Pink and Blue History: जन्म के समय से ही लड़कियों और लड़कों की हर चीज़ में अंतर देखा जाता है। लड़कियों के लिए हर चीज़ का कलर पिंक तो लड़कों के लिए ब्लू कलर चुना जाता है। भले ही आज उम्र के साथ रंगों की पसंद बदल जाती है, लेकिन जब छोटे होते हैं तो इन्हीं दो रंगों के हिसाब से चीज़ों को चुना जाता है। ‘गर्ल्स फॉर पिंक-बॉयज फॉर ब्लू’ का ये जेंडर कलर पेयरिंग बहुत मशहूर है। क्या आप जानते हैं लड़की और लड़के के लिए इन दो रंगों का चयन क्यों और किस आधार पर किया गया। अगर नहीं तो आज इस आर्टिकल में हम आपको इससे जुड़ा इतिहास बताएंगे, तो चलिए जानते हैं।
जेंडर कलर पेयरिंग हमारे दिमाग में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। ऐसे में जन्म से लेकर जन्मदिन की सजावट तक में लड़कियों और लड़कों के लिए इन्हीं दो रंगों को चुना जाता है। इतना ही नहीं जब बच्चियों से उनका पसंदीदा रंग पूछा जाता है तो वो पिंक कलर को ही चुनती हैं। उनके खिलौनों से लेकर कपड़े तक पिंक कलर में खरीदे जाते हैं। लेकिन, क्या आपको पता है ये ‘जेंडर कलर पेयरिंग’ फ्रेंच फैशन की देन है।
क्या है रंगों को चुने जाने की वजह?

फ्रांस की राजधानी पेरिस दुनियाभर में फैशन के लिए मशहूर है। पेरिस का फैशन दुनियाभर में पहना जाता है। 1940 के दशक में फ्रांस की महिलाएं गुलाबी और पुरुष नीले रंग के कपड़ों को ज्यादा अहमियत देते थे। तभी से ये फैशन फ्रांस से निकलकर पूरी दुनिया में प्रचलित हो गया। 1940 में ही एक अमेरिकी फैशन ब्रांड ने पहली बार जेंडर के आधार पर बच्चों और बच्चियों के ब्लू और पिंक कलर के कपड़ों में परिवर्तन किया। तब से ही छोटे बच्चों के लिए ये रंग चुने जाने लगे।
ये भी एक कारण

दरअसल, प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से तीन क्षेत्र के प्रोफेशन (सेक्रेटरी, वेटर और नर्स) में महिलाओं की संख्या सबसे अधिक थी। लोगों के हिसाब से ये जॉब्स बहुत अच्छी नहीं होती थी। क्योंकि व्हाइट कॉलर जॉब और ब्लू कॉलर जॉब को समाज में अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं थी। इसलिए सभी प्रोफेशन को पिंक कॉलर जॉब कहा गया। चूंकि इन क्षेत्रों में महिलाओं की प्रधानता थी, तो पिंक कलर को महिलाओं से जोड़ा जाने लगा। और आज भी जेंडर कलर पेयरिंग बहुत ही प्रचलित है।
