bechaara raaja
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

दादी आ गई, दादी आ गई, अब हमको कहानी सुननी है। पुचू खुशी से झूम रही थी दादी को देख के। रोज दादी से कहानी सुनके वो खुश हो जाती है और सो जाती है।

दादी-दादी आज कौन-सी कहानी सुनाओगे मुझे?

हूं आजा मेरी बच्ची, मेरी लाडली, मेरी प्यारी पुचू.. तुझे एक बहुत अच्छी और सच्ची बात बताऊंगी जो तू भी समझ के उसी बात को अपनाएगी और कभी तुझे कोई असुविधा नहीं होगी, दादी पुचू को अपनी गोदी में ले कर बोली और कहानी शुरू की…

“राजा” एक प्यारे-से लडके का नाम है। और राजा जैसा उसका काम भी था। हर चीज पे अपना अधिकार जताता था। किसी की बात नहीं मानता था और जो उसको अच्छा लगता था, वही करता था। मतलब मनमर्जी था वो, पर मस्त था।

उसकी दीदी “रोजी” हमेशा उसको डांटती थी कि सब चीज का एक नियम होता है और श्रृंखला में रह कर काम करना चाहिए। पर वो बोलता था- “मैं राजा हूं राजा और सब लोग प्रजा है तो मैं क्यों किसी से डरूं। हर चीज पे मेरा ही पहला अधिकार है। लाइन में खड़े हो के हर चीज के लिए इंतजार नहीं कर सकता मैं।”

रोजी दीदी बोलती थी- तू एक न एक दिन पछताएगा, देखना मेरे भाई।

चींटियों से सीख डिसिप्लिन क्या होता है। वो लोग एक के पीछे एक चलती हैं। एक सीधी लाइन में रहकर हमेशा काम करती हैं। उसे अनुशासन कहते है। हम इंसानों को उन छोटी-छोटी चीटियों से यही सबक सीखना चाहिए।

पर राजा, उसकी दीदी की बात नहीं सुनता था। उसको किसी अनुशासन में बंधे रहना तो पसंद ही नहीं।

स्कूल में सरस्वती पूजा थी। नए-नए कपड़े पहन के सारे बच्चे विद्यादात्री सरस्वती देवी की पूजा स्कूल में बड़े धूमधाम से कर रहे थे।

पूजा के बाद प्रसाद बंट गया। राजा भी आराम से छीनने जैसा काम कर के प्रसाद ले आया। पर बाकी सारे बच्चे राजा के ऊपर खफा हो गए उसका इस तरह का व्यवहार देख के।

शाम की आरती का प्रसाद बंटन अच्छे से हो इसलिए टीचर ने बबलू को दायित्व दे दिया। बबलू ने सभी बच्चों को लाइन में खड़े करके बांटने का सोचा और एक के बाद एक प्रसाद लेने में सुविधा भी होगी और सब को आराम से मिल भी जाएगा।

बबलू राजा का दोस्त था और उस दिन शाम का प्रसाद खाजा था जो की एक बहुत पसंदीदा मिठाई थी राजा की। उसने सोचा- बबलू से खूब सार खाजा जब भी चाहो ले सकता है और आराम से खा सकता है, इसलिए वो लाइन में बिलकुल भी खड़ा नहीं हुआ।

सारे बच्चे राजा से तो नाराज थे इसलिए जब लाइन में खड़े न होके आगे आ के बबलू से प्रसाद मांगा तो बाकी बच्चों ने विरोध किया और लाइन में रहने के लिए बोले। बीच में घुस के खाजा लेने का सोचा तो किसी भी लड़के ने उसे घुसने न दिया। बहुत कोशिश की, पर राजा को किसी भी बच्चे ने अपने आगे खड़े न होने दिया। हर कोई बोला कि पीछे जाओ। राजा पीछे जाना और ऐसे अनुशासन तोड़ना हमेशा अपनी शान मानता था। पर आज तो खाजा के लिए उसने जितनी बार भी कोशिश की, उसमें सफल नहीं हो पाया। बेचारा खाजा कैसे खाएगा। लाइन आगे बढ़ती गयी और प्रसाद बांटा गया। लाइन खत्म होते ही फिर से लाइन शुरु हो जाती थी और जो बच्चे लाइन में डिसिप्लिन में रहते थे, उसी को ही प्रसाद मिलता था। राजा ने सोचा- ठीक है बाद में बबलू से ले लेगा तो वो दूर जा कर एक जगह बैठ गया। कुछ देर बाद उसकी दीदी आ के उसको घर जाने के लिए बोली। लेकिन उसको प्रसाद नहीं मिला और प्रसाद लेने के लिए जैसे ही बबलू के पास गया तो देखा सारे बच्चे घर चले गए और प्रसाद भी पूरा का पूरा खत्म हो गया था। बेचारा राजा बिना खाजा के वापस आ गया दीदी के पास और रोने लगा कि क्यों उसे खाजा नहीं मिला।

दीदी उसको समझाई कि “तूने अनुशासन तोड़ा, अगर सब की बात मान के लाइन में रहता तो तुझे जरूर खाजा मिल जाता। तूने गलती की और तुझे ऐसे ही दंड मिलना चाहिए।”

राजा जोर-जोर से रोने लगा। उसको लग रहा था, जैसे आज वो हार गया अपनी प्रजा के सामने। उसका सारा घमंड चूर हो गया।

रोजी दीदी हस दी उसको देख के और उसके हाथ में खाजा थमा के बोली- “ले तेरे हिस्से का प्रसाद, तेरा फेवरेट मिठाई खाजा, आज तू ये सबक तो ले लिया होगा और प्रॉमिस करो कि आगे हमेशा तू सब की बात मानेगा और सभी डिसिप्लिन को फॉलो कर के आगे बढ़ेगा।”

राजा सिर्फ सिर हिला के मुस्कराया और दीदी के हाथ से खाजा ले के दोनों घर खुशी-खुशी गए।

“कुछ समझ में आया की नहीं पुचू” दादी ने जैसे ही पूछा, पुचू हंस के बोलने लगी…

हा हा हा…

“बेचारा राजा

खा न पाया खाजा

राजा का बज गया

बैंड बाजा।”

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’