Hindi Diwas 2022 : हिंदी दिवस पर आज हम हिंदी की तारीफों के पुल बाँधने के बजाय एक ऐसे ज्वलनशील मुद्दे पर बात करने वाले हैं जिसपर गौर किया जाना बहुत जरुरी है। हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है, इसका हम भारतीयों के लिए कितना महत्व है इसपर तो हर कोई बात करता है। क्या कभी कोई यह बात करता है कि हम जिस हिंदी को बचपन से प्रयोग में ला रहे हैं उसका भविष्य क्या है? क्या हम हिंदी के विकास में उसे निम्न स्तर पर लेकर आ रहे हैं या फिर यह आधुनिकता की एक मांग है? चलिए इन सभी सवालों के जवाब के साथ एक नए समाधान को लेकर बात करें।
हिंदी भाषा के विकास का क्रम
हिंदी साहित्य में जब भी हम हिंदी भाषा के विकास को पढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि इसके विकास क्रम में पहली सीढ़ी पर संस्कृत है। इसके बाद संस्कृत ने जैसे ही जन समर्थन को खोया तो वह किताबों तक सिमट गई और अब मौखिक रूप पालि ने ले लिया। यही क्रम आगे भी चलता रहा है और पालि के बाद प्राकृत – अपभ्रंश और फिर हिंदी ने हमारे बीच अपना स्थान बनाया। अब सवाल ये उठता है कि क्या हिंदी का अगला क्रम हिंगलिश होगा? ये सवाल जितना मामूली लग रहा है उतना ही गंभीर है। आधुनिक जमाने में जिस तरह से हम हिंगलिश भाषा की ओर आगे बढ़ रहे हैं वह वाकई में सवाल खड़े करता है।
वैश्वीकरण और डिजिटल युग में जिस तरह से सोशल मीडिया अपने चरम पर है और हर एक शब्द को हम शार्ट में लिखना पसंद करते हैं, ये हमें साफ तौर पर इसका संकेत कर रहा है कि हम हिंदी के अगले क्रम की ओर आगे बढ़ रहे हैं। ‘मुझे कोई तकलीफ नहीं’ को आज कल कहा जाता है ‘मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।

हम कोई गलती करते हैं तो कहते हैं ‘ इसके लिए आईएम सॉरी’, प्लीज शब्द तो इतना चलन में है कि जिसे इंग्लिश की समझ नहीं वो भी हिंदी में इसके जोड़कर ही अपनी बात को रख देता है। इसी तरह हम दोस्तों को कहते हैं फ्रेंड्स, सार्वजनिक यातायात में सफर करते समय हम धड़ल्ले से एक वाक्य को प्रयोग में लाते हैं ‘एक्सक्यूज मी जरा साइड हट जाइये’। ऐसे ही अनेकों वाक्य हम रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग में लाते हैं जिन्हें आधुनिकता के लिए हम बोले ही चले जा रहे हैं। हिंदी का स्थान हिंगलिश लेती चली जा रही है और हम इसे एक ट्रेंड और फैशन समझकर शौक से अपना रहे हैं। अंग्रेजी भाषा में कहें तो हिंदी न आना एक ‘हाई क्लास’ बन गया है।
जो लोग हिंदी जानते भी हैं यदि उन्हें कोई किताब हाथ में थमा दी जाए तो और अर्थ समझाने को कहा जाए तो आधी बातें उनके सर के ऊपर से निकल जाती है। लोग हिंदी को बस इतना ही जानते हैं जितना उसे अपनी बात समझाने के लिए बोल पाते हैं। हिंदी में लोगों को लिखने के लिए भी कहा जाता है तो वे आधे शब्द तो हिंगलिश के जोड़कर लिखते हैं। इन सभी बातों पर विचार करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर तो जरूर पहुँच सकते हैं कि वाकई हिंदी भाषा धराशयी होने की कगार पर है पर इसके समाधान के लिए हमें सच में एकजुट होने की जरूरत है।
आइये इसके कुछ समाधान के बारे में बात करें :
- हिंदी को अपने घर से ही मजबूत बनाने का प्रयास करें, अपने बच्चों को हिंदी की प्राथमिकता के बारे में बताएं।
- ऐसे लोगों की संगति में रहें जो हिंदी के बारे में अच्छी खासी समझ रखते हैं, इसके लिए आप सोशल मीडिया पर भी लोगों को जोड़ सकते हैं।
- अपने भीतर से यह शर्म निकाल फेंके कि हिंदी आना आधुनिक समाज में रहने के लिए एक अपमान है।
- हिंदी किताबों को ध्यानपूर्वक पढ़ें ताकि शुरु से ही शब्दों की समझ हो सके।
इन सभी बातों को ध्यान में रखकर हिंदी भाषा के गिरते स्तर को हम धीरे-धीरे पटरी पर ला सकते हैं बस जरूरत है हमारे खुद के सहयोग की। परिवर्तन समय का नियम है पर उस परिवर्तन में हमें अपनी जड़े नहीं भूलनी चाहिए। यही छोटी सी पहल हिंदी दिवस पर हमारी भाषा को फिर से एक नई पहचान दिलाएगी।