भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
आज पारुल बहुत प्रसन्न थी। सुबह उसकी मम्मी ने बताया कि इतवार को उसकी मौसी की बेटी बंटी का जन्मदिन है। यह सुनते ही पारुल की खुशी का ठिकाना ना रहा। मौसी के घर जाना उसे बहुत अच्छा लगता है। उसकी मौसी दिल्ली में रहती है और वह खूब पैसे वाली भी है। उनकी बेटी बंटी पारुल से 1 साल बड़ी है और दोनों में बेहद पटती भी है। मौसी के घर जाकर पारुल को उनका बहुत बड़ा घर देखकर लगता है कि काश हमारा घर भी इतना बड़ा और सजा हुआ होता, हमारे घर भी गाड़ी होती तो कितना मजा आता। जैसे बंटी के पापा बंटी को गाड़ी में स्कूल छोड़कर आते हैं वैसे ही मेरे पापा भी मुझे छोड़कर आते। बाल मन में ऐसी इच्छाएं उठना स्वाभाविक ही होता है।
खैर, इतवार को पारुल अपने माता-पिता के साथ दिल्ली पहुंच गई। बंटी उससे मिलकर खूब खुश हुई। बंटी ने उसे अपनी ड्रेस दिखाई जो उसे शाम को बर्थडे पार्टी में पहननी थी। घर में खूब रौनक हो रही थी। कुछ अन्य मेहमान भी आए हुए थे। उसकी मम्मी व मौसी कामों में व्यस्त थीं।
घर के एक बड़े हॉल को पार्टी के लिए शानदार तरीके से सजाया गया था। फूल और गुब्बारों की सजावट मन को मोह हो रही थी। एक बड़ी मेज रखी थी जिस पर रेशमी कपड़ा बिछा हुआ था। बंटी तथा पारुल बार-बार वहां जाकर देख रही थीं और खुश हो रही थीं। बंटी आज 12 साल की होने जा रही थी। वह सातवीं कक्षा में थी जबकि पारुल छटी कक्षा में थी। दोनों शाम होने का इंतजार बड़ी बेचैनी से कर रही थीं। आखिर उनका इंतजार समाप्त हुआ और मेहमानों का आना शुरु हो गया। जब मम्मी ने कहा तो बंटी ने भी अपनी नई ड्रेस पहनी और तैयार हो गई। पारुल ने भी सुंदर-सी फ्रॉक पहनी। पारुल की मम्मी ने दोनों के बालों को मोतियों से सजा दिया। दोनों ही बहुत प्यारी लग रही थी।
सभी मेहमानों के आने पर बंटी ने केक काटा और सभी ने करतल ध्वनि से उसको आशीर्वाद दिया। खूब सारे उपहार का ढेर लग गया। पारुल की मम्मी भी बंटी के लिए एक प्यारा-सा तोहफा लायी थीं जो बंटी को बहुत पसंद आया। सबको केक बाटा गया। इसके बाद खाना शुरू हुआ। इस प्रकार पार्टी खत्म होते-होते 10:00 बज गए। बंटी के माता-पिता ने सभी मेहमानों को धन्यवाद देते हुए विदा किया। पारुल मन में सोच रही थी कि काश उसका ही जन्मदिन ऐसी ही शान-शौकत से मनाया जाए, पर वह यह भी जानती है कि ऐसा संभव नहीं है। उसके पापा एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते हैं और घर भी किराए का है। मम्मी भी पास के ही एक स्कूल में टीचर हैं, पर उन्हें भी अधिक पैसे नहीं मिलते हैं। यू घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। पारुल भी एक अच्छे स्कूल में पढ़ रही थी।
