Summary: जगन्नाथ मंदिर का प्रिय प्रसाद, जो कभी मौर्य दरबार की शान था, जानिए खाजा की कहानी
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान को जो भोग चढ़ाया जाता है, उसमें खाजा भी होता है। इसे महाप्रसाद कहा जाता है, यानी भगवान को चढ़ाने के बाद यही मिठाई भक्तों में बांटी जाती है।
Jagganath Mandir: खाजा दिखने में तो कुरकुरी मिठाई जैसी लगती है, लेकिन इसका इतिहास बहुत पुराना है। इसका गहरा रिश्ता उड़ीसा की परंपरा से है। खासकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान को जो भोग चढ़ाया जाता है, उसमें खाजा भी होता है। इसे महाप्रसाद कहा जाता है, यानी भगवान को चढ़ाने के बाद यही मिठाई भक्तों में बांटी जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि खाजा सिर्फ मंदिर तक ही सीमित नहीं है? इसका रिश्ता मौर्य राजाओं के समय से भी है। शायद आपने इसके बारे में पहले नहीं सुना होगा। तो चलिए, जानते हैं इसके बारे में।
खाजा की कहानी है 2,300 साल पुरानी

आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि खाजा कोई आज की मिठाई नहीं है, बल्कि इसका इतिहास बहुत पुराना है। करीब 2,300 साल पहले, जब भारत में मौर्य साम्राज्य था और चाणक्य जैसे विद्वान और नीति-विशेषज्ञ का समय था, तब भी खाजा का ज़िक्र मिलता है। उस दौर में खाजा को आम लोगों की मिठाई नहीं, बल्कि राजदरबार की खास मिठाई माना जाता था। इसे खास मौकों पर बड़े-बड़े शाही भोज में परोसा जाता था। इस बात से साफ है कि खाजा सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि भारत की ऐतिहासिक विरासत का हिस्सा है। इसकी मिठास सिर्फ स्वाद में नहीं, बल्कि हमारे इतिहास में भी घुली हुई है।
चाणक्य ने बताया था ताकत देने वाला नाश्ता
चाणक्य, जो चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे, उन्होंने अर्थशास्त्र नाम की किताब में खाजा का ज़िक्र किया है। उन्होंने खाजा को एक तरह का एनर्जी देने वाला नाश्ता बताया था, जो योद्धाओं और पढ़ने-लिखने वाले विद्वानों को ताक़त देने के लिए बनाया जाता था। उस समय इसे गेहूं के आटे से बनाया जाता था और इसे लंबे समय तक रखा जा सकता था।
जगन्नाथ मंदिर तक कैसे पहुंचा खाजा

इतिहास में जब व्यापार, युद्ध और कोई मेल-जोल होता था, तब एक जगह की चीज़ें दूसरी जगह पहुंचती थीं। खाजा भी मौर्य साम्राज्य से होते हुए धीरे-धीरे ओडिशा तक पहुंचा। वहां के लोगों ने इसे अपनाया, उसमें थोड़ा बदलाव किया और इसे मंदिर में चढ़ाने योग्य पवित्र मिठाई बना दिया। आज ये मिठाई भगवान जगन्नाथ के भोग की खास पहचान है।
आज भी उतना ही प्रिय है खाजा
समय चाहे जितना बदल गया हो, लेकिन खाजा का स्वाद आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। चाहे मंदिर से लिया गया प्रसाद हो या किसी दुकान से खरीदी मिठाई, खाजा हमेशा खास लगता है। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई इसकी कुरकुरी मिठास का दीवाना है। और जब आप खाजा खाते हैं, तो एक तरह से इतिहास और भक्ति को एक साथ अनुभव करते हैं।
शुभ अवसर पर बनता है खाजा
यह जानकर हैरानी होगी कि भले ही खाजा को जगन्नाथ मंदिर में महाप्रसाद के रूप में बांटा जाता है, लेकिन देश के अलग-अलग राज्यों में इसे शुभ अवसरों पर भी बनाया और बांटा जाता है। शादी-ब्याह जैसे खास मौकों पर भी लोग खाजा बनाकर एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। इस तरह इसका जुड़ाव केवल ओडिशा ही नहीं, बल्कि पूरे भारत से है।
