Josephine Baker: बहुत कम ही सुनने को मिलता है जब किसी यूरोपियन देश में किसी अश्वेत को सम्मान दिया जाता है। कई बार महिलाएं ऐसा काम कर जाती हैं जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की होती है। इसलिए तो कहा जाता है कि अगर महिलाओं को मौका मिले तो वह इस दुनिया में वह सब हासिल कर लेंगी जो अब तक पुरुषों ने केवल कल्पना की है। कुछ ऐसा ही कारनामा किया है जोसेफ़िन ने जिसके कारण फ्रांस की सरकार ने एक अमेरिकी नागरिका का, उसके मरने पर सैन्य तरीके से अंतिम संस्कार किया। जोसेफ़िन ऐसी महिला है जिसने एक श्वेत प्रधान यूरोपीय देश को एक अश्वेत को देश का सबसे बड़ा सम्मान देने पर मजबूर कर दिया। ये कहानी जोसेफ़िन बेकर की है जिसकी याद में इस साल बीते 30 नवंबर को पेरिस में उत्सव मनाया गया।
क्यों चर्चा में है जोसेफ़िन बेकर
जोसेफ़िन बेकर अमेरिकी निवासी थीं। अमेरिका में जन्म हुआ और पेशे से डांसर थीं। इस साल बीते 30 नवंबर को फ्रांस की सरकार ने जोसेफ़िन बेकर को सबसे बड़ा सम्मान देते हुए समारोह आयोजित किया। जगह-जगह उनके नाम की पट्टी लगाई गई। फ्रांस की सरकार ने जोसेफ़िन का नाम फ्रेंच पेंथॉन, राष्ट्रीय हीरोज़ का मकबरे ( French Pantheon, the nation’s mausoleum of heroes), में शामिल किया है। पेंथॉन वह जगह है जहां फ्रांस की संस्कृति की गौरवशाली महान परंपराओं को संजोया गया है और यहां उन बड़े-बड़े लीडर्स के नाम दर्ज हैं जिन्होंने फ्रांस का मान पूरी दुनिया में बढ़ाया। इन नामों में रोसू, मैडम क्यूरी और वोल्टेयर तक का नाम भी शामिल है।

केवल 5 महिलाओं को मिला है यह सम्मान
जोसेफ़िन से पहले यह फ्रांसिसी सम्मान केवल 5 महिलाओं को मिला है। जोसेफ़ यह सम्मान पाने वाली 6ठीं और पहली अश्वेत हैं।
अमेरिकी जोसेफ़िन बेकर को फ्रांस की सरकार ने क्यों किया सम्मानित
जोसेफ़िन का जन्म अमेरिका में हुआ था। पेशे से उन्हें हमलोग डांसर कहते हैं लेकिन वह काफी उत्तेजक और आकर्षक डांस करती थीं। अर्धनग्न कपड़ों में डांस करते हुए उन्होंने एक डिग्निटी बनाई थी जो शायद कई बार लोग पूरे कपड़ों में भी बनाकर नहीं रख पाते हैं। जब जोसेफ़िन डांस करती थी लोग दंग रह जाते थे। जिसके कारण उनके सम्मोहक नृत्य को लोग आज भी याद करते हैं।

पूरा नाम फ्रीडा जोसेफ़िन मैकडोनाल्ड
जोसेफ़िन का पूरा नाम फ्रीडा जोसेफ़िन मैकडोनाल्ड है। अमेरिका की मिसौरी के सेंट लुइस में इनका जन्म 3 जून 1906 को हुआ। यह 20वीं सदी की सबसे मशहूर कल्चरल आइकन थीं जिन्हें आज फ्रांस द्वितीय विश्वयुद्ध की नायिका के तौर पर पहले याद करता है। इसके अलावा इन्होंने समय-समय पर महिलाओं के लिए भी अपनी आवाज मुखर की और हर वह काम किया जो महिलाओं को नहीं करने की समाज सलाह देता था।
गरीबी में हुआ जन्म और ड्रम बजाकर किया गुजार
जोसेफ़िन का जन्म एक काफी गरीब परिवार में हुआ था जहां एक समय का खाना भी मुश्किल से नसीब होता था। उसमें भी जोसेफ़ जब छोटी थीं तभी उनके पिता ने परिवार को छोड़ दिया। ऐसे में मां ने बच्चों को दूसरों के कपड़े धोकर पाले। मां की इन स्थितियों में 8 साल की जोसेफ़ ने साथ देने के लिए ड्रम बजाने का काम शुरू किया। कई रातें ऐसी भी आईं जब उन्हें बिना भोजन किए सोना पड़ा। कई बार तो उन्होंने कूड़ें के ढेर से भी खाना उठाकर खाना खाया। फिर 14 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई। इसके बाद और दो शादियां भी हुईं और दोनों में से कोई भी सफल नहीं रहीं। जोसेफ़िन को बेकर सरनेम उनके दूसरे पति से मिला है जिनसे वह प्यार करती थीं।