सब लोग बहुत थक चुके थे इसलिए कपड़े बदल कर सब जल्दी ही सो गए। अगले दिन 2 अक्टूबर की छुट्टी थी, सो सब देर से सोकर उठे। नाश्ता करने के बाद बंटी ने अपने उपहार खोलने शुरू किए। वह उन्हें देखने को बड़ी उत्सुक हो रही थी। उसकी मम्मी और मौसी ने पैकेट खोलकर उपहार निकाले। पारुल भी बड़ी रुचि से देख रही थी। एक से बढ़कर एक चीजें थीं। बंटी तो देख-देखकर नाच रही थी। एक पैकेट खोलने पर उसमें से एक टैडी बीयर निकला जो कि बेहद ही खूबसूरत था। सभी ने उसकी प्रशंसा की पर पारुल तो मानो उस पर मुग्ध हो गई। उसने उसे गोद में उठाया और छाती से चिपटा लिया। उसका मन उसे छोड़ने को राजी ही ना था, पर वह तो बंटी का था सो उसे देना ही पड़ा पर उसके मन में टेडी बियर की एक ललक-सी बस गई।
पारुल की मौसी ने भी उसे एक अच्छी-सी फ्रॉक और दो-तीन खिलौने भी दिए पर अब पारुल के मन में तो टेडी बीयर ही बैठा था। महंगा होगा जो शायद उसकी मम्मी ना दिला सके। लाचार वह मन मसोस कर रह गई। उसने सोचा कि इस बार अपने बर्थडे पर अवश्य मम्मी पापा से कहोगी तो हो सकता है कि तब वो उसकी फरमाइश पूरी कर दें। बस इस प्रकार दिल को तसल्ली दे कर वह अपनी पढ़ाई में जुट गई क्योंकि अर्धवार्षिक परीक्षा नजदीक ही थी।
एक दिन विद्यालय में जब वह पानी पीने जा रही थी तो उसे कॉरीडोर में एक काले रंग का पर्स पड़ा मिला। पारुल ने उसे उठाकर देखा। इतना तो वह जान गई कि यह किसी पुरुष का है क्योंकि उसने अपने पापा का पर्स देखा हुआ था। उसने पर्स के विषय में किसी को नहीं बताया और चुपचाप लाकर उसे अपने बस्ते में रख लिया। पर्स को खोलकर देखने की जिज्ञासा तो मन में थी, पर कक्षा में यह कार्य संभव न था। घर लौट कर पारुल ने देखा कि मम्मी सो रही है। यह उसके लिए अच्छा मौका था क्योंकि वह जल्द से जल्द पर्स को खोलकर देखना चाहती थी। वह अपने कमरे में गई और बस्ते में से पर्स निकाला। पर्स में से नोट निकालें और गिने। उसमें रु. 780 थे। पारुल के लिए यह बहुत बड़ी राशि थी। उस समय तो उसने रुपए पर्स में ही रख कर अपनी अलमारी में किताबों में छुपा कर रख दिया। उसके बाद अपने कपड़े बदले और आराम करने को लेट गई, पर लेटने पर भी मन शांत ना था। उसने सोचा कि वह इतने पैसों को कहां रखेगी और क्या करेगी। मम्मी को बताया तो वह डाटेंगी कि तुमने क्लास टीचर को क्यों नहीं दिया। लेटे-लेटे उसकी आंख लग गई तो सपने में उसने देखा कि वह एक सुंदर से टैडी बीयर से खेल रही है और खुश हो रही है। बस आंख खुलते ही उसे टेडी बीयर का ख़्याल आ गया। उसने तुरंत सोच लिया कि वह इन पैसों से एक प्यारा-सा टैडी बीयर खरीदेगी। पर…. पर खरीदेगी कैसे। मम्मी से क्या कहेगी कि पैसे कहां से आए और मम्मी के बगैर तो वह कुछ भी खरीद नहीं सकती। अब इस समस्या का क्या समाधान हो। उसका बाल मस्तिष्क यहां आकर उलझ गया था, पर टेडी बियर लेने की इच्छा इतनी बलवती कि वह कैसे भी उसे पूरा करना चाहती थी। इसी उधेड़बुन में डूबी वह रात को सो गई तथा सुबह उठकर तैयार हुई और स्कूल चली गई, पर पर्स भी बस्ते में रख लिया, इस डर से की कहीं पीछे से मम्मी उसकी अलमारी में से देख न ले। स्कूल में प्रार्थना समाप्त होने पर पी. टी. आई. ने मंच पर आकर कहा- कल प्रिंसिपल साहब की जेब से उनका पर्स कहीं स्कूल में ही गिर गया है। यदि किसी विद्यार्थी को मिला हो तो वह प्रिंसिपल ऑफिस में जाकर लौटा दे। वह बच्चा इनाम का हकदार होगा।
