Earth Day 2023: हमने हमेशा अपने बुजुर्गों को यह कहते हुए सुना है कि इंसान मिट्टी है और उसे एक दिन मिट्टी में ही मिल जाना है। हम आज भले ही इसे एक जुमला समझें, लेकिन हकीकत ये है कि हमारे बुजुर्गों को हमारी पृथ्वी का महत्व भली भांति पता था। इसी महत्व को वो हमें समझाना चाहते हैं। और हमें भी पृथ्वी की इसी महत्व को अपनी आने वाली पीढ़ियों को सिखाना होगा। प्रकृति और पृथ्वी के संरक्षण व सुरक्षा के लिए ही हर साल 22 अप्रैल को अर्थ डे मनाया जाता है। चलिए इस बार इसे सिर्फ एक दिन के रूप में नहीं परंपरा के रूप में अपनाएं। बच्चों की नींव में ही धरती के महत्व का बीज बोएं।
बच्चों पर पड़ता है प्रकृति का गहरा असर

इस बार की थीम है ‘इन्वेस्ट इन अवर प्लैनेट’ यानी अपने ग्रह पर निवेश करें। हमें करना भी ऐसा ही चाहिए। स्टडी बताती हैं कि बच्चों के लिए नेचर के बीच रहना बहुत जरूरी है। इससे न सिर्फ उनका शारीरिक विकास बेहतर होता है, बल्कि उनके मानसिक विकास पर भी सकारात्मक असर होता है। अमेरिका के ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एलिजाबेथ गेरफ की ओर से की गई एक स्टडी में सामने आया कि जो बच्चे पार्क, खुली जगह और मिट्टी में खेलते हैं, उनमें घर में रहने वाले बच्चों से ज्यादा ताकत होती है। वे घर में रहने वाले बच्चों से ज्यादा सहनशक्ति रखते हैं और उन्हें एलर्जी, थकान जैसी परेशानियां भी कम होती हैं। वे बीमारियों से लड़ने में भी ज्यादा सक्षम होते हैं। सेज जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार घर के बाहर खेलने वाले बच्चों को मनोवैज्ञानिक लाभ मिलता है। वे डिप्रेशन और एंजाइटी के शिकार कम होते हैं। ऐसे बच्चों में अटेंशन-डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) कम होता है। वे ज्यादा सामाजिक होते हैं। दोस्त जल्दी बना लेते हैं। प्रकृति में समय बिताने वाले बच्चों के सिक्स सेंस भी ज्यादा काम करते हैं।
प्रकृति के बीच बिताएं समय

मोबाइल और इंटरनेट के इस दौर में बच्चे घर ने बाहर निकलना भूल गए हैं। वे मिट्टी को गंदगी समझने लगे हैं, जो पूरी तरीके से गलत है। इटली के पलेर्मो विश्वविद्यालय की चाइल्ड न्यूरो साइकियाट्रिस्ट फ्रांसेस्को विट्रानो के अनुसार सैंड यानी मिट्टी बच्चों के लिए एक थेरेपी का काम करती है। इससे वे भावनात्क रूप से स्थिर होते हैं। मिट्टी और रेत से टेढ़ी-मेढ़ी मूर्तियां बनाने से उनमें रचनात्मकता आती है। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम बच्चों को पृथ्वी के करीब लाने के लिए उन्हें घर से बाहर निकालें। उनके साथ पार्क में जाएं, कैंपिंग करें, ट्रैकिंग करें। झरने, नदियों से उनका परिचय करवाएं। पहाड़ों की दुनिया दिखाएं। प्रकृति की सैर करवाएं। साथ ही साथ इन सबके महत्व के बारे में भी उन्हें समझाएं और बातें करें। धीरे—धीरे ही सही बच्चों को भी इसमें रुचि होने लगेगी।
पानी और बिजली संरक्षण के बारे में सिखाएं

पानी और बिजली के संरक्षण की सीख हर पेरेंट को बच्चों को बचपन से ही देनी चाहिए। घर से की गई यह छोटी सी शुरुआत आगे चलकर पृथ्वी के लिए बड़ा असर जरूर दिखाएगी। विशेषज्ञों के अनुसार तीन साल की उम्र से ही बच्चों को पानी और बिजली के संरक्षण का महत्व बताना शुरू कर देना चाहिए। उनकी रोजमर्रा की आदतों में इसे शामिल करें। जब वे अपने दांत ब्रश करते हैं तो पानी बंद करने की सीख दें। उपयोग में न होने पर इलेक्ट्रॉनिक चीजों को अनप्लग करना उन्हें सिखाएं। रूम से बाहर आते समय लाइट, पंखा, एसी बंद करना उनकी आदत बना दें। इससे ऊर्जा के साथ ही आपके पैसों की भी बचत होगी।
पृथ्वी के बारे में कहानी सुनाएं

