Kids Personality Tips: बच्चों के समुचित विकास के लिए जरूरी है- बच्चों की आवश्यकता के अनुरूप सही मार्गदर्शन और अच्छी पेरेंटिंग की। इसके लिए जरूरी है-पेरेंट्स को अंतर्मन में झांक कर या खुद को बच्चों की स्थिति में ढाल कर या बच्चों के दोस्त बन कर हैंडल करना। आज आधुनिक जीवन-शैली में पेरेंटिंग टेढ़ी खीर बनती जा रही है, इसमें जरा-सी लापरवाही भी बच्चे के भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। पेरेंटिंग में कोई निश्चित नियम नहीं है, बस जरूरी है- पेरेंट्स को अंतर्मन में झांक कर या खुद को बच्चों की स्थिति में ढ़ालकर या बच्चों के दोस्त बन कर आवश्यकता के अनुरूप सही ढंग से हैंडल करना।
रखें संयमित व्यवहार

बच्चों की परवरिश में सबसे जरूरी है-मध्यम मार्ग या संयमित व्यवहार की। उन्हें न तो बहुत ज्यादा लाड-प्यार दिखाना चाहिए कि वे मनमर्जियां करते हुए हर बात को मनवा लें। या फिर बच्चों को हमेशा डांटते-फटकारते या दूसरे बच्चे से तुलना या कमियां न निकालते रहें कि उनमें हीन भावना आ जाए या अपनी नजरों में गिर जाएं। इससे वह आपसे डरने लगेगा और अपनी कई बातें आपसे शेयर न कर छुपाने लग जाएगा। बेहतर होगा कि पेरेंट्स को एक दूरी बनाए रखते हुए संयमित तरीके से व्यवहार रखना चाहिए। पेरेंट्स को दोस्त बनकर उन्हें प्रोत्साहित करते हुए उनकी गल्तियों को प्यार से समझाना चाहिए।
समझें बच्चे की मनःस्थिति
पेरेंट्स को बच्चे की मानसिक स्थिति को समझ कर ही उन्हें अच्छे-बुरे के बारे में बताना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा किसी भी उम्र का क्यों न हो, वह भी अपने बारे में सोचता है और किसी कार्य के लिए निर्णय ले सकता है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि पेरेंट्स बच्चों पर अपनी बात थोपें, हमेशा अपनी चलाएं। उन्हें बच्चे के नजरिये से भी देखना चाहिए और उनके हालात में खुद को ढाल कर स्थिति को समझना चाहिए। अगर वे कुछ गलत कर रहे हैं, तो प्यार से उन्हें समझाना चाहिए। बच्चों के गलत निर्णय लेने पर जरूरी है कि पेरेंट्स उन्हें उदाहरण देते हुए सही मार्ग दिखाना चाहिए।
बच्चों की बात धैर्यपूर्वक सुनें

बच्चे अपनी अच्छी-बुरी बातें पेरेंट्स से शेयर करना चाहते हैं। कई बार अपने नजरिये से आपको वह बात पसंद न हो और आप चाहते हैं कि बच्चा वह बात न करे, तो आपको अपनी बॉडी लैंग्वेज या भाव भंगिमाओं से उनके प्रति नकारात्मकता या उदासीनता नहीं दिखानी चाहिए। आपको उसकी बात सुननी चाहिए, वरना वह आपसे अपनी बातें छुपाने लगेगा। अगर आप व्यस्त हैं, तो उसे प्यार से समझा कर बाद में बात करने के लिए भी कह सकते हैं।
पेरेंट्स को हैलीकॉपटर पेरेंटिंग का सहारा न लेकर बच्चों के दोस्त बनना ज्यादा बेहतर है। कई पेरेंट्स बहुत आवेश में आकर बच्चों की बात में सवाल-जवाब करते हैं जैसे- यह कैसे हुआ, कब हुआ, क्यों हुआ। उनके इस तरह अचानक पूछे गए प्रश्नों से बच्चे बात करते हुए डर जाएंगे, खींझ जाते हैं और आपसे बात करने से कतराने लगेंगे।
अच्छे मार्गदर्शक बनें, डिक्टेटर नहीं
कई बार पेरेंट्स अपनी जिंदगी के अधूरे सपनों, आशाओं और नाकामयाबियों को अपने बच्चों के जरिये पूरा करना चाहते हैं। या फिर बच्चे को बड़े होकर अपने जैसे डॉक्टर, इंजीनियर बनने के लिए बचपन से ही तैयार करने लगते हैं। इसके लिए वे बच्चों पर दबाव भी डालते हैं लेकिन अगर बच्चे में क्षमता और रुझान नहीं हो तो वो उनके सपनों पर खरे नहीं उतर पाते। ‘तारे जमीं पर‘ और ‘थ्री इडियट‘ फिल्म से आप समझ सकते हैं कि आप बच्चे केा जबरदस्ती कुछ नहीं सिखा सकते। कोई भी अहम फैसला लेने से पहले पेरेंट्स को बच्चों की योग्यता और पसंद-नापसंद के बारे में जरूर पता लगा लेना चाहिए। बच्चे को पनपने का मौका देना चाहिए।
कोई बच्चा लक्ष्य निर्धारित करके पैदा नहीं होता। ऐसे में पेरेंट्स अच्छे गाइड साबित होते हैं और भविष्य मे कामयाब होने के लिए अच्छे करियर के चुनाव में मदद कर सकते हैं। अगर उसकी रुचि आर्ट्स या स्पोर्ट्स में है और आप सोचते हैं कि भविष्य में इसमें करियर की संभावनाएं कम हैं। तो कम से कम उसे बतौर शौक अपनी कल्पना को साकार करने का मौका जरूर देना चाहिए। इसके लिए उसे अगर पार्ट टाइम कोर्स, हॉबी क्लासेज या स्पोर्ट्स एक्टिविटीज़ ज्वाइन कराना बेहतर है। हो सकता है कि आपकी गाइडेंस में समय के साथ बच्चे का मन इससे हट जाए और वह आपके सपनों को साकार करने में जुट जाए।
अच्छी पर्सनेलिटी विकसित करने में करें मदद

