Prevention Ragging: कॉलेज लाइफ का हिस्सा बनने जा रहा हर स्टूडेंट्स कॉलेज के पहले दिन को लेकर काफी एक्साइटेड होते हैं। पहले दिन कॉलेज जाने की खुशी के साथ-साथ बच्चों के मन में रैगिंग का डर भी होता है। रैगिंग के नाम पर स्टूडेंट्स के मन में एक अलग ही खौफ बना रहता है। हालांकि पिछले 10-15 साल पहले से कॉलेज में रैगिंग बहुत कम हो गई है, लेकिन कड़े नियमों के बावजूद आज भी कॉलेज में रैगिंग होती है। रैगिंग की शुरूआत के पीछे यह मानसिकता रही थी, फ्रैशर्स-सीनियर के बीच प्रतिष्ठा बनाने और उन्हें कंफर्टेबल महसूस करवाना। इससे जूनियर अपने सीनियर्स के साथ ओपन होंगे और उनके बीच अच्छा रिलेशन कायम होगा। भविष्य में पढ़ाई में या पर्सनल लेवल पर जरूरत पड़ने पर सीनियर उनकी मदद भी करते हैं।
क्या है रैगिंग

रैगिंग पुराने स्टूडेंट्स द्वारा कॉलेज के नए स्टूडेंट्स के स्वागत का दोस्ताना तरीका है, जिसके जरिए सीनियर स्टूडेंट्स नए स्टूडेंट्स के बीच की दूरियों को कम करने की कोशिश करते हैं। देखा जाए तो स्कूल से जब बच्चे कॉलेज जाते हैं वहां अलग-अलग समाज के सामुदायिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आए बच्चे कॉलेज में इकट्ठे होते हैं, वहां फ्रैशर्स या कॉलेज में आए नए बच्चों का स्वागत करने के लिए सीनियर छात्रों के द्वारा रैगिंग की जाती है। इसमें कॉलेज जाने वाला नया बच्चा यह महसूस कर सकता है कि सीनियर बच्चे उसके साथ जबरदस्ती कर रहे हैं, उस पर बॉस बनने की कोशिश कर रहे है हैं, या उसे अपमानित कर रहे हैं। सीनियर्स के इस व्यवहार से नए बच्चे के आत्मसम्मान, व्यक्तिगत गरिमा या मेंटल हेल्थ को ठेस पहुंच सकती है।
डिप्रेशन में चले जाते हैं बच्चे

मोटे तौर पर कॉलेजों में फ्रैशर्स की रैंगिंग कई तरह से की जाती हैं- मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार, शारीरिक शोषण, यौन शोषण और शराब पिलाने या पीने के लिए दवाब डालना। कॉलेज में रैगिंग के कई मामले ऐसे भी देखने को मिलते हैं जब सीनियर जूनियर को शारीरिक-मानसिक तौर पर बहुत ज्यादा प्रताड़ित करते हैं। जैसे- कपड़े उतारने, डांस करवाना, एक-दूसरे को किस करना, थप्पड़ मारना, मुर्गा बनना, उट्ठक-बैठक लगाना। कई बार रैगिंग धार्मिक-सांस्कृतिक, भाषाई और आर्थिक आधार पर भी की जाती है। ऐसी रैगिंग कई फ्रैशर्स के आत्म सम्मान को इतना ठेस पहुंचती है कि वो किसी को इसके बारे में नहीं बताते और परेशान रहने लगते हैं। इतना ही नहीं बच्चे डिप्रेशन में तक चले जाते हैं या कुछ बच्चों में पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है। जिसके चलते बच्चे कॉलेज जाने से ही घबराने लगते हैं या फिर इस घटना की वजह से आत्महत्या तक कर लेते हैं।
अपराध है रैगिंग

