Karnataka’s Mystical Tradition
Karnataka’s Mystical Tradition

Summary: भूत कोला परंपरा का मूल और ख़ास बात

भूत का अर्थ यहां डरावने प्रेत से नहीं बल्कि पूर्वजों, संरक्षक आत्माओं और स्थानीय देवताओं के रूप से है। यह परंपरा लोक आस्था, नृत्य, संगीत और रंगमंच का ऐसा मेल है जिसमें कलाकार देवताओं या आत्माओं का रूप धारण कर देर रात तक अनुष्ठान करते हैं।

Bhoota Kola Tradition: कर्नाटक के तटीय और ग्रामीण इलाकों में सदियों से निभाई जा रही भूत कोला परंपरा हमारे देश की एक अनोखी सांस्कृतिक धरोहर है। भूत का अर्थ यहां डरावने प्रेत से नहीं बल्कि पूर्वजों, संरक्षक आत्माओं और स्थानीय देवताओं के रूप से है। यह परंपरा लोक आस्था, नृत्य, संगीत और रंगमंच का ऐसा मेल है जिसमें कलाकार देवताओं या आत्माओं का रूप धारण कर देर रात तक अनुष्ठान करते हैं। भूत कोला केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि एक सामाजिक आयोजन है जो गांव की एकता और संस्कृति को जीवंत रखता है।

Performers in vibrant costumes presenting a captivating traditional dance.
Bhoot Kola

भूत कोला में कलाकार का मेकअप और पोशाक बेहद भव्य और विशिष्ट होती है। चेहरा लाल, सफेद और पीले जैसे पारंपरिक रंगों से सजाया जाता है जो ऊर्जा और आस्था का प्रतीक है। भारी आभूषण, नारियल के पत्तों से बनी स्कर्ट और लंबा मुकुट पहनकर कलाकार भूत का रूप लेते हैं। नृत्य में बदलते तेज़ और धीमे कदम, ढोल-नगाड़ों और शंख की ध्वनि एक रहस्यमयी वातावरण बनाते हैं। यह प्रदर्शन पूरी रात चलता है जिसमें भूत के रूप में आए कलाकार गांववालों की समस्याएं सुनते और उनके समाधान बताते हैं।

लोक मान्यता के अनुसार, हर गांव या क्षेत्र की अपनी संरक्षक आत्माएं होती हैं जिन्हें भूत कहा जाता है। माना जाता है कि ये आत्माएं गांव की रक्षा करती हैं, खेतों में अच्छी फसल देती हैं और बीमारियों व आपदाओं से बचाती हैं। साल में एक बार इन आत्माओं की आराधना भूत कोला के रूप में की जाती है ताकि उनका आशीर्वाद मिलता रहे। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और ग्रामीण समाज में इसे अपार सम्मान दिया जाता है।

raditional art form representing cultural pride and advocating social justice.
raditional art form representing cultural pride and advocating social justice.

भूत कोला केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि एक सामाजिक मंच भी है। प्रदर्शन के दौरान भूत के रूप में कलाकार गांववालों की आपसी विवादों में मध्यस्थता करता है। उसका निर्णय सभी मानते हैं क्योंकि उसे आत्मा का आदेश माना जाता है। इससे गांव में एकता और न्याय की भावना बनी रहती है। इसके अलावा, यह परंपरा कर्नाटक की तुुलु संस्कृति का अहम हिस्सा है जो भाषा, संगीत, कला और लोकविश्वासों को जीवंत बनाए रखती है।

भले ही आज का दौर तकनीक और तेज़ रफ्तार का हो लेकिन भूत कोला अब भी कर्नाटक के तटीय इलाकों में पूरे जोश और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह न केवल आस्था का बल्कि कला और लोकनाट्य का भी उदाहरण है। हाल के वर्षों में फिल्मों और डॉक्यूमेंट्रीज़ के जरिए इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिली है जिससे लोग समझने लगे हैं कि ‘भूत’ का यहां मतलब डर नहीं बल्कि संरक्षण और आशीर्वाद है।

इस तरह से हम कह सकते हैं कि भूत कोला कर्नाटक की आत्मा में बसी वह परंपरा है जो रहस्य, भक्ति और सामाजिक सरोकार को एक साथ समेटे हुए है। यह केवल भूतों की पूजा नहीं बल्कि मानव और प्रकृति के बीच सामंजस्य का उत्सव है।

संजय शेफर्ड एक लेखक और घुमक्कड़ हैं, जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में हुआ। पढ़ाई-लिखाई दिल्ली और मुंबई में हुई। 2016 से परस्पर घूम और लिख रहे हैं। वर्तमान में स्वतंत्र रूप से लेखन एवं टोयटा, महेन्द्रा एडवेंचर और पर्यटन मंत्रालय...