन से ईश्वर उसके लिए भय के कारण प्रणम्य सत्व बन गया।
आप लोग ईश्वर के अस्तित्व पर क्यों विश्वास कर रहे हैं? इसलिए न कि जन्म के समय से लेकर माता-पिता यही समझाते आए हैं- ‘ईश्वर है , ‘ईश्वर है। आपके परिवार-जन जिस देवता की पार्टी के अनुयायी हैं, आप भी उसी ईश्वर को मानते हैं। आपके मन में ईश्वर के बारे में एक कल्पना है। उसके अनुसार आप यही सोच रहे होंगे कि भगवान उन्हीं जरीदार वस्त्रों और रत्नभूषणों में सज-धज कर भक्तों को अनुग्रह प्रदान कर रहे हैं… ठीक है न?
कैलेंडरों में छपे वेश-विधानों को छोड़कर अगर वे कुछ भिन्न तरीके से जीन्स और कुर्ता पहनकर प्रकट होंगे तो क्या आप उन्हें भगवान के रूप में स्वीकार करेंगे? हाथियों के संसार में जाकर पूछिए-‘ईश्वर किस रूप में होंगे? हाथी-समाज यही कहेगा, ‘हमसे भी बड़े आकार में, चार सूंडों के साथ शोभित हैं हमारे भगवान। चींटियों से पूछने पर उत्तर मिलेगा-‘पूरे छह इंच के कद में एक चींटी है, वही हमारा ईश्वर है। ईश्वर के साथ आपका कोई प्रत्यक्ष अनुभव नहीं है। इसलिए दूसरों ने उनके बारे में जो कुछ कहा, उसे उसी रूप में आपने मान लिया है।
खैर, बताइए आप मंदिर किसलिए जाते हैं? ईश्वर की अनुभूति प्राप्त करने के लिए? या उनसे कुछ न कुछ मांगने के लिए? ‘हे प्रभो, मुझे यह दो, वह दो, मुझे फलां जैसा बनाओ, संकटों से मेरी रक्षा करो… इस तरह की मन्नतें मांगने के लिए ही तो आप देवालय में जाते हैं! ईश्वर के प्रति आपका जो विश्वास है वह भय और लालच के आधार पर पाला गया है। अपने पूजा-गृह में आपने देवी-देवताओं के दर्जनों चित्र टांग रखे हैं। इसके फलस्वरूप क्या जीवन के प्रति आपका भय दूर हो गया है? बाहर निकलने से पहले आपको घर के साथ इस पूजा-गृह को भी बंद करके जाना पड़ता है, है न? भगवान आपके भय का प्रतीक है, तभी तो आपने ‘भक्ति शब्द के साथ ‘भय को जोड़ रखा है- भयपूर्वक भक्ति… भय-भक्ति। अगर भगवान प्रेम-स्वरूप है तो उनके प्रति भक्ति-भाव होना पर्याप्त नहीं है? भय किसलिए?
जो लोग ईश्वर का अनुभव नहीं कर पाते, वही आज भक्ति के बारे में ज्यादा बातें करते हैं। तब तो ईश्वर केवल काल्पनिक पात्र है ? क्या उनके बारे में चिंता करनी है?
एक अदना-सा बीज माटी के अंदर गिरने पर बड़े वृक्ष के रूप में बढ़ जाता है, कैसे? इस बीज में से इसी तरह का पेड़ उगेगा, ऐसा फूल खिलेगा-यों उसके अंदर दर्ज किया गया है, इन विधि-विधानों का नियामक कौन है? आपसे परे जो शक्ति है, उसे ईश्वर न कहें तो फिर क्या कह सकते हैं? तो, हम उसी स्थान पर पहुंच गए हैं। ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं? अगर आपके मन में इसे जानने की इच्छा जग जाए तो किससे पूछकर जान सकते हैं?