आज जब दोनों पेरेंट्स जॉब करते हैं और बच्चों को चाहते हुए भी पूरा समय नहीं दे पाते। तब तो यह बहुत जरूरी हो जाता है कि बच्चे को उनकी पसंद के हिसाब से रचनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रखा जाए। वरना हो सकता है कि वे फोन और वीडियो गेम्स, फेसबुक या मल्टीमीडिया नेटवर्क में लगे रहें या गलत रास्ते निकल जाएंगे। जहां तक हो सके, बच्चे को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स न देकर घर से बाहर जाकर दोस्तों के साथ गेम्स खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे एक तेा उनकी पर्सनेलटी का विकास होगा, दूसरे परिस्थितियों का सामना करने और स्पोर्ट्स स्पिरिट बढ़ेगी। हां यह जरूरी है कि उन्हें ऐसी एक्टिविटीज सेंटर में ही भेजें जहां उन्हें आनेे-जाने की पूरी सुविधा हो, ताकि आपकी गैर-मौजूदगी में किसी तरह की दिक्कत न आए।
गलत संगति में पड़ने से बचाएं
यह सत्य कि बच्चे पर संगति का असर बहुत ज्यादा पड़ता है। खासतौर पर पेरेंट्स की आय वर्ग या सैलरी के हिसाब पर बंटे समाज के बच्चों की संगति कई बच्चों को बिगाड़ देती है। मिसाल के तौर पर बच्चा अगर उच्च आय वर्ग के दोस्तों के साथ रहता है, तो उनके लिविंग स्टाइल और खुले खर्च को देख कर हीन भावना का शिकार भी हो सकता है। वे अपने पेरेंट्स के खिलाफ हो जाते हैं और उन्हें पसंद नहीं करते। कई बार तो वे अपने दोस्तों पर रौब जमाने या शेखी बघारने के चक्कर में पेरेंट्स से झूठ बोल कर या जिद कर पैसे लेते हैं और अगर बात न बने तो चोरी तक करने लगते हैं।
पब कल्चर की गिरफ्त से बचाएं

आज समाज में हर गली-नुक्कड़ पर सिगरेट और शराब जैसे मादक पदार्थों की दुकानें खुल गई हैं। जो हमारे बच्चों पर असर डाल रही हैं। गलत संगत में पडे़ बच्चे न केवल इनके जाल में आसानी से फंस जाते हैं, बल्कि दूसरों को भी इन चीजों के सेवन के लिए उकसाते हैं। शुरू में चाहे उन्हें अच्छी न लगे, बाद में वे आदी हो जाते हैं। ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्चे पर नज़र रखनी बहुत जरूरी है। उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा किस संगति में घूम रहा है। उन्हें बड़ी सावधानी से उसकी आदतों में अचानक आए बदलावों को चेक करते रहना चाहिए। अगर कोई अंदेशा हो तो उन्हें बड़े धैर्य और प्यार के साथ दोस्त बन कर बच्चे को इस स्थिति से निकालना चाहिए।
( डॉक्टर शालिनी चावला, मनोवैज्ञानिक, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, दिल्ली )