Religion
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Religion : नवरात्र आते ही देश भर में रामलीलाओं का मंचन आरंभ हो जाता है। यदि भव्य और प्रसिद्ध रामलीलाओं की चर्चा करें तो वाराणसी के रामनगर की रामलीला का नाम सबसे पहले आता है। 200 से भी अधिक वर्षों से चली आ रही यह कला अपने मूल स्वरूप में दर्शकों का मनोरंजन कर विश्व भर में ख्याति अर्जित कर चुकी है।

उतर-प्रदेश की धार्मिक एवं सांस्कृतिक नगरी वाराणसी के रामनगर की पहचान बन चुकी है रामलीला। 200 सालों से भी पुरानी इस रामलीला में आज भी प्राचीन परंपराओं का ही निर्वाह किया जाता है। पेट्रोमैक्स तथा मशाल की रोशनी के बीच खेली जाती है यह रामलीला। ना बिजली, ना लाउडस्पीकर, ना कोई विशेष तामझाम। बस खुला आकाश और उस आकाश के नीचे करीब 4 कि.मी. के दायरे पर कच्चे और पक्के मंच, जहां होती है भव्य रामलीला। अपनी दमदार आवाज और सशक्त अभिनय के बलबूते सैकड़ो वर्षों से दर्शकों का मनोरंजन कर रही यह रामलीला एक बार फिर 12 सितम्बर से 13 अक्टूबर तक दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करेगी। इसे देखने के लिए परंपरानुसार काशी नरेश भी सपरिवार प्रतिदिन हाथी पर सवार होकर आते हैं और उनके आगमन के पश्चात् ही रामलीला का आरंभ होता है।

Ramnagar Ramlila: UNESCO Intangible Cultural Heritage of Humanity –  Varanasi Videos

रामलीला का इतिहास

काशी के दक्षिण में गंगा तट पर स्थित ‘उपकाशी’ ही रामनगर कहलाती है। इसका ठीक-ठीक इतिहास तो ज्ञात नहीं किंतु किंवदंतियों के अनुसार इसकी शुरुआत सन 1776 में काशी नरेश उदित नारायण सिंह के शासनकाल में हुई थी और तब से लेकर आजतक गंगा तट पर बसा यह नगर हर वर्ष नवरात्र के महीने में पूरे एक माह तक राम के रंग में रंग जाता है।

इतने वर्षों बाद भी काशी नरेश ही वाराणसी शहर के मुख्य सांस्कृतिक संरक्षक और धार्मिक क्रियाकलापों के अभिन्न अंग माने जाते हैं। रामलीला की पूरी पृष्ठïïभूमि पारंपरिक और प्राकृतिक स्वरूप में आज भी विराजमान है। विशेषकर प्राकृतिक रूप से बने मंच, लंका का मैदान, अयोध्या नगरी आदि। हर प्रसंग के लिए अलग-अलग स्थान निर्धारित है। 4 कि.मी. की परिधि में रामचरितमानस में वर्णित स्थलों अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, लंका, पंचवटी, वाटिका, रामबाग आदि प्रमुख स्थल दर्शाए जाते हैं।

Ramnagar Ramlila रामनगर रामलीला 2019 – Varanasi Videos

प्रत्येक दृश्य के लिए अलग स्थान चुना जाता है। राजा-महाराजाओं के काल से ही पूरा रामनगर ही लीला के मंचन का स्थल बन जाता है। अमूमन इसके अधिकतर मंच स्थायी ही होते हैं, लेकिन आवश्यकतानुसार कुछ मंच तैयार भी किए जाते हैं।

रामलीला के पात्र

विश्व प्रसिद्घ इस रामलीला को खास बनाते हैं पात्रों की कड़ी मेहनत एवं अनुशासन तथा पात्रों को प्रशिक्षण देने वाले व्यास, जिनके नेतृत्व में ये प्रमुख पात्र प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। इन पात्रों के चयन पर काशी नरेश की स्वीकृति के बाद ही इन्हें लीला करवाने वाले व्यास के नेतृत्व में प्रशिक्षण दिया जाता है। राम, सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के साथ-साथ रामचरितमानस के कई प्रमुख पात्र ब्राह्मïण कुल के ही होते हैं और इनकी उम्र भी 16 वर्ष से कम होती है। आकर्षक चेहरा, स्पष्टï और दमदार आवाज और वाणी में मधुरता इन पात्रों के चयन का आधार बनती है। इस लीला के मुख्य पात्र एक ही पीढ़ी के होते हैं। इस रामलीला में लड़कियां अभिनय नहीं करतीं। इस लड़कियों का अभिनय भी लड़के ही निभाते हैं। पात्रों की सज्जा, वेशभूषा प्राचीन परंपरानुसार ही होता है। किरदारों के सोने-चांदी जड़ित वस्त्रों को राज परिवार की सुरक्षा में रखा जाता है तथा मंचन के दौरान प्रयुक्त अस्त्र-शस्त्रों को आज भी रामनगर के किले में रखा जाता है।

