बच्चे को प्यार से समझाए
healthy ways to deal a child

आजकल हर पेरेंट्स के सामने एक समस्या होती है कि उनके बच्चे को गुस्सा बहुत आता है और वे बात-बात पर बहस करते हैं। टीनएज में यह समस्या और भी बढ़ जाती है। यह ऐसी उम्र होती है, जब बच्चों में काफी सारे हार्मोनल चेंज हो रहे होते हैं, उनके बिहेवियर में चेंज आता है। वे माता-पिता के साथ कहीं जाना पसंद नहीं करते, दोस्तों के साथ वक्त बिताना उन्हें ज्यादा अच्छा लगने लगता है। ये सभी बदलाव कभी-कभी पेेरेंट्स भी सहज भाव से स्वीकार नहीं कर पाते और बात बहस पर आकर रुक जाती है। 

कहीं अपनी फ्रसटेशन बच्चों पर तो नहीं उतार रहीं 

कई बार हम अपना गुस्सा बच्चों पर निकाल देते हैं, जो बहस का कारण बन जाता है।
Many times we take out our anger on children, which becomes a reason for arguments.

अगर आप चाहते हैं कि बच्चे और आपके बीच प्यार भरा मजबूत संबंध बना रहे तो जरूरी है कोशिश भी दोनों ही तरफ से हो। रिश्तों की डोर में पिरोए गए सबसे खूबसूरत मोती हैं माता-पिता और बच्चे। ऐसे में इनकी चमक पर ब​हस की धूल नहीं जमनी चाहिए। आप सबसे पहले बहस की वजह जानने की कोशिश करें। कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप दिनभर के काम से थकी हुई हैं और बच्चे की कोई बात पसंद न आने पर आप ही उग्र रिएक्शन दे देती हैं। जिसके कारण बात बहस तक आ पहुंचती है। अगर आपको लग रहा है कि आप बात करने की स्थिति में नहीं हैं तो आधे या एक घंटे का समय लें, बच्चे को बताएं कि अभी आप बात करने की स्थिति में नहीं हैं। थोड़ी देर बाद शांति से बात करेंगे। 

बीच का रास्ता चुनें, दोनों की मन की सुनें 

कभी-कभी बच्चे दोस्तों के साथ बाहर जाने की जिद पकड़ लेते हैं, लेकिन आपको ये आउटिंग पसंद नहीं है। अधिकांश पेरेंट्स को बच्चों के बाहर जाने पर कई सारे डर अपने आप ही सताने लगते हैं। उसका एक कारण ये है कि बचपन से बच्चा आपके साथ ही बाहर गया है, ऐसे में अचानक उसका अकेले जाना आपको कहीं न कहीं अजीब लगता है। अगर आप भी ऐसी ही किसी सिचुएशन में फंस गई हैं तो जरूरी है बच्चे के मन की बात समझने के लिए बच्चे के जैसे ही सोचना। याद करें अपना बचपन, जब आपके पेरेंट्स आपको कहीं जाने नहीं देते थे और गुस्से में उनसे झगड़ा कर बैठती थीं। वही स्थिति अब आपके बच्चे की है। ऐसे में शांत मन से बीच का रास्ता निकालें। बच्चे का समय, जाने की जगह और उसके खर्च का निर्णय आप करें। उन्हें यकीन दिलाएं कि आप उनपर विश्वास करती हैं कि वे कुछ गलत नहीं करेंगे। साथ में चेतावनी भी दें कि अगर कोई गलती हुई तो आप अगली बार उसे बाहर नहीं भेजेंगी। ये विश्वास बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करेगा। और बहस की गुंजाइश को भी खत्म कर देगा। 

टाइम आउट लेना है जरूरी 

अगर आपको लगता है कि आपकी बच्चे से किसी बात को लेकर बहस लगातार बढ़ रही है तो आप टाइम आउट लें।
If you feel that the debate with your child about something is increasing continuously, then take a time out.

