Summary: जब बच्चा बात न माने
बच्चे के ना सुनने पर गुस्सा नहीं, बल्कि धैर्य, संवाद और सकारात्मक अनुशासन से व्यवहार सुधारें और रिश्ता मजबूत बनाएं।
Child Behavior Management: माता-पिता बनने के सुख के साथ आती हैं जिम्मेदारियां, अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देने की। दुनिया के सभी माता-पिता चाहते हैं उनका बच्चा समझदार आज्ञाकारी और विनम्र बने, लेकिन जब बच्चा अपने माता-पिता की बातों को अनसुना करता है, उन्हें मना करता है उस समय पेरेंट्स की धैर्य सहनशीलता और समझदारी की परीक्षा होती है। आज हम इस लेख में जानेंगे कि जब बच्चा हर बात पर मन करें, ‘नहीं’ बोले तो माता-पिता किस तरह संयम के साथ अपने बच्चों को सही आदत और अनुशासन सिखाएं।
बच्चों की ‘ना’ सुनने के पीछे के करण

बच्चों के व्यवहार में कोई भी परिवर्तन अचानक नहीं होता उनके अंदर आए परिवर्तन का कारण शारीरिक या मानसिक विकास हो सकता है।
अगर बच्चा छोटा है तो वह माता-पिता का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए चिल्लाता या उनका विरोध करता है, इस तरह बच्चा अपनी उपस्थिति के बारे में माता-पिता को जताता है।
3 से 7 साल की उम्र में बच्चा स्वतंत्र रूप से अपनी मर्जी के कार्य करना चाहता है। इस वजह से बच्चा माता-पिता की बातों को नहीं मानना चाहता।
अगर घर में बच्चे पर बहुत ज्यादा अनुशासित रहने का दबाव है तो बच्चा रिएक्शन के तौर पर माता-पिता का विरोध करता है।
बच्चों को बाद में, पहले खुद पर करें नियंत्रण
अगर आपका बच्चा आपकी बात नहीं सुन रहा, आपसे उल्टा बोल रहा है, उस समय आपके धैर्य की परीक्षा है। यह वह स्थित है जब बच्चों से पहले आपको खुद पर नियंत्रण रखना है। याद रखिए बच्चे वही सीखते हैं जो देखते हैं। अगर आप उन्हें गुस्से में चिल्ला कर या डांट कर अपनी बात मनवाते हैं तो उनकी समझ में चिल्लाना या गुस्सा करना बात मनवाने का बेहतर तरीका है।
इस स्थिति में क्या करें माता-पिता: बच्चों की गलती पर तुरंत रिएक्शन ना करें। गहरी सांस ले 10 सेकंड रुके, सोचे तब जवाब दें।
अगर बच्चा बहुत एग्रेसिव हो रहा है तो उसका माहौल बदले उसका ध्यान दूसरी तरफ लगाएं।
बच्चों पर दूर से चिल्लाने की बजाय उन्हें पास बुलाए आंखों में आंखें डालकर बात करें। इससे बच्चा आपकी सख्ती के बारे में समझेगा।
अगर बच्चा आपकी बात मानता है तो उसकी तारीफ करें। वह फिर से अच्छा करने के लिए प्रोत्साहित करें।
बच्चों पर गुस्से से पहले अपने स्वभाव पर विचार करें। कहीं आपके गलत बर्ताव झगड़ा या पारिवारिक तनाव के कारण तो नहीं बच्चों के व्यवहार में अंतर आया है।
इस तरह बच्चों के व्यवहार को सही करें
बात करें: किसी भी रिश्ते को सही करने का पहला कदम बात करना है। अपने बच्चों से बात करें। बात करने के लिए सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करें। जैसे, चुप रहो की जगह कहें, पहले मेरी बात सुनो फिर अपनी बात कहना।
तुमने ऐसा क्यों किया की जगह पूछे, क्या तुम्हें लगता है कि तुमने सही किया है।
अनुशासन सिखाएं: परवरिश का सही अर्थ प्यार के साथ अनुशासन सीखना है।
बच्चों के हर काम के लिए नियम पहले तय करें। अगर बच्चा फोन देखा है तो उसे पहले बताएं वह कितनी देर और क्या देख सकता है।
बच्चों की हर मांग पूरी ना करें। सही मांग पर ध्यान दें। उनके किसी भी मांग को पूरी करने से पहले उन्हें समय दें, इतने दिन या महीने के बाद आपको यह मिल सकता है। इससे बच्चों के अंदर प्रतीक्षा करने और धैर्य का गुण विकसित होता है।
बच्चों को खेलने, खाने या फिर स्क्रीन की आजादी सीमाओं के भीतर दें। यह बच्चे के सुरक्षा और अनुशासन दोनों के लिए जरूरी है।