Ramnagar ki Ram Leela: वाराणसी: रामनगर की रामलीला है विश्व भर में प्रसिद्ध  - must go to see ramnagar ramlila at varanasi during navratri | Navbharat  Times

सावन मास से ही रामलीला की तैयारियां जोर पकड़ने लगती हैं। प्रमुख पात्रों के लिए यह लीला किसी तपस्या से कम नहीं होती है। इसके पात्र सन्यासियों जैसा जीवन व्यतीत करते हैं। पूरे दो माह प्रशिक्षण के दौरान ना तो ये अपने घर जाते हैं और ना ही किसी बाहरी व्यक्ति से मिल सकते हैं। इस दौरान ये संयमित आचरण और खान-पान करते हैं। इनका पूरा प्रशिक्षण काशी नरेश और राजपरिवार के संरक्षण में किया जाता है। प्रात:काल ही इन्हें दोहों एवं चौपाइयों को यादकराया जाता है। आज भी संवाद अदायगी श्लोकों एवं दोहों के आधार पर ही होती है। रामचरित मानस और अवधी भाषा इसका प्रमुख आधार है।

राम लीला का आरंभ

धर्म-अध्यात्म एवं परंपरा को संजोती रामनगर की रामलीला

रामलीला के विभिन्न प्रसंगों के मंचन की तैयारियां के साथ-साथ रावण दहन के लिए रावण, मेघनाथ, और कुंभकर्ण के पुतलों का निर्माण कार्य भी चल रहा होता है। अनंत चतुर्दशी के दिन रावण जन्म एवं क्षीर सागर की झांकी के साथ ही संध्या बेला में शुरू होती है रामलीला और अश्विन मास की शुक्ल पूर्णिमा को श्री राम राक्षसराज रावण का मर्दन कर युद्घ समाप्त करते हैं और अयोध्या वापस लौट जाते हैं। प्रभु राम के आदर्शों और उनकी महिमा को देखने-सुनने देशी-विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं। इस लीला में आम जनता भी मनोरंजन करने नहीं, अपितु भगवान के दर्शन का भाव लेकर आती है। कुछ वर्ष पूर्व तक आसपास के सभी धर्मशालाएं रामलीला के आरंभ से पहले ही साधु-संन्यासियों से भर जाती थीं, लेकिन अब इनकी संख्या में कमी आई है। बावजूद इसके इसकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई है। आज भी रामभक्त एवं साधुगण मुख्य पंचपात्रों को अपने कंधे पर बिठाकर लीलास्थल तक पूरी श्रद्घाभाव से लेकर आते हैं। अन्य पात्रों के लिए पालकी की व्यवस्था रहती है।

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रामलीला की शुरुआत होती है जय श्रीराम के उद्घोष से। लीला आरंभ होने से पूर्व प्रमुख पात्रों की पूजा भी की जाती है। प्रत्येक अध्याय के समापन पर पुजारियों द्वारा आरती, हर-हर महादेव का जाप और बोलो राजा रामचंद्र की जय का उद्घोष होता है। एक-एक कर रामलीला के प्रसंगों का मंचन होता है। रामजन्म, धनुष यज्ञ, राम-सीता विवाह, भरतमिलाप आदि कुछ प्रसंग दर्शकों को विशेषरूप से भाते हैं। लेकिन इस रामलीला में दशरथ निधन के साथ कुछ अन्य प्रसंगों का भी मंचन नहीं होता। रामलीला के आखिरी दिन लाखों की संख्या में भक्त और पर्यटक रावण वध देखने और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने आते हैं। यह सारा कार्यक्रम शांतिपूर्वक वातावरण में हर्षोल्लास के साथ संपन्न होता है। दर्शक पूरी तरह अनुशासित होते हैं। रामलीला के आरंभ से लेकर अंत में रावण आदि के पुतलों के दहन तक कहीं कोई भी भगदड़ या हंगामा नहीं होता। वहीं पूरी काशी इस दौरान अपनी शांति, सद्भाव और श्रद्घा का परिचय देती है। अंतिम दिन श्रीराम लंकापति रावण का वध कर अयोध्या वापस लौटते हैं और इस रामलीला को भी विराम मिलता है।

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रामनगर की रामलीला की सादगी और पारंपरिक रूप से प्रस्तुति ही इसे भव्य और यादगार बनाती है। आधुनिकता के इस दौर में भी यह अपने मूल स्वरूप में लोगों का दिल जीतने में कामयाब रही है, यह सुखद आश्चर्य है। देश-विदेश में भी अपनी प्रसिद्घि के कारण कुछ वर्षों पूर्व यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज में भी यह स्थान प्राप्त कर चुका है। नई पीढ़ी के अंदर भी अपनी संस्कृति, परंपरा व धर्म के प्रति जिज्ञासा और श्रद्घा जगाने में रामनगर की रामलीला अपनी सार्थक भूमिका निभा रही है। अपसंस्कृति, बाजारवाद और दिखावे के दौर में रामनगर की रामलीला और भी प्रासंगिक लगती है। इसकी सौम्यता ही इसे श्रेष्ठï बनाती है और नि:संदेह विश्वप्रसिद्घ भी।

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