hamari tumhari kahani
hamari tumhari kahani

Hindi Story: इस बार जब बनवारी काका का पोता होस्टल से छुट्टियों में घर आया तो उसने अपने दादा से कहा कि दादू बहुत दिन से आपने मुझे कोई कहानी नहीं सुनाई। आज आपको एक अच्छी-सी कहानी सुनानी पड़ेगी। बनवारी काका ने कहा कि कहानी तो मैं तुम्हें सुना दूंगा, परंतु पहले तुम मुझे यह बताओ कि तुम बड़े होकर क्या करोगे? पोते ने झट से कहा- ‘जी मैं सबसे पहले शादी करूंगा।’ बनवारी काका ने कहा कि मैं तुम्हारी शादी की बात नहीं कर रहा, मेरा मतलब तो यह था कि तुम जिंदगी में क्या बनना चाहते हो? अब एक पल सोचने के बाद पोते ने कहा- ‘दादू मुझे दूल्हा बनना बहुत अच्छा लगता है, मैं तो दूल्हा बनना चाहता हूं।’ बनवारी जी ने थोड़ा परेशान होते हुए कहा कि तुम यह शादी-विवाह की बात छोड़ो और ठीक से मुझे यह बताओ कि आखिर तुम जीवन में क्या हासिल करना चाहते हो?

उनके पोते के दिमाग में न जाने शादी-विवाह का असर किस कदर पड़ा हुआ था कि उसने तपाक् से कह दिया कि मैं तो एक सुंदर-सी दुल्हन हासिल करना चाहता हूं। तंग आकर बनवारी काका ने अपने पोते से कहा कि यदि अच्छी-सी कहानी सुननी है तो मेरी बात का सीधा-सादा जवाब दो कि जब तुम अपने पापा की तरह बड़े हो जाओगे तो उस समय क्या बनोगे? अब उनके पोते ने शेर की तरह नकल उतार कर दहाड़ते हुए कहा कि मैं बब्बर शेर बनूंगा। बनवारी काका ने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा- ‘सारा दिन बंदरों की तरह उछल-कूद करता है और बड़ा होकर बब्बर शेर बनने की बात कर रहा है। इसका मतलब तो यही हुआ कि तू सारी उम्र जानवर ही रहेगा।’ अपने दादा की बात को पूरी तरह समझे बिना इस शरारती लड़के ने रोते हुए शोर मचा दिया कि दादाजी मुझे जानवर कह रहे हैं।

बनवारी काका ने अपने पोते के मूड को बदलने की मंशा से विषय को बदलते हुए उससे कहा कि अब तुम बड़े हो गये हो। तुम्हें तो विवाह-शादी के बारे में भी सब कुछ मालूम हो गया है। इसलिये आज मैं तुम्हें जो कहानी सुनाऊंगा उसमें न तो कोई राजा है और न ही कोई रानी। इस कहानी में दादा-दादी और नाना-नानी की प्यारी परियों का भी कोई जिक्र नहीं है। इस बात पर पोते ने हैरान होते हुए कहा- ‘यदि आपकी कहानी में कोई राजा-रानी और परियां नहीं है तो फिर यह किस की कहानी है?’ दादा ने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा- ‘आज जो कहानी तुम सुनोगे वो है हमारी तुम्हारी कहानी। इसे इस तरह से भी कहा जा सकता है कि यह कहानी है आज के व्यक्ति और समाज की।’ इस अजीब-सी कहानी के बारे में सुनकर पोते ने अपने दादा से कहा कि मुझे न तो किसी व्यक्ति के बारे में कुछ जानना है और न ही समाज के बारे में।