इन्हीं मजबूरियों ने उन्हें बनाया स्टार
इन मजबूरी भरे दिनों ने ही उनका डांस करियर शुरू किया और उन्हें स्टार बनाया। यह उससमय की बात है जब काम और भोजन की तलाश में जोसेफ़िन सेंट लुईस की सड़कों में भटक रही थी। उस समय वह सड़कों पर ही रह रहीं थीं। यह ठंड का मौसम था और उनके पास ठंड से बचने के लिए पर्याप्त कपड़े तक नहीं थे। ऐसे में जोसेफ़िन ने पैसे कमाने और ठंड में बचने के लिए सड़कों और बार में डांस करना शुरू किया। उनके इस डांस को एक नाटक कंपनी ने देखा और अपने ग्रुप का हिस्सा बना लिया। इसके बाद जोसेफिन को द डिक्सी स्टेपर्स नामक एक डांस ग्रुप का प्रस्ताव मिला और वह उसका हिस्सा बनकर 1919 में न्यूयॉर्क पहुंच गई।
फिर पहुंची पेरिस
इस तरह जोसेफ़िन अपने डांस के जरिये कई लोगों के संपर्क में आई और एक दिन पेरिस पहुंची। पेरिस में वह उस डांस का परफॉर्मेंस देने गईं थीं जो विशेषतौर पर अश्वेत लोगों के द्वारा किया जा रहा था। यहां इन्हें एक हज़ार डॉलर प्रति महीने देने का करार किया गया। यहीं उनकी किस्मत बदली। इसका अंदाजा जोसेफ़िन को भी हो गया था। क्योंकि पेरिस ही वह जगह थी जहां एक श्वेत पुरुष ने ट्रेन से उतरने पर उनका हाथ पकड़ा और उनकी मदद की थी। यह उनकी जिंदगी का पहला समय था जब वह किसी श्वेत को अश्वेत की मदद करते हुए देख रही थी। इसलिए उन्होंने अपने जीते जी पेरिस को खूब प्यार किया और यहां रही।

बनाना बेल्ट से हुई प्रसिद्ध
अप्रैल 1926 को जोसेफ़िन की किस्मत ने बदलना शुरू किया। इस दिन 19 साल की जोसेफ़िन ने ऐसी डांस परफ़ोर्मेंस दी जिसे वहां मौजूद लोग देखकर दंग रह गए। यह कार्यक्रम मशहूर फ़ोलिस बर्जेर में आयोजित हुआ था और जोसेफि़न ने केवल सिर्फ़ मोती पहन रखे थे। कमर में केलों से बनी स्कर्ट पहन रखी थी जिस पर चमकीले पत्थर लगे थे। उनके शो को देखकर लोग हक्का बक्का रह गए और जब उनका शो खत्म हुआ तो लोगों ने उठकर उन्हें स्टैंडिंग ओवेशन दी। जोसेफ़िन के इस डांस फॉर्म को नाम मिला ‘बनाना डांस’ और इसी बनाना डांस ने उन्हें रातोंरात सेलेब्रिटी बना दिया।
एक चीता था पालतू
जोसेफ़िन स्टेज पर काफी निडर होकर डांस करती थीं। इनकी निडरता की पहचान उनके पालतू जानवर से भी मिलती है। उन्होंने एक चीता पाल रखा था और वह कई बार सड़क पर उसके साथ सैर पर भी निकलती थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब वह डांसर और फिल्मों में काम कर रह थीं तो उन्होंने इस दौरान फ्रेंच एयर फ्रोर्स वीमेन ऑक्ज़ीलरी में सेकेंड लेफ्टिनेंट के रूप में कार्य किया। यहीं से उन्होंने जासूसी का काम भी शुरू किया।
फ्रांस को अपनी जान से भी ज्यादा चाहा
जोसेफ़िन को फ्रांस ने वह सबकुछ दिया जो वह चाहती थीं। पैसा, इज्जत और नाम। इसलिए उन्होंने फ्रांस को भी सबकुछ दिया। डांस प्रोग्राम के लिए कई देशों से आने वाले न्योते को उन्होंने स्वीकार किया और इसी दौरान उन्होंने फ्रांस के लिए जासूसी शुरू की। इस योगदान के लिए ही उन्हें चार्ल्स दी गॉल द्वारा लेज़न ऑफ़ ऑनर और मेडल ऑफ़ रेसिस्टेंस से सम्मानित किया गया था। उन्होंने मार्टिन लूथर किंग द्वारा किए गए नागरिक अधिकार आंदोलन में भी हिस्सा लिया था। साल 1975 में स्ट्रोक के कारण उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कर दिया। तब फ्रांस ने इनका अंतिम संस्कार सैन्य सम्मान के साथ किया।