बच्चे कहानियों से बहुत जल्दी जुड़ जाते हैं। ऐसे में उन्हें पृथ्वी, प्रकृति, पानी, नदियों को लेकर कहानियां सुनाएं। भारत एक ऐसा देश है जहां हमेशा से ही प्रकृति को पूरा महत्व दिया गया है। हमारे तीज त्योहारों से लेकर हमारे घर के हर संस्कार में आपको प्रकृति से जुड़ाव मिलेगा। ऐसे में हमारे पास प्रकृति से जुड़ी कहानियों का भी भंडार है। इन्हें अपने बच्चों तक पहुंचाना हमारा नैतिक कर्तव्य है। ऐसा करने पर बच्चा न सिर्फ अपनी संस्कृति से जुड़ेगा, बल्कि पृथ्वी और प्रकृति का महत्व भी समझेगा।
प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में बताएं

बच्चों को बचपन से ही प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में बताएं। उन्हें बताएं कि कैसे प्लास्टिक और पॉलिथीन हमारी पृथ्वी को खराब और दूषित कर रही हैं। लेकिन सबसे पहले जरूरी है कि आप खुद भी प्लास्टिक और पॉलिथीन से दूरी बनाएं, नहीं तो बच्चा आपकी बात कभी नहीं मानेगा। साथ ही साथ बच्चों को रीसाइक्लिंग के बारे में भी बताएं। ये छोटे-छोटे प्रयास आगे चलकर बड़े काम आएंगे।
गार्डनिंग करवाएं, कुछ पौधों की दें जिम्मेदारी

हमारी पृथ्वी के लिए पेड़ पौधे बहुत जरूरी हैं। हालांकि विकास के नाम पर इन दिनों हरे पेड़ काटकर कंक्रीट का जंगल बिछाया जा रहा है। जो कहीं न कहीं ग्लोबल वार्मिंग का कारण बन गया है। ऐसे में जरूरी है कि हम बच्चों को पेड़ पौधों का महत्व बताएं। बच्चों में गार्डनिंग का शौक विकसित करें। इसके लिए कुछ पौधों की जिम्मेदारी आप बच्चों को ही दे दें। जब इन पौधों में फूल आएंगे, ये बड़े होंगे तो बच्चों को अपने आप इसमें रुचि आने लगेगी। आपकी सोसायटी, पार्क, स्कूल या फिर कहीं भी पौधरोपण कार्यक्रम हो तो आप बच्चों सहित उसका हिस्सा बनें।
ये भी करें ट्राई

बच्चों को पृथ्वी के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का महत्व समझाना है तो आपको भी अपनी लाइफ में कुछ चेंज करने होंगे। इसके बाद आप बच्चों को इस विषय में बताएं। जैसे नहाने के लिए सीमित पानी का उपयोग करना, कार को कभी-कभी ही धोना, सब्जियां व घर का सामान लेने जाएं तो साथ में अपना कपड़े या जूट का बैग लेकर जाएं। ऐसा नियम बनाएं कि बच्चे रविवार को या फिर छुट्टी के दिन गार्डन साफ करें। कोशिश करें कि अपने घर पर एक बर्ड हाउस लगाएं, जिसमें पंछियों के लिए दाना और पानी रखें।
बुक्स पढ़ाएं, हर बात बताएं
बच्चों को बचपन से ही सिखाएं कि पृथ्वी की सुरक्षा और रखरखाव करना उनका कर्तव्य है। इसके लिए उन्हें ऐसी बुक्स पढ़ाएं जिससे उन्हें प्रकृति को करीब से जानने का मौका मिले। उन्हें चीजों को रीसायकल कैसे कर सकते हैं, ऊर्जा का संरक्षण कैसे कर सकते हैं आदि की जानकारियां दें। शेल सिल्वरस्टीन की लिखी गई बुक गिविंग ट्री और डॉ. सीस द्वारा लिखित बुक लोरैक्स दोनों ही इसके लिए बेस्ट बुक्स हैं। आप बच्चों को ये जरूर पढ़ाएं।
