Maa Kushmanda Katha: नवरात्र से वातावरण में एक अलग तरह की सकारात्मकता होती है। भक्तजन नवरात्र में नौ देवियों की पूजा अर्चना में व्यस्त रहते हैं। इन दिनों शुभ मुहूर्त देख शुभ कार्य किये जाते हैं। नवरात्र की नौ देवियों की बहुत मान्यता है। प्रत्येक देवी की अपनी गौरव गाथा है जो कि भक्तों के विश्वास को मजबूत करती है। आज के इस लेख में हम जानेंगे कि नवदुर्गा की चतुर्थ देवी कूष्माण्डा कौन हैं? उनके मंत्र और श्लोक आदि क्या हैं?
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मां कूष्माण्डा का रूप
ब्रह्माण्ड की रचना करने वाली देवी को कूष्माण्डा कहा जाता है। देवी की आठ भुजाएं हैं जिनमे कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, गदा, चक्र और जप माला है। मां कूष्माण्डा का वाहन सिंह है।
मां कूष्माण्डा की कथा

जब चारों ओर अंधकार का वर्चस्व था, जब सृष्टि उत्पन्न भी नहीं हुई थी, ऐसी मान्यता है कि देवी ने अपनी मुस्कराहट से सृष्टि को उत्पन्न किया था। इस कारण इन्हें संसार की आदिस्वरूपा और आदिशक्ति कहा जाता है। देवी सूर्यमण्डल में वास करती हैं। क्योंकि देवी ने ब्रह्माण्ड की रचना की है इसलिए ब्रह्माण्ड में जो तेज है वो मां कूष्माण्डा के कारण हैं।
देवी कूष्माण्डा का मंत्र
या देवी सर्वभूतेषुमां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
देवी कूष्माण्डा का श्लोक
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