इन बातों के बारे में तो मैं अब सब कुछ जानता हूं, आप नया क्या बताओगे? आपके पास यदि कोई बढ़िया-सी रोचक कहानी है तो ठीक है, नहीं तो मैं जा रहा हूं अपने दोस्तों के साथ खेलने। बनवारी काका ने पोते को प्यार से पास बिठा कर समझाते हुए कहा कि बेटा इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वो बिना कुछ भी जाने इस गलतफहमी में जीता है कि वो सब कुछ जानता है। जबकि सच्चा ज्ञान इसी में है कि आप सदा यह समझे कि आप अभी कुछ नहीं जानते। अभी बनवारी काका ने अपनी बात कहनी शुरू की ही थी कि दरवाजे पर घंटी बजी। जैसे ही पर्दा हटा कर इनके पोते ने देखा तो दरवाजे पर उसका एक पुराना दोस्त खड़ा था। बनवारी जी के पोते ने कहा कि दादू आप इसको वापिस भेज दो। बनवारी काका ने कहा- ‘यह तो तुम्हारा बचपन का सबसे अच्छा दोस्त है, तुम इसे इस तरह से वापिस क्यूं भेज रहे हो?’ अपने दादा की बात को अनसुना करते हुए इनके पोते ने अपने उस दोस्त को काफी बुरा-भला तो कहा ही, साथ ही उसके साथ खेलने से मना भी कर दिया। इतना ही नहीं बल्कि उसकी बेइज्जती करके उसे अपने घर से वापिस भेज दिया। बनवारी काका के पोते ने कहा कि यह बहुत गरीब है और अब मैं किसी भी गरीब दोस्त के साथ नहीं खेलता। आजकल जो मेरे दोस्त है वो बहुत अमीर है। उनके पास बहुत पैसा है। कुछ दोस्तों के पास तो बहुत अच्छे कम्प्यूटर गेम्स भी हैं, इसके पास तो कुछ भी नहीं है।

अब तक बनवारी काका को सारी बात समझ आ चुकी थी। उन्होंने अपने पोते से पूछा कि यदि कभी तुम्हारा कोई कपड़ा फट जाये तो उसकी सिलाई कैसे करोगे? पोते ने झट से कहा कि यह तो बड़ी ही सीधी-सी बात है कि हर कपड़े की सिलाई सूई से की जाती है।

बनवारी काका ने कहा- ‘मैं भी यही कहना चाहता हूं कि जिंदगी में यदि कभी किसी अमीर आदमी से दोस्ती हो भी जाये तो भी अपने पुराने और गरीब दोस्त को कभी मत भूलो। मैं ऐसा इसलिये कह रहा हूं क्योंकि जो काम सूई कर सकती है वो तलवार भी नहीं कर सकती। बेटा मेरी एक बात सदा याद रखना कि कभी भी ऐसे लोगों के साथ दोस्ती मत करना जो तुम्हारे से ज्यादा प्रतिष्ठित हो। ऐसी मित्रता तुम्हें कभी भी खुशी नहीं दे सकती। खुशी कभी भी इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आपके मित्र कौन है या उनके पास क्या-क्या है? खुशी तो सदा इस बात पर निर्भर करती है कि आप खुशी के बारे में क्या सोचते हैं?’

बनवारी काका ने आज बिना कोई कहानी सुनाए ही इतनी बढ़िया बात कह दी है कि खुशी या प्रसन्नता बाजार में मिलने वाली कोई वस्तु नहीं है, वो तो हर किसी के कर्मों से ही उसे मिलती है। कुछ लोगों को यह गलतफहमी रहती है कि पैसे से हर खुशी खरीदी जा सकती है, जबकि असलियत यह है कि पैसे ने कभी किसी को खुशी नहीं दी और न ही यह दे सकता है। पैसे के स्वभाव में ऐसा कुछ नहीं है जिससे खुशी पैदा हो सके। यह जिसके पास जितना अधिक होता है वो इसे उतना ही और पाना चाहता है। बनवारी काका ने हमारी तुम्हारी बात करते हुए खुद को खुश रखने का सबसे अच्छा तरीका समझा दिया है कि हमें अपने मन से हर प्रकार के द्वेष मिटा कर सदा दूसरों को खुश रखने की कोशिश करते रहना चाहिये। अब इसके बाद जौली अंकल इसके सिवाए और क्या कह सकते हैं कि यही तो है हमारी तुम्हारी कहानी। सभी लोगों की सुनें, पर अपने दिल की बात केवल कुछ खास ही लोगों से कहें ।

ये कहानी ‘कहानियां जो राह दिखाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं

Kahaniyan Jo Raah Dikhaye : (कहानियां जो राह दिखाएं)