Patal Bhuvaneshwar: भारत पौराणिक इतिहास और रहस्यों से भरा हुआ है। देश के कई मंदिर और गुफाएं अपने रहस्यों को लेकर अक्सर ही लोगों के बीच आश्चर्य का विषय बनी रहती है। आज इस लेख में हम आपको इसी तरह की गुफा के बारे में बताने जा रहे हैं। जिस गुफा के बारे में हम बता रहे हैं उसका नाम है ‘पाताल भुवनेश्वर गुफा’, जिसमें तमाम तरह के रहस्य छुपे हैं, जिन्हें आज तक कोई भी नहीं सुलझा पाया है। मान्यता है कि इसी गुफा में दुनिया के अंत का रहस्य छुपा है। हालांकि इस बात में कितनी सत्यता है, यह कहना मुश्किल है। चलिए जानते हैं इस गुफा के रहस्य…
Patal Bhuvaneshwar: कहा स्थित है रहस्यमयी गुफा?
रहस्यमयी पाताल भुवनेश्वर गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट क्षेत्र में स्थित है। इस अद्भुत गुफा का सनातन धर्म में बेहद ही विस्तार से उल्लेख किया गया है। गुफा समुद्र तल से 90 फीट गहरी है, जिसमें प्रवेश करते ही तमाम देवी देवताओं की प्राकृतिक रूप से बनी मूर्तियां हैं। गुफा में प्रवेश के लिए बहुत ही संकीर्ण रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। गुफा में थोड़ा आगे चलकर एक ऐसी चट्टान है जो दिखने में 100 पैरों वाला ऐरावत हाथी की तरह नजर आती है।
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पौराणिक कथाओं में 4 द्वारों का उल्लेख

कहा जाता है कि इसी गुफा में गणेश जी का कटा हुआ सिर रखा हुआ है और शेषनाग जैसी प्रतिमाएं भी यहां देखने को मिलती हैं। स्कंदपुराण के अनुसार, पाताल भुवनेश्वर गुफा के मंदिर में भगवान शिव रहते हैं। इतना ही नहीं कहा ये भी जाता है कि इसी मंदिर में सभी देवी-देवता भगवान शिव की पूजा करने भी आते हैं। पौराणिक कथाओं में गुफा में मौजूद मंदिर के चार द्वार रणद्वार, पापद्वार, धर्मद्वार और मोक्षद्वार का उल्लेख किया गया है। माना जाता है कि लंकापति रावण की मृत्यु के बाद पापद्वार बंद हो गया था। वहीं कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद रणद्वार को भी बंद कर दिया गया था। गुफा के इस मंदिर में प्रकृति द्वारा निर्मित कई कलाकृतियां मौजूद हैं।
त्रेता युग में राजा ऋतुपर्णा ने की गुफा की खोज

पुराणों के अनुसार, त्रेता युग में इस रहस्यमी गुफा की खोज राजा ऋतुपर्णा ने की थी, जिसके बाद उन्हें यहां नागों के राजा अधिशेष मिले थे। राजा अधिशेष राजा ऋतुपर्णा को गुफा के अंदर ले गए जहां उन्होंने सभी देवी-देवता और भगवान शिव के दर्शन किए। कहा तो यह भी जाता है कि इंसान द्वारा इसकी खोज करने वाले राजा ऋतुपर्णा पहले व्यक्ति थे। त्रेता युग के बाद इस गुफा का उल्लेख द्वापर युग में मिला जब पांडवों द्वारा इस गुफा को फिर से वापस ढूंढ लिया था और यहां रहकर भगवान शिव की पूजा करते थे। पौराणिक कथाओं के मुताबिक कलियुग में इस मंदिर की खोज आदि शंकराचार्य ने 8वीं सदी में किया था।
