एक बहुत ही लाज़मी बात है की एक वक़्त ऐसा आता है | जबकि    इंसान अपने ही बच्चों से बार बार अपने बचपन की तुलना करने लगता है और तुलना कितनी बार इतनी ज्यादा घातक हो जाती है की रिश्तों को ही घुन लगा देती है और ऐसी घुन जो की माता या पिता और बच्चों के बीच के रिश्तों को ही खाने लगती है | डॉक्टर मारुत राठी के अनुसार [जब माता पिता अपने कर्तव्य और रिश्तों को भूल जाते हैं तब एक मोड़ ऐसा भी आता है |जबकि माता पिता ही अपने बच्चों की उन खुशियों से ही जलने लगते है जो उनको उनके बचपन में प्रायः नहीं मिली होती है और यही बात रिश्तो में खटास का कारण बनती हैं

तो जानते हैं वो बातें जो कारण बन जाती बच्चों से तुलना का…

खिलौना... खिलौना एक मजबूत कारण होता है तुलना के लिये बहुत से  माता पिता अक्सर ये कहते हैं| अपनी ही बच्चों से की तुम किस्मत वाले हो जो हमने तुम्हारे लिये खिलौनों का अम्बार लगा रखा हैं| एक हमारे माता पिता थे, सारी बहन भाईयों की बीच में एक खिलौना होता था|जिसको सब बारी बारी खेलते थे| हमारा तो नंबर भी नहीं आता था |तुम्हारी तो शान हैं बस यही शान ? शब्द कई बार बच्चों की दिल को चुभ जाता है और दरार को पैदा कर देता है |

घर की सुविधाए…बहुत से माता पिता अपने ही बच्चों को मिल रही सुख सुविधाओं को ये बोलकर ताना देना नहीं भूलते की तुमको हमने  कितने सुख के साधन घर में दे रखे है और एक हम थे | तुम ए.सी. में आराम करते हो और हमको तो पंखा भी मुश्किलों के बाद मिला था तुम को हर साल दो बार हम शहर से बाहर भी घुमाने ले जाते  हैं और एक हम थे, ननिहाल के अलावा कुछ देखा ही नहीं था | हमारा वो छोटा सा घर और बहुत सारे लोग कब बचपन बीत गया पता ही नहीं चला | इन तानों का असर ये होता है की बच्चें माता पिता से ये कहना शुरू कर देते है की हम ने कब माँगा आपसे ये सब अहसान क्यों दिखा रहे हो आप लोग मत दो कुछ नहीं चाहिए आपसे हमको |

शिक्षा…शिक्षा को लेकर बहुत से माता पिता बच्चों को अक्सर यह सुनाते हैं की आज हमने तुम्हारे लिए शिक्षा के साधनों की कोई भी कमी नहीं की एक की जगह दस साधन उपलब्ध कराये है | हमको तो किताबे भी पुरानी और व फटी हुईं मिलती थी |तुमको तो हर वक़्त लाइट मिलती है तब भी ढंग से पढना लिखना तो दूर ढंग से पास भी नहीं होते हमारी तो गर्दन ही नीची हो जाती है सबके सामने   तुम्हारे नम्बरों की कारण | एक हम थे अपनी मेहनत की बल पर ही यहाँ तक पहुचे है, बाप दादा की सिफारिश नहीं थी न ही पैसा था जो किया सब दिमाग की बल पर ही किया और आज इस लायक है की तुम लोगों को वो सब दे पा रही है जो कभी हमको सपनों में भी नहीं मिला था |

खाना और कपडा...ये वो ताना है जो प्रायः हर माता और पिता बच्चों  को सुनाते ही हैं, कि तुम्हारे तो नखरे ही नहीं कम होते है, ये नहीं खाना ये नहीं पहनना बस रोज नयी नयी डिमांड होती है, तुम लोगों के पास और तो कोई काम हैं नहीं बस खाना और सजना इन सब बेकार की बातोँ में ही दिमाग लगा देते हो सारा अगर पढाई लिखाई में लगा दो इसको, तो तुम्हारी तो बनेगी ही साथ में हमारी भी जिंदगी बन जाएगी पर तुम लोग कहाँ मानोगे हमारी बात | एक हम थे, जो मिल गया खा लिया जो मिल गया पहन लिया बड़े बहन भाईयों का और पुराना कपड़ा भी दिल को बड़ा सुकून देता था, और  एक तुम लोग हो थाली आयी नहीं सामने की मुह बना लिया, एक दो बार कपड़ा पहना नहीं की मन से उतर गया | हमारी तो बात ही अलग थी |

ये बातें जब बच्चे बार बार माता पिता के तानों में सुनते है तो उनको माता पिता का प्यार मात्र दिखावा ही लगने लगता है | जिसको एक दिन वो ठोकर मार कर आगे निकल जाते है और रह जाते है माता पिता अकेले | सार यही कहता है की अपने बच्चों के बचपन की खुद ही अपने बचपन के सूनेपन से तुलना करके माता पिता के पद की गरिमा को कम ना करे जितना दे सकते है बच्चों को सुख दे अपने बचपन की कमियों और दुखों की काली छाया भी बच्चों पर न डाले तानों के रूप में यानि सपनो में भी कभी भी अपने बचपन की तुलना अपने बचपन से न करे | उनको हर सुख दे और बदले में बच्चों का प्यार पाए…

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