पारुल ने जब यह सुना कि पर्स प्रिंसिपल साहब का है तो उसने तुरंत उसे लौटाने का निश्चय कर लिया। प्रार्थना के बाद वह पर्स लेकर पहले पी. टी. आई. के पास गई और उन्हें पर्स दिखाया। पी. टी. आई. ने उसे शाबाशी दी और फिर दोनों प्रिंसिपल के कमरे में पहुंचे। पी. टी. आई. ने पर उन्हें पर्स थमाते हुए पारुल के बारे में बताया। प्रिंसिपल ने पारुल को पास बुलाकर उसकी पीठ थपथपाई। उसका नाम तथा कक्षा अपनी डायरी में नोट किया और उसे कक्षा में भेज दिया। उसके बाद उन्होंने पीटीआई से कुछ विचार विमर्श किया।।
अगले दिन प्रार्थना के बाद प्राचार्य महोदय स्वयं मंच पर आए तथा पारुल को भी बुलाया। तब उन्होंने पारुल की ईमानदारी के बारे में सभी को बताया तथा उसके नाम की जोरदार ताली बजवाई। सभी की प्रशंसा भरी निगाहें पारुल की और उठ रही थी। तभी प्राचार्य जी ने घोषणा की कि उसे उसका पुरस्कार स्कूल के वार्षिकोत्सव पर मुख्य अतिथि के हाथों दिलवाया जाएगा, पर अभी के लिए पारुल को यह राशि प्रदान की जाती है। यह कहते हुए उन्होंने सौ रुपए का नोट पारुल की ओर बढ़ा दिया। पारुल ने नोट पकड़कर थैंक्यू सर कहां और झुककर उनके पांव छू लिए।
घर आकर पारुल ने मम्मी-पापा को सारी बात बताई तथा नोट भी निकालकर मम्मी को दिया। मम्मी-पापा ने भी पारुल को शाबाशी दी और गले से लगा लिया। पारुल को भी अब अनुभव हो रहा था कि पर्स लौटा कर उसने कितना अच्छा कार्य किया है। आज वह सारे स्कूल की नजरों में एक विशिष्ट छात्रा बन गई है। वह भी स्वयं में गर्व महसूस कर रही थी।
मार्च मास की 26 तारीख को स्कूल का वार्षिकोत्सव होना तय हुआ। उसके लिए भी खूब जोरों-शोरों से तैयारियां हो रही थी। मुख्य अतिथि के रूप में शहर के पुलिस कमिश्नर साहब को आमंत्रित किया गया था।
समारोह सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। अंत में पारितोषिक वितरण का कार्यक्रम आरंभ हुआ। अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा दिखाने वाले बच्चों को पुरुस्कारों से नवाजा गया। फिर आई पारुल की बारी तो प्राचार्य जी ने स्वयं उसके विषय में माइक पर बताया। उन्होंने पारुल के मम्मी-पापा को भी मंच पर बुला लिया था। फिर मुख्य अतिथि ने एक चमकदार पैकेट पारुल को थमा दिया। उसके मम्मी-पापा ने भी सभी का धन्यवाद किया। घर आकर पैकेट खोलने पर पर उनकी प्रसन्नता और आश्रय का ठिकाना ना रहा, जब उसमें से एक प्यारा गुदगुदा-सा टैडी बीयर निकला।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