लेकिन कई बच्चे रैगिंग को कूल मानते हैं और लंबे समय तक सीनियर की रैगिंग को स्वीकार करते चले जाते हैं। इसके पीछे यह सोच रहती है कि सीनियर की रैगिंग करने से वह कॉलेज के पॉपुलर ग्रुप में शामिल हो जाएगा और उसकी पहचान बन जाएगी, जोकि बिलकुल गलत धारणा है। ऐसे में पेरेंट्स को बच्चे को समझाना चाहिए कि रैगिंग कूल नहीं है, ये एक दंडनीय अपराध है। अगर रैगिंग आपकी मर्यादा को भंग करती है, उसे सहने के बजाय रैगिंग करने वाले बच्चों के खिलाफ कदम भी उठा सकते हैं। कॉलेज जाने वाले बच्चे को पेरेंट्स रैगिंग बखूबी गाइड कर सकते हैं-
- पेरेंट्स को बच्चे के साथ दोस्ती का रवैया अपनाना चाहिए। बहुत प्यार से बच्चे को अपने विश्वास में लेकर सौहार्द्र माहौल बनाना चाहिए। रैगिंग को लेकर खुले तौर पर उससे बातचीत करनी चाहिए। उसे पूरा सपोर्ट देना चाहिए। अभद्र रैगिंग को न सहने या सीनियर को न कहने के लिए हिम्मत बढ़ानी चाहिए। अच्छे मिजाज और खुले दिमाग के साथ कॉलेज में पहले दिन की शुरुआत करनी चाहिए।
- बच्चे के कॉलेज जाने से पहले उसे कॉलेज-कल्चर, कायदे-कानूनों की जानकारी जरूर दें। उन्हें समझाएं कि स्कूल और कॉलेज में काफी फर्क होता है। स्कूल में जहां टीचर की निगरानी में और एक क्लास के अंदर रहते हैं। वहीं कॉलेज में एक अलग ही तरह का माहौल होता है। संभव है कई टीचर और क्लास भी अलग-अलग होती हैं।
- कॉलेज में सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और शैक्षिक योग्यता वालेे बच्चे होते हैं जिनके व्यहार में विविधता मिलती है। पेरेंट्स को बच्चे को समझाना चाहिए कि किसी बच्चे के साथ दोस्ती करने या ग्रुप में शामिल होने से पहले उन्हें जरूर परखें। अच्छी संगति बच्चे की पढ़ाई पर ही नहीं, व्यक्तिगत-सामाजिक विकास में मददगार होती है। दोस्त उन्हें कॉलेज के माहौल में ढलने में मदद करते हैं। इससे बच्चे में आत्मविश्वास आएगा और गलत परिस्थिति में पड़ने पर उनका सामना आसानी से कर सकेगा।
- बच्चे के कॉलेज जाने से पहले माता-पिता को बच्चे को रैगिंग के अच्छे-बुरे पहलुओं के बारे में जरूर समझाना चाहिए। उसे रैगिंग मे ‘एक-दूसरे को जानने’ या ‘गरिमा का उल्लंघन होने’ के बारे में विस्तार से समझाना चाहिए। यानी सीनियर अगर जान-पहचान बढ़ाने या गाना, डांस करने जैसी चीजें करने या अपनी काबलियत दर्शाने के लिए कहते हैं तो फिर भी ठीक है। अगर वो बच्चें को जबरदस्ती सिगरेट पीना, कपड़े उतारना, दूसरे को किस करना, मारना, पार्टी देना जैसे गलत काम करने के लिए दवाब डालते हैं या शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करते हैं, तो ये गलत है। इसके लिए बच्चे को विनम्रता से असहमति व्यक्त करनी चाहिए और वहां से चले जाना चाहिए। वैसे तो कोई भी आपको रोक नहीं सकता, अगर कोई रोकता है, तो उसका विरोध करना चाहिए।
- पेरेंट्स को बच्चे को हर चीज को सहजता से लेना सिखाना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि दूसरों द्वारा कही गई हर बात को गंभीरता से लिया जाए और माना जाए। अगर उन्हें लगता है कि रैगिंग के दौरान सीनियर्स द्वारा मजाकिया सवाल पूछने या नाचने-गाने की गई पेशकश उनकी भावनाओं और गरिमा को ठेस नहीं पहुंचा रही हैं, तो उन्हें सहजता से ही लेना चाहिए। ऐसा रवैया बच्चे को कंफर्ट जोन से बाहर निकलने में मदद करेगा। सीनियर को लेकर बच्चे का डर खत्म होगा और उनमें दोस्ताना रिश्ता कायम हो सकता है। संभव है कि आगे जाकर ये सीनियर्स जरूरत पड़ने पर आपके बच्चे की मदद कर सकते हैं।
- बच्चों को कॉलेज जाने से पहले एंटी-रैगिंग कानून और सहायता नंबर की विस्तार से जानकारी देनी चाहिए। उन्हें बताएं कि कॉलेज में एंटी-रैगिंग हेल्पलाइन होती है। अगर वे अभद्र रैगिंग का शिकार हुए हैं और किसी भी तरह असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। तो वे बिना किसी डर के रैगिंग करने वाले सीनियर छात्रों के खिलाफ कॉलेज प्राधिकरण को शिकायत दर्ज कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात कि शिकायत दर्ज कराते समय उन्हें अपनी पहचान या नाम बताने की भी जरूरत नहीं है। इससे उन्हें किसी तरह की हानि नहीं होगीं।
- हर कॉलेज के परिसर में एक एंटी-रैगिंग स्क्वाड होता है, जो गलत ढंग से छात्रों के साथ की जाने वाली रैगिंग पर नजर रखने और दोषियों के खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई करने के लिए जिम्मेदार होता है। फ्रैशर बच्चा कॉलेज प्रशासन द्वारा स्थापित किए गए हेल्पलाइन नंबरों, नेशनल एंटी रैगिंग हेल्पलाइन नंबर- 1800-180-5522 और अन्य नम्बरों द्वारा शिकायत और सहायता के लिए संपर्क करके मदद मांग सकता है। अगर कुछ समझ न आ रहा हो, तो बच्चे बिना किसी डर के 100 नंबर डायल करके पुलिस को भी रिपोर्ट कर सकते हैं।
- अगर बच्चा कॉलेज हॉस्टल में जा रहा हो, तो पेरेंट्स को उससे मोबाइल के माध्यम से रेगुलर संपर्क बनाए रखना चाहिए और दिन में दो-तीन बार फोन पर उसकी खबर लेते रहना चाहिए। अगर महसूस हो कि उसके साथ अभद्र रैगिंग या अनहोनी घटी है, तो बिना देर किए कॉलेज में जाकर मिलना चाहिए। अगर बच्चा किसी दूसरे शहर के कॉलेज-हॉस्टल में गया है। तो यथासंभव पेरेंट्स को कुछ दिन उस शहर में बिताने चाहिए। इससे बच्चे को सपोर्ट मिलेगा।
(डॉ पूजा आनंद शर्मा, मनोवैज्ञानिक, विश्वास हीलिंग सेंटर, दिल्ली)