बच्चे में Voiding या फिर अपमूत्रण की समस्या काफी आम है। इसे डिस फंक्शनल वोइडिंग भी कहा जाता है। इस स्थिति में पेशाब करते समय परेशानी होती है। यह समस्या कुछ बच्चों में कम तो कुछ में अधिक हो सकती है। अगर यह स्थिति अधिक गंभीर हो जाती है तो किडनी डैमेज जैसी स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है। तो आइए जानते हैं वोइडिंग के कितने प्रकार होते हैं और इन्हें कैसे ठीक किया जा सकता है।
वोइडिंग के प्रकार
ओवर एक्टिव ब्लैडर

यह ऐसी स्थिति होती है जिसमें बच्चे का ब्लैडर अधिक एक्टिव हो जाता है। यह बचपन में किसी भी समय हो सकता है। इस स्थिति के दौरान बच्चे को बार बार पेशाब करने की जरूरत महसूस करने को नहीं मिलती। अचानक से उन्हें पेशाब का प्रेशर महसूस होता है। इसके साथ ही बच्चे को यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, कब्ज, स्ट्रेस भी देखने को मिल सकती है।
अन कॉर्डिनेटिंग वोइडिंग
ऐसे बच्चे जिनका ब्लैडर ओवर एक्टिव होता है, उन्हें पेशाब और स्टूल रोक कर रखने की आदत हो जाती है। इस आदत की वजह से बच्चों का ब्लैडर खाली नहीं हो पाता है और उन्हें किडनी डेमेज होने का रिस्क बना रहता है। स्टूल होल्ड करके रखने की वजह से बच्चों को कब्ज भी हो जाती है।
फ्रीक्वेंस अर्जेंसी सिंड्रोम
इस सिंड्रोम से जूझ रहे बच्चों को हर 10 मिनट में बाथरूम जाने की जरूरत महसूस होती है। यह समस्या एक साल से कुछ महीनों तक देखने को मिल सकती है और अपने आप ही ठीक हो जाती है। इस तरह के बच्चे हर चीज में एकदम नॉर्मल होते हैं।
वोइडिंग डिस फंक्शन को कैसे डायग्नोस किया जा सकता है?
- इस स्थिति से जूझ रहे बच्चों की पेशाब करने की आदतों को देखा जाता है।
- उनके इंफेक्शन के लक्षणों को देखा जाता है।
- उन्हें मशीन में पेशाब करने को भी बोला जाता है।
- पेल्विक फ्लोर मसल्स की भी जांच की जाती है।
- कई बार ब्लैडर का X रे और ब्लैडर और किडनी का अल्ट्रासाउंड भी करने को बोला जा सकता है। इसमें किडनी में होने वाली ब्लॉकेज का पता लग जाता है।
इलाज
ओवर एक्टिव ब्लैडर का इलाज
अगर बच्चा ज्यादा छोटा है तो कई बार यह समस्या अपने आप ही ठीक हो जाती है और इसलिए ही इसके ठीक होने का केवल इंतजार किया जाता है। कुछ लाइफस्टाइल के बदलाव भी किए जा सकते हैं जैसे कैफीन का सेवन न करने देना। अगर फिर भी यह समस्या अपने आप ठीक नहीं होती है तो दवाइयों का प्रयोग ही एकमात्र ऑप्शन बचता है।
अन कॉर्डिनेटिंग वोइडिंग का इलाज

अगर बच्चे को साथ में यूटीआई है तो पहले उसे ठीक किया जाता है। अगर बच्चे को ब्लैडर खाली करने में दिक्कत आ रही है तो उसे एक या दो बार पेशाब करने के लिए बोला जाता है ताकि ब्लैडर खाली हो सके। बहुत ही कम केसों में बच्चे को कैथेटर का प्रयोग करना सिखाया जाता है।
फ्रीक्वेंसी अर्जेंसी सिंड्रोम का इलाज

अगर आपके बच्चे को यह दिक्कत है और सभी टेस्ट के नतीजे नॉर्मल आ रहे हैं तो इस समस्या का अपने आप ही ठीक हो जाने का इंतजार किया जाना चाहिए। इसके लिए ज्यादा दवाइयों का प्रयोग नहीं किया जाता है।
अगर आपके बच्चे को इन समस्याओं से अपने आप ही छुटकारा नहीं मिल रहा है और वह काफी परेशान हो रहे हैं तो उन्हें नर्व मॉड्यूलेशन इलाज का सहारा लेना चाहिए। यह एक स्टिमुलेशन थेरेपी है जो बच्चों को इस तरह की स्थितियों से राहत दिलाने में मदद करती है। इसलिए अगर बच्चा ज्यादा दुखी हो रहा है तो आप तुरंत उसे अस्पताल लेकर जाएं और यह उपचार दिलवाएं।