अगर आपको लगता है कि आपकी बच्चे से किसी बात को लेकर बहस लगातार बढ़ रही है और इसके और भी ज्यादा होने की आशंका है तो आप टाइम आउट लें। यह सबसे बेहतर तरीका है, माहौल को शांत करने का। आप बच्चे से साफ कहें कि अभी मुझे गुस्सा आ रहा है इस विषय पर आधे घंटे बाद बात करेंगे। इस बीच आप भी अपना गुस्सा शांत कर पाएंगी और बच्चा भी पहले जितना उग्र नहीं रहेगा। साथ ही विषय पर सोचने के लिए भी आपको समय मिल पाएगा। यकीन मानिए ये ट्रिप अपनाने में काफी फायदा है। 

देखें गुस्सों की परतों में छिपी सच्चाई 

कई बार हम जो देखते हैं या फिर जो महसूस करते हैं, वैसा नहीं होता। तस्वीर कुछ और ही होती है। गुस्सा भी ठीक वैसा ही है। कई बार गुस्से की परतों के नीचे उदासी, अपराध बोध और शर्म छिपी होती है। कई बार बच्चे डिप्रेशन में होते हैं, उदास होते हैं, बुली का शिकार होते हैं, लेकिन वे अपनी यह पीड़ा किसी को दिखाना नहीं चाहते और आखिरकार उनकी भावना गुस्से के रूप में बाहर आती है। अगर आपका बच्चा भी लगातार चिड़चिड़ा हो रहा है, बात—बात पर गुस्सा होता है, तो जरूरी है कि आप उससे शांति से बात करके गुस्से की जड़ तक पहुंचे, उसका मूल कारण पता लगाएं। 

बच्चों के फैसलों का सम्मान करना शुरू करें 

अगर आपका बच्चा भी टीनएज में पहुंच गया है तो घर के छोटे-छोटे निर्णय में उसकी राय लेना शुरू करें।
If your child has also reached teenage, then start taking his opinion in small decisions of the house.

टीनएज में बच्चे उस दोराहे पर होते हैं जहां वे खुद को बच्चा नहीं समझते और पेरेंट्स उन्हें बड़ा नहीं मानते। ऐसे में बच्चे बहुत ही कंफ्यूज और परेशान हो जाते हैं। कहीं न कहीं यही परेशानी गुस्से और बहस के रूप में सामने आने लगती है। अगर आपका बच्चा भी टीनएज में पहुंच गया है तो घर के छोटे-छोटे निर्णय में उसकी राय लेना शुरू करें। इससे दो काम होंगे, पहला घर के प्रति उसकी जिम्मेदारी तय होगी, वो खुद को जिम्मेदार समझने लगेगा। दूसरा, उसे महसूस होगा कि उसकी राय भी महत्वपूर्ण है। ठीक ऐसे ही हर पेरेंट की यह जिम्मेदारी है कि वह बच्चे के फैसलों को सम्मान दे। हो सकता है आप उनके फैसलों से सहमत न हों, लेकिन उसे सम्मानपूर्वक समझाने की कोशिश करें। अपने सभी विचार उससे शेयर करें, उसपर कुछ थोपने की कोशिश न करें। 

पियर प्रेशर को पहचानना है जरूरी 

टीनएज में बच्चे पियर प्रेशर बहुत ज्यादा महसूस करते हैं। पियर प्रेशर वो होता है जिसमें बच्चे दूसरों की चीजें देखकर वैसा ही सामान लेने की जिद कर बैठते हैं। अधिकांश पेरेंट्स बच्चों की टीनएज में इस तरह के पियर प्रेशर के कारण परेशान रहते हैं। अगर बच्चों को सामान नहीं मिलता तो वे बहस पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे में अगर आप भी गुस्सा होंगे तो ये बहस कभी शांत नहीं होगी। इसलिए कोशिश करें कि शुरू से ही बच्चों को ये सीख दें कि जरूरी नहीं है कि जो चीजें आपके दोस्तों के पास हैं, वो आपके पास भी हो। अगर बहस की नौबत आ ही गई है तो आप बच्चे का टारगेट सेट करें कि अगर तुम अच्छे नंबर लाए तो तुम्हें वो चीज दिला देंगे। सब कुछ बहुत आसानी से दे देने पर बच्चा उसकी वैल्यू नहीं करेगा। इसलिए जब वो टारगेट पूरा करने की मेहनत करेगा तो उसे उस वस्तु की अहमियत पता चलेगी।  

मैं अंकिता शर्मा। मुझे मीडिया के तीनों माध्यम प्रिंट, डिजिटल और टीवी का करीब 18 साल का लंबा अनुभव है। मैंने राजस्थान के प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के साथ काम किया है। इसी के साथ मैं कई प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबों की एडिटर भी...

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