Hindi Diwas 2022: लो भाई सितंबर के महीने में 14 सितंबर को हिंदी दिवस आ ही गया। यह वो दिन है शायद जिस दिन हम सभी हिंदुस्तानियों के मन में इस भाषा को लेकर एक प्रेम उमड़ जाता है। कुछ जगहों पर एक दिन नहीं होकर हिंदी दिवस का एक पखवाड़ा भी मनाया जाता है। सोचने की बात है क्या एक दिन या एक पखवाड़ा काफी है….
हिंदी हमारी राजभाषा, वो भाषा जिसे हमारी पहचान के साथ जोड़ा जाता है। वो भाषा जो हमें अपने साथ जोड़कर प्रेम के सूत्र में बांध लेती है। लेकिन समय जब आगे बढ़ा और हम इस भाषा के साथ वो न्याय और वो प्रेम नहीं कर पाए जिसकी यह हकदार थी। अंग्रेजों के आने से पहले हम सभी लोग हिंदी भाषा में बहुत निपुण थे। अंग्रेजों के आने के बाद हमारा परिचय एक नई भाषा के साथ हुआ वह थी अंग्रेजी। पढ़े-लिखे लोगों ने अंग्रेजी बोलना शुरू किया। समय ने अपनी करवट बदली। अंग्रेजी को महत्व मिलने लगा। आज अंग्रेजी एक इंटरनेशनल लैंग्वेज है। मैं इस बात से इंकार नहीं करूंगी कि इसका आना गैर जरूरी है। बेशक आना चाहिए। लेकिन हिंदी के साथ एक अजीब किस्म का सौतेला व्यवहार हम क्यों करने लगे।
हिंदी दिवस पर जो पिछले चार-पांच सालों से किया जाने लगा है, वह भी कुछ अजीब ही है। यह बात आज तक समझ नहीं आती कि हम हिंदी को महत्व देने के चक्कर में अंग्रेजी विरोधी क्यों बन जाते हैं। क्यों हम दोनों भाषाओं के बीच में कंपटीशन पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं? अचानक से हिंदी भाषीय लोग बहुत ही संवेदनशील हो जाते हैं। यह संवदेनाएं उस हिंदी दिवस के बाद फिर कहां चली जाती हैं? सोशल मीडिया पर खासतौर से ऐसा लगता है जैसे हिंदी दिवस नहीं मन रहा, अंग्रेजी भाषा विरोधी दिवस मनाया जा रहा है। भाषा मन से निकली हुई होती है। यह प्रेम है।
परेशानी क्या है भाई?
हम सब भारतीयों को यह समझने की आवश्यकता है कि हमारी प्यारी हिंदी को हम ही इतना गौण क्यों कर रहे हैं? क्यों ऐसा होता है कि पांच लोग बैठे हैं और चार लोग अंग्रेजी में वार्तालाप कर रहे हैं तो पांचवे को अगर अंग्रजी नहीं आती तो वह खुद को हीन सा समझने लगता है। मैं कहती हूं जब आप सभी लोग हिंदी समझ रहे हैं तो हिंदी में बात करने में क्या परेशानी है। ऑफिस में आप देखें कॉरपोरेट कल्चर में रंगे लोग ऑफिस बॉय से नींबू की चाय मंगवाते हैं तो लैमन टी कहकर मंगवाते हैं। कोई नहीं कहता है कि बिना चीनी की या चीनी वाली दो नींबू की चाय ले आओ। हमने एक भ्रमित सा माहौल बना लिया है। इस भ्रमित माहौल का सबसे ज्यादा नुकसान उन विद्यार्थियों को होता है जो यूपीएससी या दूसरे किसी कंपपटीशन में रिटर्न निकालने के बाद खराब अंग्रेजी बोलने की वजह से पीछे हो जाते हैं। याद रखें कि आप इसलिए पीछे नहीं होते कि आपको अंग्रेजी नहीं आती। आप इसलिए पीछे होते हैं कि खराब अंग्रेजी के साथ में आपने खुद को प्रस्तुत किया।
भाषण देने की भाषा नहीं
इस भाषा को कोई बाहर से आकर महत्व नहीं देगा। हम ही जब अपनी बातचीत में इसे लेकर आएंगे तो इसे महत्व दे पाएंगे। भाषण देने की भाषा नहीं है यह। यह तो दोस्तों की भाषा है। आज अगर हम किसी से बात करते हैं तो कोई भी बहुत आराम से कह देता है कि अरे आई एम नॉट कंफ्टेर्बल विद हिंदी। सोचिए कि एक नॉर्थ इंडियन ही हिंदी के साथ सहज नहीं है तो बाकियों का क्या होगा? मैं कहती हूं जब समय आए और जरुरत हो तो ऐसी अंग्रेजी बोलों कि लोग देखते रह जाए। लेकिन जहां आवश्यकता नहीं है वहां गिट-पिट क्यों करनी? गीतकार जावेद साहब ने एक बार हिंदी भाषा के लिए जयपुर लिटरेचर फेस्टीवल में कहा था कि हिंदी हमारी जड़ और अंग्रेजी शाखा, अगर आपके पास बुनियाद ही नहीं होगी तो आप शाखाओं तक पहुंचेंगे कैसे? हम समझ नहीं पा रहे। हिंदी को गौण करके हम खुद को ही खत्म कर देंगे। हिंदी के साथ आज भारत में वही सूलूक हो रहा है जो 1947 के बाद उर्दू के साथ हुआ था। हमने एक समुदाय तक सीमित कर दिया था उर्दू को। जबकि वो भाषा हिंदुस्तानियों की थी। समय सचेत होने का, जानने का और हिंदी को मन से अपनाने का है।

वो सींचते आएं हैं अपनी भाषा को पीढ़ी दर पीढ़ी
साउथ इंडियन लोगों से हमें सीखना चाहिए कि अपने क्षेत्रीय भाषा को उन्होंने किस तरह से सहेजा और सींचा है। दो साउथ इंडियन लोग कहीं भी मिल जाए वह अपनी भाषा में ही बात करना पसंद करते हैं। इसलिए क्योंकि वह अपनी भाषा से प्रेम करते हैं। वो सींचते आएं हैं अपनी भाषा को पीढ़ी दर पीढ़ी।
आज अंग्रेजी मीडियम में जाने वाले स्कूली बच्चों को ही देख लें कितने आराम से कहते हैं कि सारे सब्जेक्ट्स में अच्छे नंबर आते हैं लेकिन हिंदी बस की बात नहीं। एक अभिभावक और पेरेंट्स को मिलकर सोचना है कि आखिर यह क्यों हो रहा है।
हमें बच्चों के बीच में इस भाषा को फिर से लेकर आना है। ताकि हिंदी एक दिवस तक सीमित न रह जाए। चलती हूं। आपको और मुझे हिंदी दिवस की तैयारियां जो करनी है। लेकिन इस बार औपचारिकताओं भरी नहीं। प्रेम के रंग में रंगी मन से तैयारियां। आखिर हिंदी हैं हम!
